नवरात्रि (Navratri) की रहस्यमयी कहानियाँ! जानें नवरात्रि से जुड़ी अद्भुत पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ!
नवरात्रि (Navratri) भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे पूरे देश में धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का अर्थ है “नौ रातें”, जिसमें हर दिन देवी दुर्गा के एक रूप को समर्पित होता है। इस पर्व के पीछे कई पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ हैं, जो इसे और भी विशेष बनाती हैं। इस लेख में हम नवरात्रि से जुड़ी प्रमुख कथाएँ, मान्यताएँ और धार्मिक महत्व को विस्तार से समझेंगे।
नवरात्रि का मुख्य उद्देश्य असुर शक्तियों पर देवी दुर्गा की विजय का उत्सव मनाना है। इसे अध्यात्मिक शुद्धिकरण और आत्मशक्ति को जागृत करने का समय माना जाता है। नवरात्रि का वर्णन कई हिंदू ग्रंथों में मिलता है, विशेष रूप से मार्कंडेय पुराण और देवी भागवत पुराण में।
इस पर्व का संबंध भगवान राम और रावण से भी जोड़ा जाता है। माना जाता है कि भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले मां दुर्गा की पूजा की थी, जिसे अकाल बोधन कहा जाता है। इस पूजा के बाद ही उन्हें शक्ति प्राप्त हुई और उन्होंने दशहरे के दिन रावण का वध किया।
नवरात्रि की सबसे प्रमुख कथा मां दुर्गा और महिषासुर से जुड़ी है। कहा जाता है कि महिषासुर, जो एक शक्तिशाली असुर था, ने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान प्राप्त कर लिया। ब्रह्मा जी ने कहा कि उसे सिर्फ एक स्त्री द्वारा मारा जा सकता है। इस वरदान से अहंकारी होकर, महिषासुर ने तीनों लोकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया और देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया।
देवताओं ने भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा से प्रार्थना की, जिसके बाद उनकी संयुक्त ऊर्जा से मां दुर्गा का प्राकट्य हुआ। मां दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से भयंकर युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया। इस कारण दशहरे का पर्व भी मनाया जाता है। यह कथा असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है।
नवरात्रि का संबंध रामायण से भी है। जब भगवान राम, लंका विजय के लिए समुद्र किनारे पहुंचे, तब उन्होंने मां दुर्गा की उपासना की थी। उन्होंने 108 नीले कमल अर्पित किए, लेकिन परीक्षा के रूप में एक कमल गायब हो गया। तब श्रीराम ने अपनी एक आंख मां को अर्पित करने का संकल्प लिया, लेकिन तभी मां दुर्गा प्रकट हुईं और उन्होंने श्रीराम को विजयी होने का आशीर्वाद दिया।
इसके बाद ही राम ने रावण का वध किया, और इसीलिए नवरात्रि के बाद दशहरा (विजयादशमी) मनाया जाता है। इस कथा से यह भी समझ आता है कि नवरात्रि केवल मां दुर्गा की पूजा का पर्व ही नहीं, बल्कि शक्ति, भक्ति और विजय का प्रतीक भी है।
अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है, जिसमें छोटी कन्याओं को भोजन कराकर मां दुर्गा का रूप माना जाता है। यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि नारी शक्ति ही सृष्टि की मूल ऊर्जा है।
कहानी के अनुसार, जब मां काली रक्तबीज नामक राक्षस से युद्ध कर रही थीं, तब उन्होंने कन्या रूप में अवतार लिया था। यही कारण है कि नवरात्रि में कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप मानकर पूजित किया जाता है।
नवरात्रि मुख्य रूप से दो बार मनाई जाती है:
इसके अलावा गुप्त नवरात्रि भी होती है, जो मुख्य रूप से तांत्रिक साधनाओं के लिए जानी जाती है।
गुजरात और महाराष्ट्र में नवरात्रि के दौरान गरबा और डांडिया का आयोजन किया जाता है। गरबा मां अंबा की आराधना का प्रतीक है, जिसमें लोग गोल घेरे में नृत्य करते हैं।
डांडिया खेलना देवी और असुरों के युद्ध का प्रतीक माना जाता है, जिसमें डांडिया मां दुर्गा की तलवार का प्रतीक होता है। इस उत्सव में शामिल होना आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने और भक्ति में रमने का एक सुंदर तरीका है।
नवरात्रि में व्रत रखना शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का एक तरीका माना जाता है। यह सात्त्विक भोजन अपनाने और बुरी आदतों को छोड़ने का समय होता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी, यह समय ऋतु परिवर्तन का होता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए हल्का और पौष्टिक आहार लेना लाभदायक होता है। व्रत के दौरान फलाहार, साबूदाना, कुट्टू आटा, सिंघाड़ा आटा आदि का सेवन किया जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है, जिसमें मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोए जाते हैं। यह समृद्धि और उन्नति का प्रतीक माना जाता है।
हर दिन मां दुर्गा के एक रूप की पूजा की जाती है:
नवरात्रि के दौरान कई साधक विशेष साधनाएँ और मंत्र जप करते हैं। इसमें शक्तिपीठों की यात्रा, चंडी पाठ, और हवन प्रमुख हैं।
कुछ लोग इस दौरान शत्रु नाश, व्यापार वृद्धि और परिवार कल्याण के लिए नौ दिनों तक विशेष पूजा करते हैं। यह समय नकारात्मक ऊर्जा से बचने और आध्यात्मिक उन्नति का होता है।
नवरात्रि सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें व्यक्ति मां दुर्गा की कृपा प्राप्त कर सकता है। यह पर्व भक्ति, शक्ति और साधना का संगम है, जो हमें अच्छाई की राह पर चलने की प्रेरणा देता है।
नवरात्रि का अर्थ है “नौ रातें”, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व अशुभ शक्तियों के नाश और शुभता की स्थापना का प्रतीक है।
मुख्य रूप से दो प्रकार की नवरात्रि होती हैं:
नवरात्रि में मां दुर्गा के निम्नलिखित नौ रूपों की पूजा की जाती है:
नवरात्रि का मुख्य उद्देश्य असुर शक्तियों पर देवी दुर्गा की विजय का उत्सव मनाना है। यह पर्व आध्यात्मिक शक्ति, आत्मशुद्धि और भक्ति का प्रतीक है।
कलश स्थापना को मां दुर्गा के आह्वान का प्रतीक माना जाता है। यह समृद्धि, ऊर्जा और मंगल कार्यों का सूचक होता है।
नवरात्रि में व्रत रखने से शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि होती है। यह सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है और इच्छाशक्ति मजबूत करता है।
गरबा और डांडिया गुजरात और महाराष्ट्र में नवरात्रि के दौरान खेले जाते हैं। गरबा मां अंबा की आराधना का प्रतीक है और डांडिया देवी और असुरों के युद्ध को दर्शाता है।
नवरात्रि के अष्टमी और नवमी दिन कन्या पूजन किया जाता है। इसमें छोटी कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप मानकर भोजन कराया जाता है।
महिषासुर को भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान मिला था कि उसे केवल एक स्त्री ही मार सकती है। मां दुर्गा ने नौ दिनों तक युद्ध कर दसवें दिन उसका वध किया, जिसे विजयादशमी (दशहरा) के रूप में मनाया जाता है।
भगवान राम ने रावण वध से पहले मां दुर्गा की उपासना की थी, जिसे अकाल बोधन कहा जाता है। इसके बाद ही वे रावण का वध कर सके, इसलिए नवरात्रि के बाद दशहरा मनाया जाता है।
नवरात्रि में विशेष रूप से “ॐ दुं दुर्गायै नमः” और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्रों का जप करना शुभ माना जाता है।
गुप्त नवरात्रि मुख्य रूप से तांत्रिक साधना, मंत्र सिद्धि और विशेष पूजा-पाठ के लिए होती है। इसे आमतौर पर साधक और तांत्रिकों द्वारा किया जाता है।
नवरात्रि में चंडी पाठ, दुर्गा सप्तशती का पाठ, हवन, मां दुर्गा के 108 नामों का जाप और अखंड ज्योति जलाना विशेष रूप से किया जाता है।
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