नवरात्रि का पर्व माँ दुर्गा की उपासना का विशेष समय होता है। नौ दिनों तक भक्तगण माँ दुर्गा की भक्ति और उपवास करते हैं, और दशमी को दुर्गा विसर्जन (Durga Visarjan) की परंपरा निभाई जाती है। यह प्रक्रिया केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। दुर्गा प्रतिमा विसर्जन का संबंध जीवन, प्रकृति और पुनर्जन्म के सिद्धांतों से भी जोड़ा जाता है। इस लेख में हम दुर्गा विसर्जन की सही प्रक्रिया, महत्व, और इससे जुड़ी परंपराओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
दुर्गा विसर्जन का धार्मिक दृष्टि से बहुत बड़ा महत्व है। यह प्रक्रिया यह दर्शाती है कि जीवन क्षणभंगुर है और हर चीज़ अपने स्रोत में लौटती है। यह हमें अहंकार और मोह को त्यागने की सीख देती है।
दुर्गा माँ की मूर्ति मिट्टी, लकड़ी, और प्राकृतिक पदार्थों से बनाई जाती है, और इसे जल में प्रवाहित किया जाता है। इसका अर्थ यह होता है कि हम प्रकृति से आए हैं और प्रकृति में ही विलीन हो जाते हैं।
विजयादशमी के दिन रावण दहन के साथ-साथ दुर्गा विसर्जन का आयोजन किया जाता है, जिससे असुर शक्तियों के नाश का संदेश दिया जाता है। इस प्रक्रिया से यह भी समझ में आता है कि हर अंत एक नए आरंभ की ओर संकेत करता है।
विसर्जन से पहले माँ दुर्गा की प्रतिमा को शुद्ध जल और गंगाजल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद सिंदूर, फूल और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
विसर्जन से पहले विशेष आरती और हवन किया जाता है। भक्तगण माँ को प्रसाद, फल और फूल अर्पित करते हैं और विदाई मंत्र पढ़ते हैं।
मूर्ति को सजे-धजे वाहन में रखकर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें भक्तगण ढोल-नगाड़े, भजन और जयकारों के साथ माँ को विदाई देते हैं।
मूर्ति को पवित्र नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित किया जाता है। इस दौरान भक्तजन “माँ अगले वर्ष फिर आना” के जयकारे लगाते हैं।
दुर्गा विसर्जन केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं।
आजकल प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) की मूर्तियों का उपयोग होने लगा है, जो पानी में नहीं घुलती और नदियों को प्रदूषित करती है। इसके कारण:
भारत में दुर्गा विसर्जन अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है।
कोलकाता में बड़ी-बड़ी प्रतिमाएँ गंगा नदी में विसर्जित की जाती हैं। महिलाएँ माँ को सिंदूर अर्पण कर आशीर्वाद मांगती हैं।
गंगा किनारे ड्रम, ढोल, और भक्ति गीतों के साथ माँ को विदाई दी जाती है।
यहाँ गणपति विसर्जन की तरह ही भव्य शोभायात्रा निकालकर माँ को विदाई दी जाती है।
विजयादशमी का दिन असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। यह दिन दर्शाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः अच्छाई की ही जीत होती है।
राम ने रावण का वध इसी दिन किया था, और इसी दिन माँ दुर्गा भी अपने लोक वापस लौटती हैं। अतः दुर्गा विसर्जन और विजयादशमी एक ही संदेश देते हैं – अधर्म का अंत और धर्म की विजय।
दुर्गा विसर्जन केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन दर्शन है। यह हमें सिखाता है कि सभी चीजें नश्वर हैं और अंततः हमें प्रकृति में विलीन होना होता है। साथ ही, यह पर्व हमें सामाजिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत कुछ सिखाता है।
आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारे धार्मिक रीति-रिवाजों को पर्यावरण के अनुकूल बनाया जाए, ताकि हम पर्यावरण और संस्कृति दोनों की रक्षा कर सकें। माँ दुर्गा हमें शक्ति, साहस और परोपकार की प्रेरणा देती हैं, और उनका विसर्जन हमें यह सिखाता है कि हर अंत एक नए आरंभ का संकेत है।
दुर्गा विसर्जन नवरात्रि के अंतिम दिन किया जाने वाला एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें माँ दुर्गा की प्रतिमा को जल में प्रवाहित किया जाता है।
यह आमतौर पर विजयादशमी (दशहरे) के दिन किया जाता है, जो नवरात्रि के नौ दिनों की पूजा के बाद आता है।
यह दर्शाता है कि जीवन क्षणभंगुर है, और हम सभी को अंततः प्रकृति में विलीन होना है। यह अहंकार त्याग और धर्म की विजय का प्रतीक भी है।
इसमें माँ दुर्गा की मूर्ति को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है, फिर विशेष पूजा और आरती के बाद शोभायात्रा के साथ जल में प्रवाहित किया जाता है।
“जय माता दी,” “माँ अगले वर्ष फिर आना,” और दुर्गा स्तुति जैसे मंत्र बोले जाते हैं।
महिलाएँ माँ दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएँ देती हैं, जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है।
पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए अब कृत्रिम तालाबों में विसर्जन करने की परंपरा बढ़ रही है, ताकि जल प्रदूषण न हो।
पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, ओडिशा और दिल्ली में इसे धूमधाम से मनाया जाता है।
नहीं, क्योंकि POP पानी में नहीं घुलता और यह जल प्रदूषण का कारण बनता है। इसकी जगह मिट्टी की मूर्तियों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
अगर रासायनिक रंगों और POP से बनी मूर्तियों को जल में विसर्जित किया जाए, तो यह पानी को दूषित कर सकता है और जल जीवों को नुकसान पहुँचा सकता है।
हाँ, कई लोग अब अपने घर में मिट्टी की मूर्ति को गमले या छोटे जल स्रोतों में विसर्जित करते हैं और बाद में इसे पौधों के लिए उपयोग करते हैं।
गंगाजल से स्नान, आरती, हवन, प्रसाद अर्पण, और भक्तों द्वारा जयकारे लगाना शामिल होता है।
दुर्गा विसर्जन और दशहरा दोनों ही असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक हैं। जिस दिन राम ने रावण का वध किया था, उसी दिन माँ दुर्गा का विसर्जन भी होता है।
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