नवरात्रि में अखंड ज्योति (Akhanda Jyoti) जलाने का रहस्य! क्या आप जानते हैं इसकी असली शक्ति?
नवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान अखंड ज्योति (Akhanda Jyoti) जलाने की परंपरा बहुत पुरानी और पवित्र मानी जाती है। अखंड ज्योति का अर्थ है—ऐसी दीपक की लौ, जो पूरे नवरात्रि बिना बुझे जलती रहे। यह शक्ति, भक्ति और साधना का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि निरंतर जलने वाली ज्योति से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियाँ दूर रहती हैं।
यह ज्योति देवी माँ के अविनाशी प्रकाश का प्रतीक मानी जाती है। इसे जलाने से साधक की आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाने की परंपरा का पालन करने से सौभाग्य, सुख-समृद्धि और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे जलाने का विशेष महत्व है।
अखंड ज्योति जलाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जब भगवान श्रीराम ने रावण वध के लिए देवी दुर्गा की पूजा की थी, तब उन्होंने अखंड ज्योति प्रज्वलित की थी। इसी प्रकार, कई संत-महात्माओं ने भी इसे अपनी साधना का महत्वपूर्ण हिस्सा माना है।
अखंड ज्योति को ‘शक्ति ज्योति’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह साधक को मानसिक और आत्मिक बल प्रदान करती है। यह परंपरा बताती है कि मनुष्य को जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए, जैसे यह ज्योति लगातार जलती रहती है, वैसे ही हमें भी अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
अखंड ज्योति जलाने के लिए कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इन्हें ध्यान में रखकर ही इस पूजा को सफल बनाया जा सकता है—
अखंड ज्योति केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखती, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है। जब घी या तेल का दीपक लगातार जलता है, तो वह वातावरण को शुद्ध करता है। यह घर से नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है और चारों ओर सकारात्मकता फैलाता है।
आयुर्वेद के अनुसार, दीपक की लौ से निकलने वाली ऊर्जा से वातावरण में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और विषाणु नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि मंदिरों और पूजा स्थलों पर निरंतर दीप जलाने की परंपरा होती है।
अखंड ज्योति जलाने के कई आध्यात्मिक और भौतिक लाभ होते हैं—
अखंड ज्योति जलाने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है, ताकि पूजा सफल हो और कोई विघ्न न आए—
हालाँकि नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाने की परंपरा अधिक प्रचलित है, लेकिन इसे अन्य शुभ अवसरों पर भी जलाया जाता है। कई साधक इसे शादी, मुंडन, गृह प्रवेश, और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में भी जलाते हैं।
कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत साधना के लिए वर्षभर अखंड ज्योति जलाते हैं, जिससे उनका मन शांत और केंद्रित रहता है।
नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाने का गूढ़ आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह मन और आत्मा की शुद्धि का माध्यम भी है। इसके माध्यम से भक्त माता दुर्गा की कृपा प्राप्त कर सकता है और अपने जीवन को सकारात्मकता से भर सकता है।
यदि सही नियमों और पूर्ण श्रद्धा के साथ अखंड ज्योति जलाई जाए, तो यह भक्त के जीवन में चमत्कारी बदलाव ला सकती है। यह केवल दीपक की लौ नहीं, बल्कि आशा, शक्ति और विश्वास की प्रतीक है। इसलिए हर भक्त को इसे पूरे नियमों के साथ प्रज्वलित करना चाहिए, ताकि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे।
अखंड ज्योति वह दीपक होता है, जिसे नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक बिना बुझाए जलाया जाता है। यह माँ दुर्गा की कृपा और शक्ति का प्रतीक है।
यह सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है, नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है और मनोकामनाएँ पूर्ण करने में सहायक होता है।
मिट्टी, पीतल या तांबे का दीपक सबसे शुभ माना जाता है। मिट्टी का दीपक पारंपरिक और पवित्र होता है।
देशी घी का दीपक सबसे शुभ माना जाता है, लेकिन सरसों या तिल के तेल का भी उपयोग किया जा सकता है।
हाँ, इसे अशुभ माना जाता है। यदि ज्योति बुझ जाए, तो इसे तुरंत पुनः प्रज्वलित करें और माँ दुर्गा से क्षमा याचना करें।
इसे पूर्व या उत्तर दिशा में रखना सबसे शुभ होता है।
हाँ, रोज सुबह-शाम दीपक के पास मंत्र जाप और आरती करना शुभ माना जाता है।
बिल्कुल! यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सुख-समृद्धि लाता है।
हाँ, लेकिन उसे दीपक का ध्यान रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वह बुझने न पाए।
जी हाँ, माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण साधना मानी जाती है।
हाँ, यह अच्छे भाग्य को आकर्षित करता है और आर्थिक स्थिति को सुधारने में सहायक होता है।
नहीं, सुरक्षा कारणों से यह ठीक नहीं है। इसे एक सुरक्षित स्थान पर जलाना चाहिए।
नहीं, इसे गृह प्रवेश, विवाह, मुंडन या अन्य शुभ अवसरों पर भी जलाया जा सकता है।
ज्योति को स्वयं न बुझाएँ। इसे अपने आप बुझने दें, या फिर देवी माँ से प्रार्थना करके सहनशीलता से धीरे-धीरे बुझाएँ।
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