अष्टमी या नवमी? जानिए सही विधि और शुभ मुहूर्त में कन्या पूजन (Kanya Pujan) का रहस्य!
नवरात्रि में कन्या पूजन (Kanya Pujan) का विशेष महत्व है। यह पूजन मां दुर्गा के नव रूपों को समर्पित होता है। हिंदू धर्म में कन्याओं को देवी का स्वरूप माना जाता है, इसलिए अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन कर उनकी पूजा और भोजन कराया जाता है। लेकिन एक सवाल हमेशा रहता है – अष्टमी पर कन्या पूजन करें या नवमी पर? इस लेख में हम आपको कन्या पूजन विधि, उसकी महत्ता, और सही दिन की जानकारी देंगे।
हिंदू धर्म में कन्या पूजन को सौभाग्य, समृद्धि और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह पूजन अष्टमी और नवमी तिथि पर किया जाता है, क्योंकि इन दिनों को दुर्गा अष्टमी और राम नवमी के रूप में मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार, जब देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, तब देवताओं ने कन्याओं के रूप में उनकी आराधना की थी। इसीलिए, नव दुर्गा के रूप में नौ कन्याओं को पूजने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से कन्या पूजन करता है, उसे मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है कि अष्टमी पर कन्या पूजन करना चाहिए या नवमी पर।
📌 अष्टमी पर कन्या पूजन
📌 नवमी पर कन्या पूजन
📌 निष्कर्ष
यदि नवमी तिथि संध्या तक है, तो अष्टमी को पूजन करें। लेकिन यदि अष्टमी का समय बहुत कम हो और नवमी का दिन पूर्ण हो, तो नवमी को कन्या पूजन करना उत्तम होता है।
कन्या पूजन (Kanya Pujan) के लिए निम्नलिखित सामग्री का उपयोग किया जाता है:
✔ कलश और आम के पत्ते
✔ रोली, अक्षत (चावल), हल्दी, कुमकुम
✔ सुपारी, नारियल, पुष्प और माला
✔ कन्याओं के लिए साफ वस्त्र, चुनरी और चूड़ियां
✔ दक्षिणा (धन या उपहार)
✔ भोग: पूरी, हलवा, चना
इन सभी सामग्रियों को एकत्र कर, कन्या पूजन विधि का पालन किया जाता है।
सबसे पहले नौ कन्याओं को घर बुलाया जाता है। यदि नौ कन्याएं उपलब्ध न हों, तो पांच या सात कन्याएं भी पूजन के लिए मान्य हैं।
कन्याओं को साफ वस्त्र पहनने के लिए दिए जाते हैं और उन्हें सम्मानपूर्वक आसन पर बैठाया जाता है।
कन्याओं को हलवा, पूरी और चने का प्रसाद दिया जाता है।
अंत में, कन्याओं से आशीर्वाद लिया जाता है, जिससे मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।
📍 स्वच्छता का ध्यान रखें – पूजा स्थल और भोजन शुद्ध और स्वच्छ होना चाहिए।
📍 नौ कन्याओं के साथ एक बालक – अष्टमी/नवमी पूजन में एक बालक (बटुक भैरव) को भी भोजन कराना शुभ माना जाता है।
📍 भोग की पवित्रता – हलवा, पूरी और चना शुद्ध घी में बनाया जाना चाहिए।
📍 सही भावना से करें पूजन – कन्याओं को सिर्फ रस्म के रूप में न बुलाएं, बल्कि श्रद्धा और सम्मान से उनकी पूजा करें।
कई लोग यह सोचते हैं कि क्या कन्या पूजन घर में करना आवश्यक है या मंदिर में भी किया जा सकता है?
✅ घर में कन्या पूजन करने से पारिवारिक समृद्धि और सुख मिलता है।
✅ मंदिर में कन्या पूजन करने से समाज में पुण्य बढ़ता है और गरीब कन्याओं को भोजन मिलता है।
✅ यदि किसी कारणवश आप कन्या पूजन नहीं कर सकते, तो आप गरीब कन्याओं को भोजन और वस्त्र दान कर सकते हैं।
कन्या पूजन नवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिससे मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। अष्टमी और नवमी दोनों ही शुभ दिन हैं, लेकिन तिथि और परिवार की परंपरा के अनुसार सही दिन चुना जाता है। कन्या पूजन से घर में सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा आती है। इसलिए, इसे सच्चे मन और श्रद्धा से करें और मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करें।
कन्या पूजन मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के लिए किया जाता है। कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उनकी पूजा करने से सुख, समृद्धि और शक्ति की प्राप्ति होती है।
कन्या पूजन नवरात्रि के अष्टमी या नवमी तिथि को किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी को पूजन करते हैं, जबकि कुछ नवमी पर इसे करना अधिक शुभ मानते हैं।
यदि नवमी तिथि संध्या तक हो, तो अष्टमी पर पूजन करें। लेकिन यदि अष्टमी का समय बहुत कम हो और नवमी का पूरा दिन उपलब्ध हो, तो नवमी को पूजन करना उत्तम माना जाता है।
कन्या पूजन में नौ कन्याओं का पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। यदि नौ कन्याएं उपलब्ध न हों, तो पांच या सात कन्याएं भी पूजी जा सकती हैं।
कन्या पूजन में एक बालक (बटुक भैरव) को शामिल करना शुभ माना जाता है। यह भैरव बाबा का प्रतीक होता है, जिससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
कन्या पूजन में हलवा, पूरी और चना का भोग अर्पित किया जाता है। इसे शुद्ध घी में बनाना शुभ माना जाता है।
📌 कन्याओं को सम्मानपूर्वक बैठाएं।
📌 भोजन और पूजन सामग्री शुद्ध और स्वच्छ हो।
📌 कन्याओं को प्रेमपूर्वक विदा करें और दक्षिणा दें।
नहीं, कन्या पूजन मंदिर में भी किया जा सकता है। यदि घर में संभव न हो, तो गरीब कन्याओं को भोजन और वस्त्र दान करना भी पुण्यदायक होता है।
यदि कोई व्यक्ति सक्षम होते हुए भी कन्या पूजन नहीं करता, तो उसे नवरात्रि के संकल्प का पूर्ण फल नहीं मिलता। परंतु, यदि किसी कारणवश यह संभव न हो, तो भोजन और वस्त्र दान करने से भी पुण्य प्राप्त होता है।
📖 कन्या पूजन में निम्नलिखित मंत्र बोले जाते हैं:
➡ “या देवी सर्वभूतेषु कन्या रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।”
2 से 10 वर्ष की आयु की कन्याएं पूजन के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं। वे निर्मल, मासूम और देवी के स्वरूप का प्रतीक होती हैं।
हाँ, यदि बाहर की कन्याएं न मिलें, तो अपने घर की कन्याओं का भी पूजन किया जा सकता है।
यदि नौ कन्याएं उपलब्ध न हों, तो पांच या सात कन्याओं का पूजन भी किया जा सकता है।
कन्या पूजन से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है, घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है, और व्यक्ति को पुण्य फल मिलता है।
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