नवरात्रि (Navratri) के 9 देवियों की रहस्यमयी कहानियाँ: जानिए देवी के हर स्वरूप की पौराणिक कथा!
नवरात्रि (Navratri) एक प्रमुख हिंदू पर्व है, जिसमें मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है। इन नौ दिनों में प्रत्येक दिन देवी के एक अलग स्वरूप की पूजा होती है। हर स्वरूप की अपनी अलग पहचान, शक्ति और पौराणिक कथा है, जो हमें जीवन में अच्छाई की राह पर चलने की प्रेरणा देती है। इस लेख में हम नवरात्रि के नौ देवियों से जुड़ी कहानियों को विस्तार से जानेंगे।
पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। इनका नाम “शैलपुत्री” इसलिए पड़ा क्योंकि यह राजा हिमालय की पुत्री हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, मां शैलपुत्री का पूर्व जन्म में नाम सती था और वे भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार उनके पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ किया और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब सती वहां पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि यज्ञ में भगवान शिव का अपमान किया जा रहा है। इस अपमान को सहन न कर पाने के कारण उन्होंने आग में कूदकर आत्मदाह कर लिया। इसके बाद अगले जन्म में वे राजा हिमालय के घर जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
मां शैलपुत्री को नंदी पर सवार दिखाया जाता है। इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमल होता है। इनकी पूजा से मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है।
दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इनका नाम ब्रह्मचारिणी इसलिए पड़ा क्योंकि इन्होंने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्राप्त किया था।
कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी ने हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की। वे कई सालों तक सिर्फ फल-फूलों पर रहीं और फिर कई वर्षों तक निर्जल रहकर भगवान शिव को प्रसन्न किया। उनकी इस कठोर तपस्या को देखकर देवताओं ने उनकी परीक्षा ली, लेकिन वे अडिग रहीं। अंततः भगवान शिव ने उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर विवाह का संकल्प लिया।
मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और उनके एक हाथ में जप माला तथा दूसरे हाथ में कमंडल होता है। इनकी पूजा से धैर्य, संयम और आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है।
तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है। इनके मस्तक पर अर्धचंद्राकार घंटे की आकृति होती है, जिससे इन्हें यह नाम मिला।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब मां पार्वती और भगवान शिव का विवाह तय हुआ, तब भगवान शिव अपनी भयंकर रूप में बारात लेकर आए। उनकी यह स्थिति देखकर देवी पार्वती ने चंद्रघंटा का रूप धारण कर लिया और भगवान शिव को शांत किया।
मां चंद्रघंटा सिंह पर सवार रहती हैं और इनके दस हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र होते हैं। इनकी कृपा से भक्तों को भयमुक्त जीवन मिलता है और उनके जीवन में शांति और सौभाग्य आता है।
चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है। इन्हें सृष्टि की रचनाकार भी कहा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब संसार में कुछ भी नहीं था, तब मां कूष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। इसलिए इन्हें “कूष्मांडा” नाम से जाना जाता है।
मां कूष्मांडा अष्टभुजा वाली देवी हैं और सूर्य के भीतर निवास करती हैं। इनकी उपासना से आरोग्य, दीर्घायु और समृद्धि प्राप्त होती है।
पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। वे भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब असुर तारकासुर ने अत्याचार बढ़ा दिए, तब भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने उसका वध किया। मां पार्वती को स्कंदमाता के रूप में पूजा जाता है।
मां स्कंदमाता सिंह पर सवार रहती हैं और अपनी गोद में भगवान कार्तिकेय को लिए रहती हैं। इनकी कृपा से संतान सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है।
महर्षि कात्यायन ने कठिन तपस्या कर मां दुर्गा से वरदान प्राप्त किया कि वे उनकी पुत्री के रूप में जन्म लें। इसके बाद माता ने राक्षस महिषासुर का वध किया।
मां कात्यायनी चार भुजाओं वाली देवी हैं और सिंह पर सवार रहती हैं। इनकी पूजा से साहस, वीरता और विजय प्राप्त होती है।
सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है।
जब रक्तबीज नामक असुर का वध करना असंभव हो गया, तब मां कालरात्रि ने उसे मारने के लिए अपना भयंकर रूप धारण किया।
मां कालरात्रि काले रंग की हैं और इनके गले में ज्वलंत माला है। इनकी उपासना से भय, शत्रु और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
आठवें दिन मां महागौरी की पूजा होती है।
कहा जाता है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक घोर तपस्या की, जिससे उनका शरीर काला पड़ गया। जब भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए, तो उन्होंने गंगा जल से स्नान कराया, जिससे वे गौरी (श्वेत) हो गईं।
मां महागौरी श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनकी पूजा से पवित्रता और सुख-शांति प्राप्त होती है।
नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, इन्होंने भगवान शिव को अष्ट सिद्धियाँ प्रदान कीं, जिससे भगवान शिव का “अर्धनारीश्वर” रूप प्रकट हुआ।
मां सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान रहती हैं और इनकी पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
नवरात्रि (Navratri) में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करने से जीवन में धन, समृद्धि, शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। हर देवी की अपनी एक अलग कथा और महत्व है, जो हमें धर्म, संयम, साहस और शक्ति का संदेश देती है। इस पावन पर्व पर हमें सच्चे मन से भक्ति करनी चाहिए ताकि देवी की कृपा हम पर बनी रहे।
नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। ये स्वरूप क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं।
मां शैलपुत्री राजा हिमालय की पुत्री हैं। इनका पूर्व जन्म सती के रूप में हुआ था, जिन्होंने राजा दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह किया था। अगले जन्म में वे पार्वती के रूप में प्रकट हुईं।
मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने हजारों वर्षों तक कठिन व्रत किए, जिससे उनका यह नाम पड़ा।
मां चंद्रघंटा सिंह पर सवार हैं और उनके मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार का घंटे जैसा निशान है। इनके दस हाथों में विभिन्न शस्त्र हैं। इनकी पूजा से भय और संकट दूर होते हैं।
जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, तब मां कूष्मांडा ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। इसलिए इन्हें सृजन की देवी कहा जाता है।
मां स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं। उनकी गोद में स्कंद विराजमान रहते हैं। इनकी उपासना से संतान सुख और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
महर्षि कात्यायन ने कठोर तपस्या करके देवी को पुत्री रूप में पाने का वरदान मांगा। मां दुर्गा ने उनकी कन्या के रूप में जन्म लिया और महिषासुर का वध किया।
मां कालरात्रि ने रक्तबीज नामक राक्षस को मारने के लिए भयंकर रूप धारण किया। वे काले रंग की, विकराल आंखों और खुले केशों वाली देवी हैं, जो भूत-प्रेत और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।
मां महागौरी एकदम श्वेत रंग की हैं और सफेद वस्त्र धारण करती हैं। कठोर तपस्या के कारण उनका शरीर काला पड़ गया था, लेकिन भगवान शिव के जल से स्नान करने के बाद वे गौरी (श्वेत) रूप में प्रकट हुईं।
मां सिद्धिदात्री आठ सिद्धियों की दात्री हैं। उन्होंने भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप प्रदान किया था। इनकी पूजा से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
नवरात्रि में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा से धर्म, शक्ति, भक्ति, ज्ञान, विजय और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह आत्मशुद्धि और शक्ति संचय का पर्व है।
मां दुर्गा सम्पूर्ण शक्ति स्वरूपा हैं, जबकि नवदुर्गा उनके नौ अलग-अलग स्वरूप हैं, जो विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रकट हुए हैं।
मां दुर्गा के हाथों में तलवार, त्रिशूल, गदा, चक्र, धनुष-बाण आदि होते हैं, जो शक्ति, ज्ञान, साहस, विजय और संतुलन का प्रतीक हैं।
नवरात्रि के अंतिम दिन कन्या पूजन इसलिए किया जाता है क्योंकि कन्याओं को मां दुर्गा का ही स्वरूप माना जाता है। इन्हें भोजन और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लिया जाता है।
नवरात्रि के प्रत्येक दिन एक विशेष रंग का महत्व होता है, जैसे –
यह रंग मनोबल को बढ़ाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं।
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