“शिव रुद्राष्टकम: भगवान शिव की दिव्यता और उनकी स्तुति का सम्पूर्ण रहस्य”

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"शिव रुद्राष्टकम: भगवान शिव की दिव्यता और उनकी स्तुति का सम्पूर्ण रहस्य"

“शिव रुद्राष्टकम: भगवान शिव की दिव्यता और उनकी स्तुति का सम्पूर्ण रहस्य”

शिव रुद्राष्टकम हिंदू धर्म की महानतम स्तुतियों में से एक है। यह स्तुति भगवान शिव की सर्वशक्तिमानता, अनंत स्वरूप, और करुणा का वर्णन करती है। इसकी रचना संत तुलसीदास जी ने की थी।

Contents
“शिव रुद्राष्टकम: भगवान शिव की दिव्यता और उनकी स्तुति का सम्पूर्ण रहस्य”शिव रुद्राष्टकम की पृष्ठभूमिश्रीरुद्राष्टकम् – नमामीशमीशान निर्वाणरूपम्श्री रुद्राष्टकम् – मैं निर्वाण स्वरूप भगवान शिव को नमस्कार करता हूँSri Rudrashtakam – I bow to Lord Shiva, the form of Nirvanaरुद्राष्टकम के श्लोकों का अर्थपहला श्लोकदूसरा श्लोकतीसरा श्लोकचौथा श्लोकपांचवां से आठवां श्लोकशिव रुद्राष्टकम का महत्वभगवान शिव का स्वरूपशिव रुद्राष्टकम का पाठ और उसका समयरुद्राष्टकम के पाठ से लाभरुद्राष्टकम का प्रभावशिव रुद्राष्टकम पर महत्वपूर्ण FAQs1. शिव रुद्राष्टकम क्या है?2. शिव रुद्राष्टकम किसने लिखा है?3. रुद्राष्टकम का अर्थ क्या है?4. शिव रुद्राष्टकम क्यों महत्वपूर्ण है?5. शिव रुद्राष्टकम का पाठ कब करना चाहिए?6. रुद्राष्टकम का पाठ कैसे करें?7. रुद्राष्टकम का पाठ करने के क्या लाभ हैं?8. रुद्राष्टकम का पाठ किस पर्व पर विशेष फलदायी है?9. क्या रुद्राष्टकम का पाठ सभी कर सकते हैं?10. रुद्राष्टकम में भगवान शिव का कौन-सा स्वरूप वर्णित है?11. क्या रुद्राष्टकम का पाठ सभी समस्याओं का समाधान करता है?12. शिव रुद्राष्टकम के आठ श्लोकों का मुख्य भाव क्या है?13. क्या रुद्राष्टकम का पाठ केवल संस्कृत में करना अनिवार्य है?14. क्या रुद्राष्टकम से जीवन में धन और स्वास्थ्य लाभ मिलता है?15. क्या शिव रुद्राष्टकम केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए है?

यह स्तुति भगवान शिव के प्रति भक्ति और आत्मसमर्पण का प्रतीक है। रुद्राष्टकम आठ श्लोकों से युक्त है, जिनमें भगवान शिव के दिव्य स्वरूप, महिमा, और गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

शिव रुद्राष्टकम का पाठ जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है और आत्मा को शुद्ध करता है। यह स्तुति हर उस व्यक्ति के लिए एक अमूल्य रचना है, जो शिवभक्ति में लीन होना चाहता है।


शिव रुद्राष्टकम की पृष्ठभूमि

संत तुलसीदास जी, जो श्रीरामचरितमानस के रचयिता थे, भगवान राम और शिव दोनों के प्रति समान श्रद्धा रखते थे। उन्होंने रुद्राष्टकम की रचना काशी में की थी, जहां भगवान शिव को विश्वनाथ के रूप में पूजा जाता है। यह स्तुति तुलसीदास जी के भक्ति भाव और भगवान शिव की महानता का प्रमाण है।


श्रीरुद्राष्टकम् – नमामीशमीशान निर्वाणरूपम्

॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥

न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥

॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥

हे भगवन ईशान को मेरा प्रणाम ऐसे भगवान जो कि निर्वाण रूप हैं जो कि महान ॐ के दाता हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्माण में व्यापत हैं जो अपने आपको धारण किये हुए हैं जिनके सामने गुण अवगुण का कोई महत्व नहीं, जिनका कोई विकल्प नहीं, जो निष्पक्ष हैं जिनका आकार आकाश के समान हैं जिसे मापा नहीं जा सकता उनकी मैं उपासना करता हूँ |

जिनका कोई आकार नहीं, जो ॐ के मूल हैं, जिनका कोई राज्य नहीं, जो गिरी के वासी हैं, जो कि सभी ज्ञान, शब्द से परे हैं, जो कि कैलाश के स्वामी हैं, जिनका रूप भयावह हैं, जो कि काल के स्वामी हैं, जो उदार एवम् दयालु हैं, जो गुणों का खजाना हैं, जो पुरे संसार के परे हैं उनके सामने मैं नत मस्तक हूँ |

जो कि बर्फ के समान शील हैं, जिनका मुख सुंदर हैं, जो गौर रंग के हैं जो गहन चिंतन में हैं, जो सभी प्राणियों के मन में हैं, जिनका वैभव अपार हैं, जिनकी देह सुंदर हैं, जिनके मस्तक पर तेज हैं जिनकी जटाओ में लहलहारती गंगा हैं, जिनके चमकते हुए मस्तक पर चाँद हैं, और जिनके कंठ पर सर्प का वास हैं |

जिनके कानों में बालियाँ हैं, जिनकी सुन्दर भौंहें और बड़ी-बड़ी आँखे हैं जिनके चेहरे पर सुख का भाव हैं जिनके कंठ में विष का वास हैं जो दयालु हैं, जिनके वस्त्र शेर की खाल हैं, जिनके गले में मुंड की माला हैं ऐसे प्रिय शंकर पुरे संसार के नाथ हैं उनको मैं पूजता हूँ |

जो भयंकर हैं, जो परिपक्व साहसी हैं, जो श्रेष्ठ हैं अखंड है जो अजन्मे हैं जो सहस्त्र सूर्य के सामान प्रकाशवान हैं जिनके पास त्रिशूल हैं जिनका कोई मूल नहीं हैं जिनमे किसी भी मूल का नाश करने की शक्ति हैं ऐसे त्रिशूल धारी माँ भगवती के पति जो प्रेम से जीते जा सकते हैं उन्हें मैं वन्दन करता हूँ |

जो काल के बंधे नहीं हैं, जो कल्याणकारी हैं, जो विनाशक भी हैं,जो हमेशा आशीर्वाद देते है और धर्म का साथ देते हैं , जो अधर्मी का नाश करते हैं, जो चित्त का आनंद हैं, जो जूनून हैं जो मुझसे खुश रहे ऐसे भगवान जो कामदेव नाशी हैं उन्हें मेरा प्रणाम |

जो यथावत नहीं हैं, ऐसे उमा पति के चरणों में कमल वन्दन करता हैं ऐसे भगवान को पूरे लोक के नर नारी पूजते हैं, जो सुख हैं, शांति हैं, जो सारे दुखो का नाश करते हैं जो सभी जगह वास करते हैं |

मैं कुछ नहीं जानता, ना योग, न जप न ही पूजा, हे देव मैं आपके सामने अपना मस्तक हमेशा झुकाता हूँ, सभी संसारिक कष्टों, दुःख दर्द से मेरी रक्षा करे. मेरी बुढ़ापे के कष्टों से से रक्षा करें | मैं सदा ऐसे शिव शम्भु को प्रणाम करता हूँ |

"शिव रुद्राष्टकम: भगवान शिव की दिव्यता और उनकी स्तुति का सम्पूर्ण रहस्य"
“शिव रुद्राष्टकम: भगवान शिव की दिव्यता और उनकी स्तुति का सम्पूर्ण रहस्य!

श्री रुद्राष्टकम् – मैं निर्वाण स्वरूप भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ

मैं निर्वाणस्वरूप भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ
ईश्वर ब्रह्म वेद का व्यापक स्वरूप है
उसका अपना, पारलौकिक, पारलौकिक, निःस्वार्थ
मैं चेतना के आकाश, आकाश के निवास की पूजा करता हूं।

निराकार मोनकारा जड़ चौथी है
पहाड़ों के भगवान, जो शब्दों के ज्ञान से परे हैं।
भयानक, महान समय, समय, दयालु
मैं गुणों की पारलौकिक दुनिया को नमन करता हूं।

वह बर्फ के पहाड़ की तरह सफ़ेद और गहरा था
शरीर लाखों मनों और प्राणियों की चमक है।
स्फुरन्मूलिकल्लोलिनि चारुगन्गा
चमकती दाढ़ी वाला एक सांप और गले में चंद्रमा।

उसके कानों में घूमती हुई बालियाँ और भौंहों के साथ बड़ी-बड़ी आँखें थीं
उनका चेहरा प्रसन्नचित्त, नीला गला और दयालु हृदय था।
उसने हिरण की खाल पहन रखी थी और सिर पर टोपी पहन रखी थी
मैं सभी के स्वामी, अपने प्रिय भगवान शिव की पूजा करता हूं।

जबरदस्त, उत्कृष्ट, गौरवशाली, देवताओं के भगवान
अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान दीप्तिमान।
तीन भालों वाला विनाशक, भालाधारी
मैं उस देवी की पूजा करता हूं, जो भक्ति से प्राप्त की जा सकती है।

कलाहीन कल्याण ही युग का अंत है
पुरारि, सदा धर्मियों को आनन्द देने वाले।
चिदानंदसंदोहा भ्रमवादी
मुझ पर दया करो, हे भगवान, मुझ पर दया करो, हे मन्मथारी।

उमा नाथ के चरण कमलों तक नहीं
वे इस दुनिया में या अगले दुनिया में पुरुषों की पूजा करते हैं।
सुख उतना नहीं जितना शांति और दुःख निवारण
दया करो, हे भगवान, सभी प्राणियों के निवास स्थान।

मैं योग, जप, पूजा-पाठ नहीं जानता
हे शम्भू, मैं सदैव आपको प्रणाम करता हूँ।
बुढ़ापे और जन्म की बाढ़ से पीड़ित
भगवान, संकट में मेरी रक्षा करें, हे भगवान शंभो।

इस रुद्राष्टकम का पाठ ब्राह्मण द्वारा भगवान श्रीहरि को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है
भगवान शंभु उन लोगों से प्रसन्न होते हैं जो इसका भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं।

Sri Rudrashtakam – I bow to Lord Shiva, the form of Nirvana

I bow to Lord Shiva, the form of Nirvana
The Lord is the pervading form of the Brahma Veda
His own, transcendental, transcendental, selfless
I worship the sky of consciousness, the abode of the sky.

The formless Monkara root is the fourth
The Lord of the mountains, who is transcended by the knowledge of the words.
The terrible, the great time, the time, the merciful
I bow to the transcendental world of virtues.

It was white and deep like a snow mountain
The body is the radiance of millions of minds and beings.
Sphuranmaulikallolini charuganga
A serpent with a shining beard and a moon around her neck.

He had moving earrings and large eyes with brows
He had a cheerful face, a blue throat and a kind heart.
He was dressed in the skin of a deer and wore a headdress
I worship my dear Lord Śiva, the Lord of all.

The tremendous, the outstanding, the proud, the Lord of the gods
The unbroken, unborn, radiant like millions of suns.
The three-speared eradicator, the spear-bearer
I worship the Lord of the goddess, who is attainable by devotion.

Artless welfare is the end of the age
Purari, always the giver of joy to the righteous.
Chidanandasandoha delusionist
Have mercy on me, O Lord, have mercy on me, O Manmathari.

Not until the lotus feet of Uma Nath
They worship men in this world or in the next.
Not so much happiness as peace and the relief of sorrow
Have mercy, O Lord, the abode of all beings.

I do not know yoga, chanting or worship
I always bow down to You, Lord Śambhu.
tormented by the flood of old age and birth
Lord, protect me in distress, O Lord Shambho.

This Rudrashtakam is recited by a brahmin to satisfy Lord Hari
Lord Śambhu is pleased with those who recite it with devotion.

रुद्राष्टकम के श्लोकों का अर्थ

रुद्राष्टकम के प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव के विभिन्न गुणों और स्वरूप का वर्णन किया गया है।

पहला श्लोक

इस श्लोक में भगवान शिव को अजय, अमृत, और अखंड बताया गया है। शिव को वह ईश्वर कहा गया है जो मोह-माया और त्रिगुणों से परे हैं।

दूसरा श्लोक

भगवान शिव के निराकार और निर्गुण स्वरूप की व्याख्या की गई है। उन्हें समस्त सृष्टि के मूल और परमात्मा के रूप में वर्णित किया गया है।

तीसरा श्लोक

इसमें शिव के शांतिपूर्ण और निर्मल स्वरूप का वर्णन है। भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी, भूतनाथ, और सत्य का प्रतीक बताया गया है।

चौथा श्लोक

यह श्लोक शिव के अद्वितीय रूप और उनके सर्वज्ञाता होने की पुष्टि करता है।

पांचवां से आठवां श्लोक

इन श्लोकों में भगवान शिव की दया, स्नेह, और भक्तों के प्रति उनकी कृपा का वर्णन किया गया है।


शिव रुद्राष्टकम का महत्व

रुद्राष्टकम केवल भगवान शिव की स्तुति नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति को आत्मा की गहराई में जाकर ध्यान और शांति प्राप्त करने का माध्यम भी है।

  1. भौतिक लाभ: इसके पाठ से धन, स्वास्थ्य, और सुख-शांति प्राप्त होती है।
  2. आध्यात्मिक लाभ: यह व्यक्ति के मन और आत्मा को शुद्ध करता है और भगवान के प्रति भक्ति बढ़ाता है।
  3. संकटों का समाधान: रुद्राष्टकम के नियमित पाठ से जीवन के संकट, कष्ट, और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

भगवान शिव का स्वरूप

भगवान शिव को महादेव, त्रिनेत्रधारी, और जगत के संहारक के रूप में जाना जाता है। रुद्राष्टकम में भगवान शिव को जटाधारी, नागों से अलंकृत, और गंगा जल से सुशोभित दिखाया गया है। उनका नीलकंठ स्वरूप, जो समुद्र मंथन में विष पान के कारण बना, उनकी त्याग और दया का प्रतीक है।


शिव रुद्राष्टकम का पाठ और उसका समय

रुद्राष्टकम का पाठ करने का सर्वश्रेष्ठ समय प्रातःकाल और संध्याकाल है। विशेष रूप से श्रावण मास और महाशिवरात्रि के दौरान इसका पाठ अधिक फलदायी होता है। इसे शांत चित्त होकर, स्नान के बाद, भगवान शिव के समक्ष बैठकर पढ़ा जाना चाहिए।


रुद्राष्टकम के पाठ से लाभ

  1. शांति का अनुभव: मन और आत्मा को गहन शांति मिलती है।
  2. नकारात्मकता का अंत: जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होती है।
  4. रोगों से मुक्ति: भगवान शिव की आराधना से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

रुद्राष्टकम का प्रभाव

रुद्राष्टकम का प्रभाव इतना मूल्यवान है कि यह व्यक्ति के जीवन को बाधामुक्त और सकारात्मकता से भर देता है। जो लोग नियमित रूप से इसका पाठ करते हैं, उन्हें भगवान शिव की असीम कृपा मिलती है।


शिव रुद्राष्टकम भगवान शिव की स्तुति का सबसे अद्भुत और शक्तिशाली माध्यम है। यह हमें सिखाता है कि भगवान शिव सभी के रक्षक, पालक, और संहारक हैं। रुद्राष्टकम के माध्यम से भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण व्यक्त करें और अपने जीवन को आध्यात्मिकता और शांति से भरें।

शिव रुद्राष्टकम पर महत्वपूर्ण FAQs

1. शिव रुद्राष्टकम क्या है?

शिव रुद्राष्टकम भगवान शिव की स्तुति के लिए रचित आठ श्लोकों का एक संग्रह है। इसकी रचना संत तुलसीदास ने की थी।

2. शिव रुद्राष्टकम किसने लिखा है?

शिव रुद्राष्टकम की रचना संत तुलसीदास ने की थी, जो श्रीरामचरितमानस के रचयिता भी हैं।

3. रुद्राष्टकम का अर्थ क्या है?

“रुद्र” भगवान शिव का एक नाम है और “अष्टकम” का अर्थ आठ श्लोकों का संग्रह। रुद्राष्टकम भगवान शिव की महिमा और स्वरूप का वर्णन करता है।

4. शिव रुद्राष्टकम क्यों महत्वपूर्ण है?

शिव रुद्राष्टकम भगवान शिव की सर्वशक्तिमानता, करुणा, और भक्तों पर कृपा को व्यक्त करता है। इसका पाठ आत्मा को शुद्ध करता है और मन को शांति प्रदान करता है।

5. शिव रुद्राष्टकम का पाठ कब करना चाहिए?

सुबह के समय स्नान के बाद और शाम को भगवान शिव के समक्ष इसका पाठ करना सबसे शुभ माना जाता है।

6. रुद्राष्टकम का पाठ कैसे करें?

शांत मन और भक्ति भाव से भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर इसे पढ़ें। इसे पाठ के दौरान शिवलिंग पर जल चढ़ाना भी शुभ होता है।

7. रुद्राष्टकम का पाठ करने के क्या लाभ हैं?

इसके पाठ से सकारात्मक ऊर्जा, आध्यात्मिक शांति, और संकटों का निवारण होता है। यह मन को शांत करता है और आत्मा को शुद्ध करता है।

8. रुद्राष्टकम का पाठ किस पर्व पर विशेष फलदायी है?

महाशिवरात्रि, श्रावण मास, और सोमवार के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।

9. क्या रुद्राष्टकम का पाठ सभी कर सकते हैं?

हां, रुद्राष्टकम का पाठ कोई भी व्यक्ति आस्था और भक्ति भाव से कर सकता है।

10. रुद्राष्टकम में भगवान शिव का कौन-सा स्वरूप वर्णित है?

रुद्राष्टकम में भगवान शिव के निर्गुण और निराकार स्वरूप का वर्णन है। इसमें शिव को जटाधारी, त्रिनेत्रधारी, और नीलकंठ के रूप में दर्शाया गया है।

11. क्या रुद्राष्टकम का पाठ सभी समस्याओं का समाधान करता है?

हां, इसकी शक्तिशाली ऊर्जा और भगवान शिव की कृपा से जीवन के संकट, कष्ट, और नकारात्मकता का अंत होता है।

12. शिव रुद्राष्टकम के आठ श्लोकों का मुख्य भाव क्या है?

इन श्लोकों में भगवान शिव की महिमा, स्वरूप, और उनकी दया का वर्णन किया गया है। यह स्तुति उनके आध्यात्मिक प्रभाव और स्नेह को प्रकट करती है।

13. क्या रुद्राष्टकम का पाठ केवल संस्कृत में करना अनिवार्य है?

संस्कृत में पाठ करना शुभ होता है, लेकिन अगर संस्कृत में पढ़ना कठिन हो, तो इसका हिंदी अनुवाद या अन्य भाषाओं में भी पढ़ा जा सकता है।

14. क्या रुद्राष्टकम से जीवन में धन और स्वास्थ्य लाभ मिलता है?

हां, इसका नियमित पाठ धन, स्वास्थ्य, और शांति प्रदान करता है। यह जीवन में सकारात्मकता और सफलता लाता है।

15. क्या शिव रुद्राष्टकम केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए है?

नहीं, यह केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए नहीं है। इसे कोई भी व्यक्ति शांति, संकट निवारण, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए पढ़ सकता है।

हर हर महादेव!
जय शिव शंकर!

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