नवरात्रि में पर्यावरण संरक्षण: (Environmental Conservation) जानिए कैसे पूजा के साथ बचाएं प्रकृति!
नवरात्रि केवल एक धार्मिक त्योहार ही नहीं बल्कि प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ा एक महत्वपूर्ण अवसर भी है। इस दौरान मां दुर्गा की पूजा के साथ-साथ हमें प्रकृति को भी संरक्षित रखने पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन आजकल इस पर्व में प्रदूषण, प्लास्टिक का उपयोग और जल की बर्बादी जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। अगर हम कुछ छोटे-छोटे पर्यावरण संरक्षण (Environmental Conservation) उपाय अपनाएं तो इस पर्व को और भी सकारात्मक और प्रकृति हितैषी बना सकते हैं।
आजकल प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) से बनी मूर्तियां जल प्रदूषण का मुख्य कारण बन रही हैं। ये जल्दी घुलती नहीं और जल में रसायन घोलकर जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाती हैं। इसके बजाय हमें मिट्टी, पेड़ के पत्तों और प्राकृतिक रंगों से बनी मूर्तियों का उपयोग करना चाहिए।
इसके अलावा, पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री जैसे फूल, पत्ते और अन्य जैविक चीजों को नदी में न बहाकर खाद (compost) बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा और प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग होगा।
नवरात्रि के दौरान घरों और पंडालों को सजाने के लिए कृत्रिम प्लास्टिक की सजावट का इस्तेमाल किया जाता है, जो बाद में कूड़े के रूप में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है। इसकी जगह हमें प्राकृतिक सजावट जैसे फूलों, पत्तियों, कागज की सजावट और मिट्टी के दीयों का उपयोग करना चाहिए।
साथ ही, रंगोली बनाने में रासायनिक रंगों की जगह चावल का आटा, हल्दी, चूना, फूलों की पंखुड़ियों आदि का उपयोग करें। इससे न केवल सुंदरता बढ़ेगी बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
नवरात्रि में लाउडस्पीकर और डीजे का अत्यधिक उपयोग ध्वनि प्रदूषण बढ़ा देता है। अधिक शोर से बुजुर्गों, छोटे बच्चों और पशु-पक्षियों को परेशानी होती है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि कम ध्वनि में भक्ति संगीत बजाएं और अनावश्यक शोर-शराबे से बचें।
अगर हम घर में ही भजन-कीर्तन करें और समूह में बैठकर मां दुर्गा की आराधना करें तो इससे धार्मिक माहौल भी अच्छा रहेगा और ध्वनि प्रदूषण भी नहीं होगा।
नवरात्रि में चमकदार लाइटिंग और बिजली की खपत बहुत अधिक बढ़ जाती है। इससे ऊर्जा की बर्बादी होती है और अनावश्यक कार्बन उत्सर्जन भी होता है। इसकी जगह हम मिट्टी के दीयों, मोमबत्तियों और LED बल्बों का उपयोग कर सकते हैं।
मिट्टी के दीये पर्यावरण के अनुकूल होते हैं और इनसे कुम्हारों को भी रोजगार मिलता है। साथ ही, यह बिजली बचाने का एक अच्छा तरीका भी है।
नवरात्रि के दौरान बाजारों और पंडालों में प्लास्टिक की प्लेट, गिलास, पॉलिथीन और बोतलों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है। इससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता है क्योंकि प्लास्टिक सैकड़ों सालों तक नष्ट नहीं होती।
हमें पत्तल, मिट्टी के कुल्हड़, कपड़े के थैले और कागज की पैकेजिंग का उपयोग बढ़ावा देना चाहिए। इससे कचरा कम होगा और पर्यावरण को फायदा पहुंचेगा।
नवरात्रि में भोग और प्रसाद का अत्यधिक वितरण किया जाता है, जिससे खाने की बर्बादी होती है। हमें चाहिए कि जरूरत से ज्यादा प्रसाद न बनाएं और अगर अधिक बन भी जाए तो उसे जरूरतमंदों में वितरित करें।
साथ ही, प्रसाद प्लास्टिक की थैलियों में देने की बजाय पत्ते, दोने या कागज में दिया जाए ताकि कचरा कम से कम हो।
नवरात्रि के अंत में मूर्ति विसर्जन किया जाता है, जो जल प्रदूषण का कारण बनता है। हमें घरेलू तरीके से विसर्जन अपनाना चाहिए, जैसे:
नवरात्रि के दौरान हमें अपने परिवार, मित्रों और समाज में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिए। कुछ तरीके अपनाए जा सकते हैं:
अगर हम सब मिलकर पर्यावरण-संरक्षण के इन उपायों को अपनाएं तो नवरात्रि को और भी पवित्र और पर्यावरण हितैषी बना सकते हैं।
नवरात्रि सिर्फ एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ाव का भी प्रतीक है। अगर हम इस पर्व को पर्यावरण के अनुकूल मनाएं तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए एक स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण छोड़ सकते हैं।
हमें इस अवसर पर संकल्प लेना चाहिए कि हम प्राकृतिक चीजों का उपयोग करेंगे, प्लास्टिक का बहिष्कार करेंगे, जल और बिजली की बचत करेंगे और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाएंगे। इस तरह हम मां दुर्गा की पूजा के साथ-साथ प्रकृति की भी रक्षा कर सकते हैं।
नवरात्रि में मूर्ति विसर्जन, प्लास्टिक का उपयोग, बिजली की अधिक खपत और ध्वनि प्रदूषण से पर्यावरण को नुकसान होता है। इसे रोकने के लिए पर्यावरण के अनुकूल तरीके अपनाने चाहिए।
हाँ, पीओपी (Plaster of Paris) की मूर्तियां पानी में जल्दी नहीं घुलतीं और जल में रसायन घोलकर जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाती हैं। इसलिए, मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग करना चाहिए।
मूर्ति को घर में ही किसी गमले, बाल्टी या कृत्रिम कुंड में विसर्जित करें और उस पानी को पेड़-पौधों में उपयोग करें।
प्लास्टिक की थैलियों, प्लेटों और गिलास की जगह पत्तल, मिट्टी के कुल्हड़ और कागज के बैग का उपयोग करें।
लाउडस्पीकर और डीजे की जगह धीमी आवाज में भजन-कीर्तन करें और घर में भक्ति संगीत बजाएं।
हाँ, फूलों, पत्तियों, कपड़े और कागज की सजावट का उपयोग किया जा सकता है जिससे प्लास्टिक की जरूरत नहीं पड़ेगी।
बिल्कुल! हल्दी, चावल का आटा, फूलों की पंखुड़ियां और प्राकृतिक रंगों से रंगोली बनाई जा सकती है।
मिट्टी के दीयों और LED लाइट्स का उपयोग करें और अनावश्यक बिजली की खपत को कम करें।
हाँ, फूलों और पत्तों से खाद (compost) बनाई जा सकती है, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा।
प्रसाद को पत्तों के दोने या कागज में दें और खाने की बर्बादी न करें।
हाँ, कागज से बनी मूर्तियां पानी में जल्दी घुल जाती हैं और जल प्रदूषण नहीं फैलातीं।
बिल्कुल! जब लोग देखेंगे कि आप पर्यावरण के अनुकूल पूजा कर रहे हैं, तो वे भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित होंगे।
हाँ, सोशल मीडिया पर पर्यावरण-संरक्षण से जुड़े संदेश, वीडियो और पोस्टर साझा कर सकते हैं।
कई जगहों पर सरकार ने पीओपी मूर्तियों पर प्रतिबंध लगाया है और कृत्रिम कुंडों में विसर्जन की व्यवस्था की है।
परिवार, मित्रों और पड़ोसियों को जागरूक करें, पर्यावरण अनुकूल पूजा करें और इसे सोशल मीडिया पर साझा करें।
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