नवरात्रि में ऐसे करें माँ दुर्गा की मूर्ति (Statue) की प्राण प्रतिष्ठा, पूरी विधि जानें!
नवरात्रि का पर्व माँ दुर्गा की उपासना का सबसे पवित्र समय होता है। इस दौरान भक्त माँ की मूर्ति (Statue) स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा कर विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं। माँ दुर्गा की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करने से वह केवल एक प्रतिमा नहीं रहती, बल्कि उसमें दैवीय शक्ति का वास होता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि नवरात्रि में माँ दुर्गा की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करें और किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
प्राण प्रतिष्ठा एक वैदिक अनुष्ठान है, जिसमें किसी देव प्रतिमा में दैवीय शक्ति को आमंत्रित किया जाता है। यह प्रक्रिया मूर्ति को सजीव बनाती है, जिससे वह केवल एक कलाकृति न रहकर ईश्वरीय शक्ति का केंद्र बन जाती है। जब मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होती है, तो वह एक ऊर्जावान और पूजनीय रूप ले लेती है।
प्राण प्रतिष्ठा के बिना मूर्ति की पूजा करना उतना प्रभावी नहीं माना जाता। इस अनुष्ठान से माँ दुर्गा स्वयं उस मूर्ति में स्थापित हो जाती हैं और भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं।
प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के लिए कुछ आवश्यक पूजा सामग्री की जरूरत होती है। इन सामग्रियों को पहले से तैयार कर लेना चाहिए ताकि विधि पूरी तरह सही हो सके।
माँ दुर्गा की मूर्ति स्थापना के लिए सही स्थान और दिशा बहुत महत्वपूर्ण होती है। गलत दिशा या स्थान में मूर्ति स्थापित करने से पूजा का पूरा फल नहीं मिलता।
प्राण प्रतिष्ठा के बाद माँ दुर्गा की विशेष पूजा करें। पूजा विधि इस प्रकार है:
माँ दुर्गा की प्राण प्रतिष्ठा नवरात्रि के दौरान एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिससे मूर्ति में दैवीय ऊर्जा का संचार होता है। सही विधि से की गई प्राण प्रतिष्ठा से माँ दुर्गा अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाती हैं। यदि आप सच्चे मन से माँ दुर्गा की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा और पूजा करेंगे, तो माँ की कृपा आप पर सदैव बनी रहेगी।
उत्तर: प्राण प्रतिष्ठा एक वैदिक अनुष्ठान है, जिसमें किसी मूर्ति में दैवीय शक्ति का संचार किया जाता है, जिससे वह केवल प्रतिमा न रहकर पूजनीय रूप ले लेती है।
उत्तर: नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजा विशेष रूप से की जाती है, क्योंकि इन नौ दिनों में संपूर्ण ब्रह्मांड में देवी शक्ति का प्रभाव अधिक होता है।
उत्तर: गंगाजल, कलश, नारियल, हल्दी, चंदन, कुमकुम, धूप, दीप, अगरबत्ती, फूल, पंचामृत, लाल वस्त्र, सुपारी, नौ प्रकार के अनाज और प्रसाद आदि।
उत्तर: पूजा स्थल में उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) को सबसे शुभ माना जाता है।
उत्तर: हाँ, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा के बिना मूर्ति केवल एक प्रतिमा रहती है, उसमें देवी की शक्ति का पूर्ण संचार नहीं होता।
उत्तर: मूर्ति को शुद्ध जल से स्नान कराकर, वैदिक मंत्रों का उच्चारण करके, देवी का ध्यान और संकल्प लेकर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।
उत्तर: यदि कोई पूरी श्रद्धा और सही विधि से करना जानता है, तो कर सकता है। अन्यथा किसी पुरोहित या विद्वान ब्राह्मण से करवाना उचित होता है।
उत्तर: नहीं, जब तक नवरात्रि समाप्त नहीं होती, तब तक मूर्ति को इधर-उधर नहीं हटाना चाहिए।
उत्तर: नवरात्रि के अंतिम दिन मूर्ति की पूजा कर उसे गंगाजल से शुद्ध करके किसी पवित्र नदी या जल स्रोत में विसर्जित किया जाता है।
उत्तर: हाँ, इस मंत्र का जाप किया जाता है –
“ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”
उत्तर: हाँ, लेकिन घर में छोटी मूर्ति (9 इंच से कम) रखना शुभ माना जाता है।
उत्तर: हाँ, यदि मूर्ति स्थायी रूप से रखी गई हो, तो उसे हटा देना अशुभ माना जाता है।
उत्तर: हाँ, यदि विधि और मंत्रों का सही ज्ञान हो तो कोई भी श्रद्धालु कर सकता है।
उत्तर:
उत्तर: हाँ, मूर्ति का अपमान या लापरवाही करना अत्यंत अशुभ और महापाप माना जाता है।
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