“दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) शक्ति, भक्ति और रहस्यमय शक्तियों का अनोखा संगम”

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"दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) शक्ति, भक्ति और रहस्यमय शक्तियों का अनोखा संगम"

“दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) शक्ति, भक्ति और रहस्यमय शक्तियों का अनोखा संगम”

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra)

दक्षिण काली (Dakshina Kali) हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे महाशक्ति और तंत्र साधना की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। दक्षिण काली का स्तोत्र उनकी महिमा, शक्ति और कृपा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र न केवल भक्ति का साधन है, बल्कि साधकों के लिए ध्यान और साधना का एक अनिवार्य अंग भी है। इसे पढ़ने और गाने से मन को शांति मिलती है, नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और आत्मा को सकारात्मक शक्ति मिलती है।

Contents
“दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) शक्ति, भक्ति और रहस्यमय शक्तियों का अनोखा संगम”दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra)दक्षिण काली (Dakshina Kali) कौन हैं?दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) की महिमादक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का महत्वदक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra)दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) के लाभदक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का पाठ विधिदक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) में उल्लेखित प्रमुख मंत्रसाधना में दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) की भूमिकादक्षिण काली (Dakshina Kali) की भक्ति का प्रभावFAQs: “दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) शक्ति, भक्ति और रहस्यमय शक्तियों का अनोखा संगम”1. दक्षिण काली (Dakshina Kali) कौन हैं?2. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) क्या है?3. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का क्या महत्व है?4. दक्षिण काली की पूजा कब करनी चाहिए?5. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का पाठ कैसे करें?6. दक्षिण काली स्तोत्र (Dakshina Kali Stotra) के लाभ क्या हैं?7. क्या दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) को कोई भी पढ़ सकता है?8. दक्षिण काली का स्वरूप कैसा होता है?9. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का तंत्र साधना में क्या महत्व है?10. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) से कौन-से मंत्र प्रमुख हैं?11. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) से किस प्रकार के भय दूर होते हैं?12. क्या दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) आर्थिक समृद्धि लाता है?13. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) क्यों पढ़ा जाता है?14. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का पाठ कितनी बार करना चाहिए?15. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) से जीवन में क्या परिवर्तन आता है?

दक्षिण काली (Dakshina Kali) कौन हैं?

दक्षिण काली (Dakshina Kali) महाकाली का सौम्य रूप हैं। वे करुणामयी, दयालु और रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं। डाक्षिणा का अर्थ है “दक्षिण दिशा की देवी” और काली उनके शक्ति और विनाशकारी रूप का प्रतीक है। उनकी चार भुजाएं होती हैं, जिनमें खड्ग, कटोरा, अभय मुद्रा और वर मुद्रा होती हैं। वे अंधकार और अज्ञान का नाश करती हैं और ज्ञान और शांति प्रदान करती हैं।

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) की महिमा

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) देवी के शक्ति, करुणा और रहस्यमय स्वरूप का गुणगान करता है। इसे पढ़ने से साधक को भय, दुख और संकटों से मुक्ति मिलती है। इस स्तोत्र में मंत्र और तंत्र साधना का गहरा प्रभाव होता है। यह मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है और साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है।

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का महत्व

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) को पढ़ने से साधक को देवी की कृपा मिलती है। यह स्तोत्र उनके भक्तों के कष्टों को हरता है और जीवन में सफलता और समृद्धि लाता है। इसे भय, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा के लिए पढ़ा जाता है। साधक इसे नियमित रूप से पढ़कर अपने मन और आत्मा को शुद्ध कर सकता है।

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra)

दक्षिण काली स्तोत्र:

(Dakshina Kali Stotra)

विनियोगः –

ॐ अस्य श्रीदक्षिणकालिकाखड्गमालामन्त्रस्य श्री भगवान्
महाकालभैरव ऋषिः, उष्णिक् छन्दः, शुद्धः ककार
त्रिपञ्चभट्टारकपीठस्थित महाकालेश्वराङ्कनिलया, महाकालेश्वरी
त्रिगुणात्मिका श्रीमद्दक्षिणाकालिका महाभयहरिकादेवता, क्रीं बीजम्,
ह्रीं शक्तिः, हूं कीलकम् मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे खड्गमालामन्त्र
जपे विनियोगः ॥

मन्त्रः –

“ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा ।”

ऋष्यादि न्यासः –

ॐ महाकाल भैरव ऋषये नमः शिरसि ।
उष्णिक् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीमद्दक्षिणकालिकादेवतायै नमः हृदि ।
क्रीं बीजाय नमः गुह्ये ।
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः ।
हूं कीलकाय नमः नाभौ ।
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
(इति ऋष्यादि न्यासः ।)

करन्यासः –

ॐ क्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ क्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ क्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ क्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ क्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ क्रः करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः ।
(इति करन्यासः)

हृदयादि षडङ्गन्यासः –

ॐ क्रां हृदयाय नमः ।
ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ क्रूं शिखायै वषट् ।
ॐ क्रैं कवचाय हुम् ।
ॐ क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ क्रः अस्त्राय फट् ।
(इति हृदयादि षडङ्गन्यासः)

सर्वाङ्गन्यासः –

ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं ऌं ॡं नमो हृदि ।
ॐ एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं नमो दक्ष भुजे ।
ॐ ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं नमो वाम भुजे ।
ॐ णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं नमो दक्ष पादे ।
ॐ मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं नमो वाम पादे ।
(इति विन्यसेत्)

न्यासम् –

ॐ क्रीं नमः ब्रह्मरन्ध्रे ।
ॐ क्रीं नमः भ्रूमध्ये ।
ॐ क्रीं नमः ललाटे ।
ॐ ह्रीं नमः नाभौ ।
ॐ ह्रीं नमः गुह्ये ।
ॐ हूं नमः वक्त्रे ।
ॐ हूं नमः गुर्वङ्गे ।
(इति न्यासम्)

ध्यान मन्त्राः –

ॐ सद्यश्छिन्न शिरः कृपाणमभयं हस्तैर्वरं बिभ्रतीं
घोरास्यां शिरसि स्रजा सुरुचिरान्मुन्युक्त केशावलिम् ।
सृक्कासृक्प्रवहां श्मशान निलयां श्रुत्योः शवालङ्कृतिं
श्यामाङ्गीं कृतमेखलां शवकरैर्देवीं भजे कालिकाम् ॥ १॥

(इति मन्त्रमहोदधि वर्णितं ध्यानं)

ॐ शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम् ।
चतुर्भुजां खड्गमुण्डवराभय करां शिवाम् ॥ १॥

मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम् ।
एवं सञ्चिन्तयेत्कालीं श्मशानालय वासिनीम् ॥ २॥

(इति कालीतन्त्रोक्त ध्यानं)

अन्यच्यध्यानम् –

करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् ।
कालिकां दक्षिणां दिव्यां मुण्डमाला विभूषिताम् ॥ १॥

सद्यश्छिन्नशिरः खड्वावामोर्ध्वाधः कराम्बुजाम् ।
अभयं वरदं चैव दक्षिणाधोर्ध्वपाणिकाम् ॥ २॥

महामेघप्रभां श्यामां तथा चैव दिगम्बराम् ।
कण्ठावसक्तमुण्डालीगलद्रुधिरचर्चिताम् ॥ ३॥

कर्णावतंसतानीतशव युग्मभयानकाम् ।
घोर दंष्ट्रा करात्मास्यां पीनोन्नत पयोधराम् ॥ ४॥

शवानां कर सङ्घातैः कृतकाञ्चीं हसन्मुखीम् ।
सृक्कद्वयगलद्रक्तधाराविस्फुरिताननाम् ॥ ५॥

घोररूपां महारौद्रीं श्मशानालयवासिनीम् ।
दन्तुरां दक्षिणव्यापिमुक्तलम्बकचोच्चयाम् ॥ ६॥

शवरूपमहादेवहृदयोपरि संस्थिताम् ।
शिवाभिर्घोररूपाभिश्चतुर्द्विक्षु समन्विताम् ॥ ७॥

महाकालेन साद्धोर्ध्वमुपविष्टरतातुराम् ।
(महाकालेन च समं विपरीत रतातुराम् ।)
सुखप्रसन्नवदना स्मेरानन सरोरुहाम् ॥ ८॥

(इति अन्यच्यध्यानम्)

हंसतन्त्रोक्त ध्यानम् –

नमामि दक्षिणामूर्तिं कालिकां परभैरवीम् ।
भिन्नाञ्जनचयप्रख्यां प्रवीरशवसंस्थिताम् ॥ १॥

गलच्छोणितधाराभिः स्मेरानन सरोरुहाम् ।
पीनोन्नतकुचद्वन्द्वां पीनवक्षोनितम्बिनीम् ॥ २॥

दक्षिणां मुक्तकेशालीं दिगम्बर विनोदिनीम् ।
महाकाल शवा विष्टां स्मेरानन्दोपरिस्थिताम् ॥ ३॥

मुखसान्द्रस्मितामोद मोदिनीं मदविह्वलाम् ।
आरक्तमुखसान्द्राभिर्नेत्रालीभिर्विराजिताम् ॥ ४॥

शवद्वय कृतोत्तंसां सिन्दूर तिलकोज्ज्वलाम् ।
पञ्चाशन्मुण्ड घटितन्माला शोणित लोहिताम् ॥ ५॥

नानामणिविशोभाढ्य नानालङ्कारशोभिताम् ।
शवास्थिकृत केयूरशङ्खकङ्कणमण्डिताम् ॥ ६॥

शववक्षः समारूढां लेलिहानां शवं क्वचित् ।
शवमांसकृतग्रासां साट्टहासं मुहुर्मुहुः ॥ ७॥

खड्गमुण्डधरां षामे सव्येऽभयवर प्रदाम् ।
दन्तुरां च महारौद्रीं चण्डनादाति भीषणाम् ॥ ८॥

शिवाभिर्घोररूपाभिर्वेष्टितां भयनाशनीम् ।
माभैर्मास्स्वभक्तेषु जल्पतीं घोरनिःस्वनैः ॥ ९॥

यूर्याङ्कमिच्छथ ब्रूत ददामीति प्रभाषिणीम् ॥ १०॥

(इति हंसतन्त्रोक्त ध्यानम्)

“ॐ मं मण्डूकादिपरतत्त्वान्तपीठदेवताभ्यो नमः ।”

अथ पीठशक्ति पूजनम् –

ॐ जयायै नमः ।
ॐ विजयायै नमः ।
ॐ अजितायै नमः ।
ॐ अपराजितायै नमः ।
ॐ नित्यायै नमः ।
ॐ विलासिन्यै नमः ।
ॐ दोग्ध्र्यै नमः ।
ॐ अघोरायै नमः ।
(मध्य में)
ॐ मङ्गलायै नमः ।
(इति पीठशक्ति पूजनम्)

(यन्त्र अथवा मूर्तिपूजा, अभ्यंगस्नान, दुग्ध अथवा जलधारा,
वस्त्र मे लपेटे और
ॐ ह्ऱीं कालिका योगपीठात्मने नमः ।
इस मन्त्रद्वारा पुष्ःपादि आसन देकर, पीठ के मध्यभाग में स्थापित करें ।
विभिन्न उपचारोण् द्वार पूजा कर, देवी की आज्ञा लेकर आवरणपूजा करें ।
ॐ संविन्मये परेशानि परामृते चरुप्रिये ।
अनुज्ञां दक्षिणे देहि परिवारार्च्यनाय मे ॥)

प्रथम आवरण (बिन्दु में)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्रीमद्दक्षिणकालिका खड्गमुण्डवराभयकरा
महाकालभैरवसहिता श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री हृदयदेवी सिद्धिकालिकामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री शिरोदेवी महाकालिकामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री शिखादेवी गुह्यकालिकामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री कवचदेवी श्मशानकालिकामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री नेत्रदेवी भद्रकालिकामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री अस्त्रदेवी श्रीमद्दक्षिणकालिकामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वसम्पत्प्रदायक चक्रस्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

द्वितीय आवरण (बिन्दु की चारों दिशाओं में)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं जया सिद्धिमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं अपराजिता सिद्धिमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं नित्या सिद्धिमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं अघोरा सिद्धिमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वमङ्गलमयि चक्रस्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

तृतीय आवरण (बिन्दु के बाईं ओर प्रथम गुरुपंक्ति में गुरुचतुष्टय)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री गुरुमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री परमगुरुमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री परात्परगुरुमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्री परमेष्ठिगुरुमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वसम्पत्प्रदायक चक्रस्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

चतुर्थ आवरण (द्वितीय पंक्ति में दिव्यौघ)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं महादेव्यम्बामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं महादेवानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं त्रिपुराम्बामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं त्रिपुरभैरवानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।


(तृतीय पंक्ति में सिद्धौघ)


ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं ब्रह्मानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं पूर्वदेवानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं चलच्चितानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं लोचनानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं कुमारानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं क्रोधानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं वरदानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं स्मरद्वीयानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं मायाम्बामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं मायावत्यम्बामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।


(चतुर्थ पंक्ति में मानवौघ)


ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं विमलानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं कुशलानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं भीमसुरानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं सुधाकरानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं मीनानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं गोरक्षकानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं भजदेवानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं प्रजापत्यानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं मूलदेवानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं रन्तिदेवानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं विघ्नेश्वरानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं हुताशनानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं समरानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं सन्तोषानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वसम्पत्प्रदायक चक्रस्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

पञ्चम आवरण (पांचों त्रिकोणों में क्रमशः तीन-तीन करके)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं श्रीकालिदेवी नित्यामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं कपालिनी । कुल्ला। देवी नित्यामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं कुरुकुल्ला । विरोधिनी । विप्रचित्ता । देवी नित्यामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं उग्रा । उग्रप्रभा । दीप्ता । देवी नित्यामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं नीला । घना । वलाका । देवी नित्यामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं मात्रा । मुद्रा । मिता (मित्रा) । देवी नित्यामयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वेप्सितफलप्रदायक चक्र स्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

षष्ठ आवरण (ष्ट दलों में)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं ब्राह्मीदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं नारायणीदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं माहेश्वरीदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं चामुण्डादेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं कौमारीदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं अपराजितादेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं वाराही देविमयि
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं नारसिंहीदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
त्रैलोक्य मोहन चक्रस्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

सप्तम आवरण (अष्टदलों के मध्य भाग में)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं असिताङ्ग भैरवमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं रुरु भैरवमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं चण्ड भैरवमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं क्रोध भैरवमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं उन्मत्त भैरवमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं कपाली भैरवमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं भीषण भैरवमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं संहार भैरवमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वसंक्षोभण चक्रस्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

अष्टम आवरण (अष्टदलों के अग्रभाग में)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं —

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं हेतु वटुकानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं त्रिपुरान्तक वटुकानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं वेताल वटुकानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं वह्निजिह्व वटुकानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं काल वटुकानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं कराल वटुकानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं एकपाद वटुकानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं भीम वटुकानन्दनाथमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वसौभाग्यदायक चक्र स्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

नवम आवरण (अष्टदलों के बाहर)

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हूं फट् स्वाहा सिंह व्याघ्रमुखी योगिनिदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हूं फट् स्वाहा सर्पासुमुखी योगिनिदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हूं फट् स्वाहा मृगमेषमुखी योगिनिदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हूं फट् स्वाहा गजवाजिमुखी योगिनिदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हूं फट् स्वाहा बिडालमुखी योगिनिदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हूं फट् स्वाहा क्रोष्टासुमुखी योगिनिदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हूं फट् स्वाहा लम्बोदरी योगिनिदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं हूं फट् स्वाहा ह्रस्वजङ्घा तालजङ्घा प्रलम्बोघ्नी योगिनिदेवीमयी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वार्थदायक चक्र स्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

दशम आवरण (भूपुर में पूर्व आदि दिशाओं में)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं इन्द्रमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं अग्निमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं यममयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं निरृतिमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं वरुणमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं वायुमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं कुबेरमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं ईशानमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं ब्रह्मामयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं अनन्तमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं वज्रमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं शक्तिमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं दण्डमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं खड्गमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं पाशमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं अङ्कुशमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं गदामयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं त्रिशूलःमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं पद्ममयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं चक्रमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वरक्षाकर चक्र स्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

एकादश आवरण (बिन्दु में)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं खड्गमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं मुण्डमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं वरमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं अभयमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वाशापरिपूरक चक्र स्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

द्वादश आवरण (भूपुर के बहिर्द्वारों पर पूर्वादि क्रम से)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं वटुकानन्दनाथमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं योगिनीमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं क्षेत्रपालानन्दनाथमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं गणनाथानन्दनाथमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हूं ह्रीं सर्वभूतानन्दनाथमयीदेवी
श्रीपादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि स्वाहा ।
सर्वसंक्षोभण चक्र स्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

(हाथ में पुष्प तथा अक्षत लेकर, निम्नलिखित श्लोकों का पाठ
करते हुए श्रीचक्र के बाहर छोडें)

चतुरस्राद्बहिः द्वारसंस्थिताश्च समन्ततः ।
ते च सम्पूजिताः सन्तुदेवाः देवि गृहे स्थिताः ॥

सिद्धाः साध्या भैरवाश्च गन्धर्वा वसवोऽश्विनो ।
मुनयो गृहा तुष्यन्तु विश्वेदेवाश्च उष्मयाः ॥

रुद्रादित्याश्च पितरः पन्नगाः यक्ष चारणाः ।
योगेश्वरोपासका ये तुष्यन्ति नर किन्नराः ॥

नागा वा दानवेन्द्राश्च भूतप्रेत पिशाचकाः ।
अस्त्राणि सर्वशास्त्राणि मन्त्रयन्त्रार्चन क्रियाः ॥

शान्तिं कुरु महामाये सर्वसिद्धिप्रदायिके ।
सर्वसिद्धिमचक्रस्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ॥

सर्वज्ञे सर्वशक्ते सर्वार्थप्रदे शिवे सर्वमङ्गलमये सर्वव्याधिविनाशिनि ।
सर्वाधार स्वरूपे सर्वपापहरे सर्वरक्षास्वरूपिणि सर्वेप्सितफलप्रदे
सर्वमङ्गलदायक चक्रस्वामिनि नमस्ते नमस्ते स्वाहा ।

क्रीं ह्रीं हूं क्ष्मीं महाकालाय हौं महादेवाय क्रीं कालिकायायै हौं
महादेव महाकाल सर्वसिद्धिप्रदायक
देवी भगवती चण्डचण्डिका चण्डचितात्मा प्रीणातु दक्षिणकालिकायै
सर्वज्ञे सर्वशक्ते श्रीमहाकालसहिते
श्रीदक्षिणकालिकायै सर्वज्ञे सर्वशक्ते श्रीमहाकालसहिते
श्रीदक्षिणकालिकायै नमस्ते नमस्ते स्वाहा।

एषा विद्या महासिद्धिदायिनी स्मृति मात्रतः ।
अग्नौ वाते महाक्षोभे राज्ञो राष्ट्रस्य विप्लवे ॥

एकवारं जपेदेनं चक्रपूजा फलं लभेत् ।
आपत्काले नित्यपूजां विस्तारात् कर्तुमक्षमः ॥

खड्गम् सम्पूज्य विधिवद्येन हस्ते धृतेन वै ।
अष्टादश महाद्वीपे सम्राट् भोक्ता भविष्यति ॥

नरवश्यं नरेन्द्राणाम् वश्यं नारी वशङ्करी ।
पठेत्त्रिंशत् सहस्राणि त्रैलोक्य मोहने क्षमः ॥

इति श्रीरुद्रयामले दक्षिणकालिका खड्गमालास्तोत्रं समाप्तम् ।

 "दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) शक्ति, भक्ति और रहस्यमय शक्तियों का अनोखा संगम"
दक्षिण काली स्तोत्र:! (Dakshina Kali Stotra) शक्ति, भक्ति और रहस्यमय शक्तियों का अनोखा संगम

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) के लाभ

  1. भय और नकारात्मकता का नाश।
  2. आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि।
  3. मन और आत्मा में शांति और स्थिरता
  4. जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि
  5. साधक को शत्रुओं और संकटों से रक्षा।

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का पाठ विधि

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का पाठ करने के लिए सुबह या शाम का समय उत्तम माना जाता है। इसे शुद्ध मन और पवित्रता के साथ पढ़ना चाहिए। पूजा स्थल पर दीपक और अगरबत्ती जलाकर देवी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें। संकल्प लेकर, ध्यान लगाकर और काली माँ का आह्वान करते हुए स्तोत्र का पाठ करें।

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) में उल्लेखित प्रमुख मंत्र

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) में सिद्ध मंत्र होते हैं, जो साधक की साधना को सफल बनाते हैं। इन मंत्रों का नियमित जाप मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है। कुछ प्रमुख मंत्र हैं:

  • “ॐ क्रीं कालिकायै नमः”
  • “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै नमः”

साधना में दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) की भूमिका

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) साधकों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। यह तंत्र साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे पढ़ने से साधक को आत्मज्ञान और ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

दक्षिण काली (Dakshina Kali) की भक्ति का प्रभाव

दक्षिण काली की भक्ति साधक के जीवन को शुद्ध और सकारात्मक बनाती है। उनकी पूजा से कष्ट, भय और संकट का नाश होता है। दक्षिण काली स्तोत्र उनके प्रेम और करुणा का प्रतीक है।

दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) शक्ति और भक्ति का अद्वितीय संगम है। इसे पढ़ने और समझने से साधक को देवी की कृपा और शक्ति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र केवल साधकों के लिए ही नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के लिए जीवन में शांति, शक्ति और सफलता का स्रोत है।

FAQs: “दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) शक्ति, भक्ति और रहस्यमय शक्तियों का अनोखा संगम”

1. दक्षिण काली (Dakshina Kali) कौन हैं?

दक्षिण काली (Dakshina Kali) देवी काली का सौम्य और करुणामय रूप हैं, जो अपनी भक्ति से साधकों को भय और संकट से मुक्त करती हैं।

2. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) क्या है?

यह एक पवित्र स्तोत्र है जो देवी काली की महिमा, शक्ति, और करुणा का वर्णन करता है और साधकों को आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।

3. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का क्या महत्व है?

यह स्तोत्र भय, संकट, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है और साधक के जीवन में शांति और सफलता लाता है।

4. दक्षिण काली की पूजा कब करनी चाहिए?

दक्षिण काली की पूजा का सर्वोत्तम समय अमावस्या, नवरात्रि, या किसी शुभ दिन के सुबह और शाम होता है।

5. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का पाठ कैसे करें?

साधक को शुद्ध मन और पवित्र स्थान में बैठकर दीपक जलाकर दक्षिण काली स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

6. दक्षिण काली स्तोत्र (Dakshina Kali Stotra) के लाभ क्या हैं?

यह स्तोत्र साधक को मानसिक शांति, भय से मुक्ति, शत्रु से रक्षा, और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।

7. क्या दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) को कोई भी पढ़ सकता है?

हां, यह स्तोत्र कोई भी साधक शुद्ध हृदय और श्रद्धा के साथ पढ़ सकता है।

8. दक्षिण काली का स्वरूप कैसा होता है?

उनकी चार भुजाएं होती हैं, जिनमें वे खड्ग, कटोरा, अभय मुद्रा, और वर मुद्रा धारण करती हैं।

9. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का तंत्र साधना में क्या महत्व है?

तंत्र साधना में यह स्तोत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह साधक को ऊर्जा और सफलता प्रदान करता है।

10. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) से कौन-से मंत्र प्रमुख हैं?

“ॐ क्रीं कालिकायै नमः” और “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै नमः” जैसे मंत्र इसमें प्रमुख हैं।

11. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) से किस प्रकार के भय दूर होते हैं?

यह स्तोत्र साधक को मृत्यु भय, नकारात्मक ऊर्जा, और शत्रुओं के भय से मुक्त करता है।

12. क्या दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) आर्थिक समृद्धि लाता है?

हां, यह स्तोत्र साधक को आर्थिक समृद्धि और जीवन में सफलता प्रदान करता है।

13. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) क्यों पढ़ा जाता है?

यह स्तोत्र साधक के जीवन में शांति, शक्ति, और आध्यात्मिक उन्नति लाने के लिए पढ़ा जाता है।

14. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) का पाठ कितनी बार करना चाहिए?

इसे प्रतिदिन एक या तीन बार पढ़ा जा सकता है, लेकिन नियमितता महत्वपूर्ण है।

15. दक्षिण काली स्तोत्र: (Dakshina Kali Stotra) से जीवन में क्या परिवर्तन आता है?

यह स्तोत्र जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आत्मबल, और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति लाता है।

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