रंगों वाली होली: (Holi) कब और कैसे मनाएं? जानें पूरी जानकारी!
होली (Holi) भारत का एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जिसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर फरवरी या मार्च में आता है। होली का संबंध प्रहलाद, हिरण्यकश्यप और होलिका की पौराणिक कथा से जुड़ा है। कहा जाता है कि असुर राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को मारने के लिए होलिका को आग में बैठने को कहा, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गए और होलिका जल गई। इसी की याद में होली दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है।
रंगों वाली होली होलिका दहन के अगले दिन मनाई जाती है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को रात में होलिका दहन होता है, और अगले दिन “धुलेंडी” या “रंग पंचमी” के रूप में लोग एक-दूसरे पर गुलाल, अबीर और रंग लगाते हैं। 2025 में रंगों वाली होली 14 मार्च को मनाई जाएगी। यह दिन मौसम परिवर्तन का भी प्रतीक होता है, क्योंकि ठंड के बाद गर्मी की शुरुआत होती है।
होली मनाने की परंपराएं पूरे भारत में अलग-अलग होती हैं। उत्तर भारत में लोग गुलाल और पानी वाले रंगों से खेलते हैं, जबकि मथुरा, वृंदावन और बरसाना में होली को विशेष अंदाज में मनाया जाता है। ब्रज की लट्ठमार होली, काशी की शिव होली, और राजस्थान की राजसी होली बहुत प्रसिद्ध हैं। घरों में गुजिया, मालपुआ, ठंडाई, दही-भल्ले जैसी मिठाइयाँ बनाई जाती हैं और लोग गीत-संगीत और नृत्य का आनंद लेते हैं।
भारत में कुछ स्थानों पर होली बहुत भव्य रूप से मनाई जाती है, जैसे –
होली में रंग खेलने के कई तरीके होते हैं:
होली खेलते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है:
होली केवल रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह प्यार, सौहार्द्र और भाईचारे का प्रतीक भी है। इस दिन शत्रु भी मित्र बन जाते हैं, लोग गिले-शिकवे भूलकर गले मिलते हैं। कई जगहों पर होली मिलन समारोह का आयोजन होता है, जहाँ लोग गायन, नृत्य और हंसी-मजाक का आनंद लेते हैं।
होली का मजा लोकगीतों और नृत्यों के बिना अधूरा है। कुछ लोकप्रिय होली गीत:
ढोल, मंजीरा और झालर के साथ होली के लोक नृत्य जैसे फाग नृत्य, घूमर और रसिया नृत्य किए जाते हैं।
होली एक खुशियों, उल्लास और मेल-जोल का पर्व है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है और समाज में भाईचारा, प्रेम और सद्भावना को बढ़ावा देता है। लेकिन हमें इस त्योहार को सुरक्षित, पर्यावरण के अनुकूल और सम्मानजनक तरीके से मनाना चाहिए। यदि हम प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करें, तो होली और भी रंगीन और यादगार बन सकती है। तो आइए, इस बार होली को मिलकर खेलें और इसे एक यादगार अनुभव बनाएं!
होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो आमतौर पर फरवरी या मार्च में पड़ती है। 2025 में होली 14 मार्च को मनाई जाएगी।
होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह त्योहार प्रहलाद, हिरण्यकश्यप और होलिका की पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें होलिका जल गई थी और प्रहलाद बच गए थे।
रंगों वाली होली होलिका दहन के अगले दिन, जिसे धुलेंडी कहते हैं, खेली जाती है।
होलिका दहन बुरी शक्तियों के नाश और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह प्रहलाद की भक्ति और भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक है।
मथुरा-वृंदावन, बरसाना, काशी, जयपुर, जोधपुर और शांतिनिकेतन में होली बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।
लट्ठमार होली बरसाना में खेली जाती है, जहाँ महिलाएँ लाठी (लट्ठ) से पुरुषों को मारती हैं, और पुरुष ढाल से खुद को बचाते हैं।
होली पर गुजिया, मालपुआ, दही-भल्ले, ठंडाई, कांजी, पकौड़े और पापड़ बनाए जाते हैं।
अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया और मॉरीशस में भारतीय समुदाय होली बड़े उत्साह से मनाता है।
पिचकारी और पानी के गुब्बारे मस्ती और आनंद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन पानी की बर्बादी से बचना चाहिए।
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ रंगों की होली खेली थी, इसलिए मथुरा-वृंदावन में होली विशेष रूप से मनाई जाती है।
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