सहस्रनाम स्तोत्रम (Sahasranama Stotram): जानिए इसके चमत्कारिक लाभ और महत्त्व

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"सहस्रनाम स्तोत्र: जानिए इसके चमत्कारिक लाभ और महत्त्व"

सहस्रनाम स्तोत्रम (Sahasranama Stotram): जानिए इसके चमत्कारिक लाभ और महत्त्व


सहस्रनाम स्तोत्रम (Sahasranama Stotram):

सहस्रनाम का अर्थ है “हजार नाम”। यह संस्कृत के दो शब्दों से बना है – ‘सहस्र’ जिसका अर्थ है हजार और ‘नाम’ जिसका अर्थ है नाम। भारतीय धार्मिक परंपराओं में भगवान के 1000 नामों का स्मरण करना उनके महत्त्व, शक्ति और महिमा का वर्णन करने का माध्यम है।
सहस्रनाम स्तोत्रम (Sahasranama Stotram), विशेष रूप से विष्णु सहस्रनाम, लक्ष्मी सहस्रनाम और शिव सहस्रनाम जैसे ग्रंथ, ध्यान और भक्ति का सशक्त साधन माने जाते हैं। इन स्तोत्रों का पाठ करने से शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आत्मिक उन्नति प्राप्त होती है।


सहस्रनाम की विशेषता

सहस्रनाम में भगवान के अलग-अलग स्वरूप, गुण और शक्तियों का वर्णन किया गया है। हर नाम एक गहन आध्यात्मिक संदेश देता है। यह न केवल भगवान की महिमा गाने का तरीका है, बल्कि उनके साथ एक आंतरिक संबंध स्थापित करने का भी मार्ग है।
विशेष बात यह है कि सहस्रनाम का पाठ किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या लिंग का हो। इसे पढ़ने से सकारात्मकता, मन की शुद्धि, और जीवन में सफलता मिलती है।


विष्णु सहस्रनाम

विष्णु सहस्रनाम महाभारत के अनुषासन पर्व का हिस्सा है। इसमें भगवान विष्णु के 1000 पवित्र नामों का उल्लेख है। ये नाम उनके विभिन्न रूपों और लीलाओं का वर्णन करते हैं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से:

  • मानसिक शांति मिलती है।
  • धन-धान्य में वृद्धि होती है।
  • कष्टों का निवारण होता है।
    यह धर्मराज भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को सिखाया गया था, और यह बताया गया कि यह कलियुग में सबसे सरल और प्रभावी भक्ति का माध्यम है।

शिव सहस्रनाम

शिव सहस्रनाम भगवान शिव के हजार नामों का समूह है। ये नाम शिव के विनाशक, पालक, और उत्पत्तिकर्ता स्वरूपों का वर्णन करते हैं। शिव सहस्रनाम के पाठ से:

  • आध्यात्मिक विकास होता है।
  • आशंकाओं और नकारात्मकता का नाश होता है।
  • शक्ति और संतुलन प्राप्त होता है।
    शिवरात्रि या विशेष शिव पूजा के समय शिव सहस्रनाम का पाठ करना विशेष लाभकारी माना जाता है।

लक्ष्मी सहस्रनाम

लक्ष्मी सहस्रनाम में देवी लक्ष्मी के 1000 नाम शामिल हैं। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो धन, समृद्धि, और सुख-शांति की इच्छा रखते हैं। लक्ष्मी सहस्रनाम के पाठ से:

  • घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
  • धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
  • विवाह और परिवारिक सुख में सहायता मिलती है।
    देवी लक्ष्मी की पूजा में सहस्रनाम का विशेष स्थान है, खासकर दीवाली और शुक्रवार के दिन।

सहस्रनाम का वैज्ञानिक महत्त्व

सहस्रनाम का पाठ केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी फायदेमंद है। जब हम सहस्रनाम का पाठ करते हैं, तो इसका कम्पन (vibration) हमारे मस्तिष्क और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

  • यह तनाव कम करता है।
  • मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
  • स्वास्थ्य में सुधार लाता है।
    इसके नियमित पाठ से ध्यान और आत्म-नियंत्रण में भी सुधार होता है।

सहस्रनाम स्तोत्रम (Sahasranama Stotram):

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:

ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः ।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः ।। 1 ।।

पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः।
अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च ।। 2 ।।

योगो योग-विदां नेता प्रधान-पुरुषेश्वरः ।
नारसिंह-वपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः ।। 3 ।।

सर्वः शर्वः शिवः स्थाणु: भूतादि: निधि: अव्ययः ।
संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभु: ईश्वरः ।। 4 ।।

स्वयंभूः शम्भु: आदित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः ।
अनादि-निधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः ।। 5 ।।

अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभो-अमरप्रभुः ।
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः ।। 6 ।।

अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः ।
प्रभूतः त्रिककुब-धाम पवित्रं मंगलं परं ।। 7।।

ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः ।
हिरण्य-गर्भो भू-गर्भो माधवो मधुसूदनः ।। 8 ।।

ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः ।
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृति: आत्मवान ।। 9 ।।

सुरेशः शरणं शर्म विश्व-रेताः प्रजा-भवः ।
अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः ।। 10 ।।

अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि: अच्युतः ।
वृषाकपि: अमेयात्मा सर्व-योग-विनिःसृतः ।। 11 ।।

वसु:वसुमनाः सत्यः समात्मा संमितः समः ।
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः ।। 12 ।।

रुद्रो बहु-शिरा बभ्रु: विश्वयोनिः शुचि-श्रवाः ।
अमृतः शाश्वतः स्थाणु: वरारोहो महातपाः ।। 13 ।।

सर्वगः सर्वविद्-भानु:विष्वक-सेनो जनार्दनः ।
वेदो वेदविद-अव्यंगो वेदांगो वेदवित् कविः ।। 14 ।।

लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृता-कृतः ।
चतुरात्मा चतुर्व्यूह:-चतुर्दंष्ट्र:-चतुर्भुजः ।। 15 ।।

भ्राजिष्णु भोजनं भोक्ता सहिष्णु: जगदादिजः ।
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः ।। 16 ।।

उपेंद्रो वामनः प्रांशु: अमोघः शुचि: ऊर्जितः ।
अतींद्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः ।। 17 ।।

वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः।
अति-इंद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः ।। 18 ।।

महाबुद्धि: महा-वीर्यो महा-शक्ति: महा-द्युतिः।
अनिर्देश्य-वपुः श्रीमान अमेयात्मा महाद्रि-धृक ।। 19 ।।
Vishnu Sahasranamam Stotram With Hindi Lyrics
महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः ।
अनिरुद्धः सुरानंदो गोविंदो गोविदां-पतिः ।। 20 ।।

मरीचि:दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः ।
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः ।। 21 ।।

अमृत्युः सर्व-दृक् सिंहः सन-धाता संधिमान स्थिरः ।
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा ।। 22 ।।

गुरुःगुरुतमो धामः सत्यः सत्य-पराक्रमः ।
निमिषो-अ-निमिषः स्रग्वी वाचस्पति: उदार-धीः ।। 23 ।।

अग्रणी: ग्रामणीः श्रीमान न्यायो नेता समीरणः ।
सहस्र-मूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात ।। 24 ।।

आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः सं-प्रमर्दनः ।
अहः संवर्तको वह्निः अनिलो धरणीधरः ।। 25 ।।

सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृक्-विश्वभुक्-विभुः ।
सत्कर्ता सकृतः साधु: जह्नु:-नारायणो नरः ।। 26 ।।

असंख्येयो-अप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्ट-कृत्-शुचिः ।
सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः ।। 27।।

वृषाही वृषभो विष्णु: वृषपर्वा वृषोदरः ।
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुति-सागरः ।। 28 ।।

सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेंद्रो वसुदो वसुः ।
नैक-रूपो बृहद-रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः ।। 29 ।।

ओज: तेजो-द्युतिधरः प्रकाश-आत्मा प्रतापनः ।
ऋद्धः स्पष्टाक्षरो मंत्र:चंद्रांशु: भास्कर-द्युतिः ।। 30 ।।

अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिंदुः सुरेश्वरः ।
औषधं जगतः सेतुः सत्य-धर्म-पराक्रमः ।। 31 ।।

भूत-भव्य-भवत्-नाथः पवनः पावनो-अनलः ।
कामहा कामकृत-कांतः कामः कामप्रदः प्रभुः ।। 32 ।।

युगादि-कृत युगावर्तो नैकमायो महाशनः ।
अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजित्-अनंतजित ।। 33 ।।

इष्टो विशिष्टः शिष्टेष्टः शिखंडी नहुषो वृषः ।
क्रोधहा क्रोधकृत कर्ता विश्वबाहु: महीधरः ।। 34 ।।

अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः ।
अपाम निधिरधिष्टानम् अप्रमत्तः प्रतिष्ठितः ।। 35 ।।

स्कन्दः स्कन्द-धरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः ।
वासुदेवो बृहद भानु: आदिदेवः पुरंदरः ।। 36 ।।

अशोक: तारण: तारः शूरः शौरि: जनेश्वर: ।
अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः ।। 37 ।।

पद्मनाभो-अरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत ।
महर्धि-ऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुड़ध्वजः ।। 38 ।।

अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः ।
सर्वलक्षण लक्षण्यो लक्ष्मीवान समितिंजयः ।। 39 ।।

विक्षरो रोहितो मार्गो हेतु: दामोदरः सहः ।
महीधरो महाभागो वेगवान-अमिताशनः ।। 40 ।।

उद्भवः क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः ।
करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः ।। 41 ।।

व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो-ध्रुवः ।
परर्रद्वि परमस्पष्टः तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः ।। 42 ।।

रामो विरामो विरजो मार्गो नेयो नयो-अनयः ।
वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठ: धर्मो धर्मविदुत्तमः ।। 43 ।।

वैकुंठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः ।
हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः ।। 44।।

ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः ।
उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्व-दक्षिणः ।। 45 ।।

विस्तारः स्थावर: स्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम ।
अर्थो अनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः ।। 46 ।।

अनिर्विण्णः स्थविष्ठो-अभूर्धर्म-यूपो महा-मखः ।
नक्षत्रनेमि: नक्षत्री क्षमः क्षामः समीहनः ।। 47 ।।

यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतां गतिः ।
सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमं ।। 48 ।।

सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत ।
मनोहरो जित-क्रोधो वीरबाहुर्विदारणः ।। 49 ।।

स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत ।
वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः ।। 50 ।।

धर्मगुब धर्मकृद धर्मी सदसत्क्षरं-अक्षरं ।
अविज्ञाता सहस्त्रांशु: विधाता कृतलक्षणः ।। 51 ।।

गभस्तिनेमिः सत्त्वस्थः सिंहो भूतमहेश्वरः ।
आदिदेवो महादेवो देवेशो देवभृद गुरुः ।। 52 ।।

उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्यः पुरातनः ।
शरीर भूतभृद्भोक्ता कपींद्रो भूरिदक्षिणः ।। 53 ।।

सोमपो-अमृतपः सोमः पुरुजित पुरुसत्तमः ।
विनयो जयः सत्यसंधो दाशार्हः सात्वतां पतिः ।। 54 ।।

जीवो विनयिता-साक्षी मुकुंदो-अमितविक्रमः ।
अम्भोनिधिरनंतात्मा महोदधिशयो-अंतकः ।। 55 ।।

अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः ।
आनंदो नंदनो नंदः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः ।। 56 ।।

महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः ।
त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाश्रृंगः कृतांतकृत ।। 57 ।।

महावराहो गोविंदः सुषेणः कनकांगदी ।
गुह्यो गंभीरो गहनो गुप्तश्चक्र-गदाधरः ।। 58 ।।

वेधाः स्वांगोऽजितः कृष्णो दृढः संकर्षणो-अच्युतः ।
वरूणो वारुणो वृक्षः पुष्कराक्षो महामनाः ।। 59 ।।

भगवान भगहानंदी वनमाली हलायुधः ।
आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णु:-गतिसत्तमः ।। 60 ।।

सुधन्वा खण्डपरशुर्दारुणो द्रविणप्रदः ।
दिवि:स्पृक् सर्वदृक व्यासो वाचस्पति:अयोनिजः ।। 61 ।।

त्रिसामा सामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक ।
संन्यासकृत्-छमः शांतो निष्ठा शांतिः परायणम ।। 62 ।।

शुभांगः शांतिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः ।
गोहितो गोपतिर्गोप्ता वृषभाक्षो वृषप्रियः ।। 63 ।।

अनिवर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृत्-शिवः ।
श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतां वरः ।। 64 ।।

श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः ।
श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमान्-लोकत्रयाश्रयः ।। 65 ।।

स्वक्षः स्वंगः शतानंदो नंदिर्ज्योतिर्गणेश्वर: ।
विजितात्मा विधेयात्मा सत्कीर्तिश्छिन्नसंशयः ।। 66 ।।

उदीर्णः सर्वत:चक्षुरनीशः शाश्वतस्थिरः ।
भूशयो भूषणो भूतिर्विशोकः शोकनाशनः ।। 67 ।।

अर्चिष्मानर्चितः कुंभो विशुद्धात्मा विशोधनः ।
अनिरुद्धोऽप्रतिरथः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः ।। 68 ।।

कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेश्वरः ।
त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः ।। 69 ।।

कामदेवः कामपालः कामी कांतः कृतागमः ।
अनिर्देश्यवपुर्विष्णु: वीरोअनंतो धनंजयः ।। 70 ।।

ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृत् ब्रह्मा ब्रह्म ब्रह्मविवर्धनः ।
ब्रह्मविद ब्राह्मणो ब्रह्मी ब्रह्मज्ञो ब्राह्मणप्रियः ।। 71 ।।

महाक्रमो महाकर्मा महातेजा महोरगः ।
महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः ।। 72 ।।

स्तव्यः स्तवप्रियः स्तोत्रं स्तुतिः स्तोता रणप्रियः ।
पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुण्यकीर्तिरनामयः ।। 73 ।।

मनोजवस्तीर्थकरो वसुरेता वसुप्रदः ।
वसुप्रदो वासुदेवो वसुर्वसुमना हविः ।। 74 ।।

सद्गतिः सकृतिः सत्ता सद्भूतिः सत्परायणः ।
शूरसेनो यदुश्रेष्ठः सन्निवासः सुयामुनः ।। 75 ।।

भूतावासो वासुदेवः सर्वासुनिलयो-अनलः ।
दर्पहा दर्पदो दृप्तो दुर्धरो-अथापराजितः ।। 76 ।।

विश्वमूर्तिमहार्मूर्ति:दीप्तमूर्ति: अमूर्तिमान ।
अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः ।। 77 ।।

एको नैकः सवः कः किं यत-तत-पद्मनुत्तमम ।
लोकबंधु: लोकनाथो माधवो भक्तवत्सलः ।। 78 ।।

सुवर्णोवर्णो हेमांगो वरांग: चंदनांगदी ।
वीरहा विषमः शून्यो घृताशीरऽचलश्चलः ।। 79 ।।

अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक ।
सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः ।। 80 ।।

तेजोवृषो द्युतिधरः सर्वशस्त्रभृतां वरः ।
प्रग्रहो निग्रहो व्यग्रो नैकश्रृंगो गदाग्रजः ।। 81 ।।

चतुर्मूर्ति: चतुर्बाहु:श्चतुर्व्यूह:चतुर्गतिः ।
चतुरात्मा चतुर्भाव:चतुर्वेदविदेकपात ।। 82 ।।


समावर्तो-अनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः ।
दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा ।। 83 ।।

शुभांगो लोकसारंगः सुतंतुस्तंतुवर्धनः ।
इंद्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः ।। 84 ।।

उद्भवः सुंदरः सुंदो रत्ननाभः सुलोचनः ।
अर्को वाजसनः श्रृंगी जयंतः सर्वविज-जयी ।। 85 ।।

सुवर्णबिंदुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः ।
महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधः ।। 86 ।।

कुमुदः कुंदरः कुंदः पर्जन्यः पावनो-अनिलः ।
अमृतांशो-अमृतवपुः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः ।। 87 ।।

सुलभः सुव्रतः सिद्धः शत्रुजिच्छत्रुतापनः ।
न्यग्रोधो औदुंबरो-अश्वत्थ:चाणूरांध्रनिषूदनः ।। 88 ।।

सहस्रार्चिः सप्तजिव्हः सप्तैधाः सप्तवाहनः ।
अमूर्तिरनघो-अचिंत्यो भयकृत्-भयनाशनः ।। 89 ।।

अणु:बृहत कृशः स्थूलो गुणभृन्निर्गुणो महान् ।
अधृतः स्वधृतः स्वास्यः प्राग्वंशो वंशवर्धनः ।। 90 ।।

भारभृत्-कथितो योगी योगीशः सर्वकामदः ।
आश्रमः श्रमणः क्षामः सुपर्णो वायुवाहनः ।। 91 ।।

धनुर्धरो धनुर्वेदो दंडो दमयिता दमः ।
अपराजितः सर्वसहो नियंता नियमो यमः ।। 92 ।।

सत्त्ववान सात्त्विकः सत्यः सत्यधर्मपरायणः ।
अभिप्रायः प्रियार्हो-अर्हः प्रियकृत-प्रीतिवर्धनः ।। 93 ।।

विहायसगतिर्ज्योतिः सुरुचिर्हुतभुग विभुः ।
रविर्विरोचनः सूर्यः सविता रविलोचनः ।। 94 ।।

अनंतो हुतभुग्भोक्ता सुखदो नैकजोऽग्रजः ।
अनिर्विण्णः सदामर्षी लोकधिष्ठानमद्भुतः ।। 95।।

सनात्-सनातनतमः कपिलः कपिरव्ययः ।
स्वस्तिदः स्वस्तिकृत स्वस्ति स्वस्तिभुक स्वस्तिदक्षिणः ।। 96 ।।

अरौद्रः कुंडली चक्री विक्रम्यूर्जितशासनः ।
शब्दातिगः शब्दसहः शिशिरः शर्वरीकरः ।। 97 ।।

अक्रूरः पेशलो दक्षो दक्षिणः क्षमिणां वरः ।
विद्वत्तमो वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः ।। 98 ।।

उत्तारणो दुष्कृतिहा पुण्यो दुःस्वप्ननाशनः ।
वीरहा रक्षणः संतो जीवनः पर्यवस्थितः ।। 99 ।।

अनंतरूपो-अनंतश्री: जितमन्यु: भयापहः ।
चतुरश्रो गंभीरात्मा विदिशो व्यादिशो दिशः ।। 100 ।।

अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मी: सुवीरो रुचिरांगदः ।
जननो जनजन्मादि: भीमो भीमपराक्रमः ।। 101 ।।

आधारनिलयो-धाता पुष्पहासः प्रजागरः ।
ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः ।। 102 ।।

प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत प्राणजीवनः ।
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्यु जरातिगः ।। 103 ।।

भूर्भवः स्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः ।
यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञांगो यज्ञवाहनः ।। 104 ।।

यज्ञभृत्-यज्ञकृत्-यज्ञी यज्ञभुक्-यज्ञसाधनः ।
यज्ञान्तकृत-यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च ।। 105 ।।

आत्मयोनिः स्वयंजातो वैखानः सामगायनः ।
देवकीनंदनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः ।। 106 ।।

शंखभृन्नंदकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः ।
रथांगपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः ।। 107 ।।

सर्वप्रहरणायुध ॐ नमः इति।

वनमालि गदी शार्ङ्गी शंखी चक्री च नंदकी ।
श्रीमान् नारायणो विष्णु: वासुदेवोअभिरक्षतु ।

"सहस्रनाम स्तोत्र: जानिए इसके चमत्कारिक लाभ और महत्त्व"
सहस्रनाम स्तोत्रम (Sahasranama Stotram): जानिए इसके चमत्कारिक लाभ और महत्त्व!

सहस्रनाम का दैनिक जीवन में उपयोग

सहस्रनाम का पाठ किसी भी समय और कहीं भी किया जा सकता है। इसे पढ़ने का कोई नियमित समय या विधि जरूरी नहीं है, परंतु सुबह के समय इसे पढ़ना सबसे अच्छा माना जाता है।
आप इसे:

  • मंदिर में बैठकर,
  • अपने घर के पूजा स्थल पर,
  • या ध्यान करते समय पढ़ सकते हैं।

सहस्रनाम पाठ के लाभ

  1. आध्यात्मिक शुद्धि: यह हमारे विचारों और मन को पवित्र करता है।
  2. सकारात्मक ऊर्जा: इसका पाठ करने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  3. कष्टों का निवारण: जीवन की कठिनाइयों और समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
  4. शक्ति और विश्वास: सहस्रनाम का पाठ आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति बढ़ाता है।

सहस्रनाम की सरल विधि

सहस्रनाम का पाठ करना बहुत आसान है। आपको केवल:

  1. साफ और शांत वातावरण में बैठना है।
  2. भगवान की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाना है।
  3. सहस्रनाम को धीरे-धीरे और सावधानीपूर्वक पढ़ना है।
    याद रखें, सहस्रनाम को पढ़ते समय आपकी भावना सबसे महत्वपूर्ण होती है।

सहस्रनाम स्तोत्रम (Sahasranama Stotram) केवल एक पाठ नहीं है; यह एक जीवन दर्शन है। इसके पाठ से न केवल आप भगवान के करीब आते हैं, बल्कि अपने आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार कर सकते हैं।
अगर आप जीवन में शांति, समृद्धि, और आत्मिक उन्नति चाहते हैं, तो सहस्रनाम का नियमित रूप से पाठ जरूर करें। यह आपके जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन ला सकता है।

सहस्रनाम स्तोत्रम (Sahasranama Stotram) से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQ)

  1. सहस्रनाम का क्या मतलब है?
    सहस्रनाम का मतलब है “हजार नाम”। यह भगवान के 1000 पवित्र नामों का समूह होता है, जिन्हें विशेष रूप से विभिन्न देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  2. सहस्रनाम का पाठ कौन कर सकता है?
    सहस्रनाम का पाठ कोई भी व्यक्ति कर सकता है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, या लिंग का हो। इसे सभी के लिए उपयुक्त माना जाता है।
  3. क्या सहस्रनाम का पाठ करने से जीवन में कोई लाभ होता है?
    हाँ, सहस्रनाम का पाठ करने से आध्यात्मिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा, धन-समृद्धि, और मन की शुद्धि मिलती है। यह जीवन के कष्टों को दूर करने में भी सहायक होता है।
  4. सहस्रनाम का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
    सहस्रनाम का पाठ सुबह के समय या किसी भी समय किया जा सकता है। इसे शांत वातावरण में और पूरी श्रद्धा से करना चाहिए। कोई विशेष समय या विधि आवश्यक नहीं है, लेकिन नियमितता महत्वपूर्ण है।
  5. क्या सहस्रनाम का पाठ सिर्फ विशेष अवसरों पर करना चाहिए?
    नहीं, सहस्रनाम का पाठ नियमित रूप से किया जा सकता है। विशेष अवसरों जैसे दीवाली, शिवरात्रि, या व्रतों के दौरान इसका अधिक महत्व होता है।
  6. क्या सहस्रनाम का पाठ करने से स्वास्थ्य पर कोई असर पड़ता है?
    हाँ, सहस्रनाम का पाठ मानसिक शांति प्रदान करता है और तनाव को कम करने में मदद करता है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है।
  7. सहस्रनाम के कौन-कौन से प्रकार हैं?
    प्रमुख सहस्रनाम स्तोत्रों में विष्णु सहस्रनाम, लक्ष्मी सहस्रनाम, और शिव सहस्रनाम शामिल हैं। ये सभी अलग-अलग देवी-देवताओं के 1000 नामों का वर्णन करते हैं।
  8. क्या सहस्रनाम का पाठ किसी विशेष पूजा के बिना किया जा सकता है?
    हाँ, सहस्रनाम का पाठ बिना किसी विशेष पूजा के भी किया जा सकता है। केवल एक शांत स्थान और ध्यान की आवश्यकता होती है।
  9. सहस्रनाम का पाठ कितने समय तक करना चाहिए?
    सहस्रनाम का पाठ नियमित रूप से किया जाना चाहिए। कुछ लोग रोज़ 1, 5, या 10 नामों का पाठ करते हैं, जबकि अन्य लोग पूरे 1000 नामों का पाठ करते हैं।
  10. क्या सहस्रनाम का पाठ आत्मिक उन्नति के लिए प्रभावी है?
    हाँ, सहस्रनाम का पाठ आत्मिक उन्नति के लिए बेहद प्रभावी है। यह मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन बनाए रखता है और व्यक्ति को अधिक सकारात्मक और शांतिपूर्ण बनाता है।
  11. सहस्रनाम का पाठ करने से किस प्रकार के मानसिक लाभ होते हैं?
    सहस्रनाम का पाठ मानसिक तनाव को कम करता है, ध्यान और एकाग्रता में सुधार करता है, और व्यक्ति को आंतरिक शांति का अनुभव होता है।
  12. क्या सहस्रनाम का पाठ किसी पूजा के दौरान किया जा सकता है?
    हाँ, सहस्रनाम का पाठ पूजा के दौरान किया जा सकता है, खासकर जब आप किसी देवी-देवता की पूजा कर रहे हों। यह पूजन को और भी प्रभावी बनाता है।
  13. क्या सहस्रनाम का पाठ समूह में करना चाहिए या अकेले?
    सहस्रनाम का पाठ अकेले भी किया जा सकता है और समूह में भी। समूह में इसे सामूहिक रूप से पढ़ने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  14. क्या सहस्रनाम का पाठ सिर्फ धार्मिक लाभ के लिए है?
    नहीं, सहस्रनाम का पाठ धार्मिक लाभ के साथ-साथ मानसिक और शारीरिक लाभ भी देता है। यह एक योग की तरह कार्य करता है, जो व्यक्ति को संतुलित और स्वस्थ बनाता है।
  15. क्या सहस्रनाम का पाठ करने से जीवन में समृद्धि आती है?
    हाँ, सहस्रनाम का पाठ समृद्धि और सुख-शांति की ओर मार्गदर्शन करता है। यह धन, समृद्धि, और जीवन में सकारात्मकता लाने में सहायक होता है।

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