घर में इस दिशा में रखें देवी लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) की मूर्ति, बरसेगा अपार धन और सुख
देवी लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) को धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी माना जाता है। हिंदू धर्म में उनका स्थान अत्यंत ऊंचा है। हर कोई चाहता है कि उनके घर में देवी लक्ष्मी का स्थायी वास हो और कभी भी धन की कमी न हो। लेकिन सिर्फ पूजा करना ही पर्याप्त नहीं होता, देवी लक्ष्मी की मूर्ति को सही दिशा में रखना भी अत्यंत जरूरी होता है। वास्तुशास्त्र और शास्त्रों में इस बात के स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि मूर्ति की दिशा क्या होनी चाहिए।
वास्तुशास्त्र एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है, जो यह बताता है कि किसी स्थान पर क्या, कहाँ और किस दिशा में रखा जाए ताकि ऊर्जा का प्रवाह सकारात्मक बना रहे। देवी लक्ष्मी की मूर्ति का सही स्थान और दिशा तय करना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे घर में धन की वृद्धि, सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार देवी लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) की मूर्ति को घर में उत्तर दिशा या पूर्व दिशा की ओर मुख करके रखना सबसे शुभ माना गया है। यह दिशा कुबेर की भी मानी जाती है, जो धन के देवता हैं। जब देवी लक्ष्मी का मुख उत्तर की ओर होता है, तो घर में धन का प्रवाह बढ़ता है और वित्तीय समस्याएं दूर होती हैं।
घर में जहां आप देवी लक्ष्मी की मूर्ति रखते हैं, वह स्थान शांत, स्वच्छ और सुव्यवस्थित होना चाहिए। यदि आपके घर में पूजा का कमरा है, तो वहाँ पूर्व या उत्तर दिशा में देवी लक्ष्मी की मूर्ति रखें। यदि पूजा का अलग स्थान नहीं है, तो मूर्ति को ड्रॉइंग रूम के उत्तर-पूर्व कोने में भी रखा जा सकता है।
देवी लक्ष्मी की मूर्ति को कभी भी सीधे ज़मीन पर नहीं रखना चाहिए। इसे लकड़ी के पवित्र चौकी या घर के मंदिर में ऊंचाई पर रखें। मूर्ति को दीवार से सटाकर रखने के बजाय, कुछ इंच की दूरी पर रखें ताकि ऊर्जा का संचार चारों ओर हो सके।
लक्ष्मी जी की मूर्ति अकेली रखने के बजाय विष्णु जी के साथ रखें, यानी लक्ष्मी-नारायण की संयुक्त मूर्ति। यह जोड़ी धन और धर्म का संतुलन बनाए रखती है और जीवन में शांति व समृद्धि दोनों का आशीर्वाद देती है। विष्णु जी के साथ लक्ष्मी जी को रखने से घर में स्थिरता आती है और कर्ज़ जैसी समस्याएं दूर होती हैं।
जहाँ भी देवी लक्ष्मी की मूर्ति रखी गई हो, उस स्थान को हमेशा स्वच्छ और सुगंधित बनाए रखें। गंदगी, धूल-मिट्टी, या अव्यवस्था लक्ष्मी जी को अप्रिय होती है। नियमित रूप से दीपक जलाएं, अगरबत्ती या धूप लगाएं, और जल से शुद्धिकरण करें।
देवी लक्ष्मी की ऐसी मूर्ति चुनें जिसमें वह कमल पर विराजमान हों, उनके दो हाथों से धन वर्षा हो रही हो, और उनका मुख प्रसन्न मुद्रा में हो। यह मुद्रा धन वर्षा और सकारात्मक ऊर्जा को दर्शाती है। इसके अलावा, देवी लक्ष्मी के पास गज (हाथी) की उपस्थिति भी शुभ मानी जाती है।
देवी लक्ष्मी की मूर्ति के साथ आप श्री यंत्र, कौड़ी, गुंजा के बीज, या कमल गट्टा भी रख सकते हैं। ये सभी वस्तुएं लक्ष्मी प्राप्ति में सहायक मानी जाती हैं। पूजा स्थान पर तांबे का कलश, स्वास्तिक चिह्न, और मंगल दीपक रखने से भी धन वृद्धि के संकेत मिलते हैं।
बहुत से लोग अनजाने में देवी लक्ष्मी की मूर्ति को दक्षिण दिशा में रख देते हैं, जो कि वास्तु के अनुसार दोषपूर्ण माना जाता है। दक्षिण दिशा यम दिशा मानी जाती है और यह धन हानि, बीमारी और कलह को जन्म दे सकती है। अतः मूर्ति की दिशा का चयन सावधानीपूर्वक करें।
मूर्ति को केवल रखने से ही नहीं, नित्य पूजन और लक्ष्मी मंत्रों का जाप करने से भी घर में धन और सुख की वृद्धि होती है। रोजाना “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का 108 बार जप करें और दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का ध्यान करें।
दीवाली, कोजागरी पूर्णिमा, या शुक्रवार जैसे खास अवसरों पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति को फूलों, दीपों और रंगोली से सजाएं। यह सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इन दिनों में खास पूजा और व्रत करने से विशेष फल मिलता है।
यदि देवी लक्ष्मी की मूर्ति टूट जाए, धुंधली हो जाए या उसमें दरार आ जाए, तो उसे तुरंत ससम्मान किसी पवित्र जल में विसर्जित कर दें और नई मूर्ति स्थापित करें। टूटी हुई मूर्तियाँ घर में रखना अपशकुन माना जाता है।
यह बहुत जरूरी है कि देवी लक्ष्मी की मूर्ति के ठीक सामने कभी न सोएं, क्योंकि यह आदरहीनता मानी जाती है। मूर्ति को इस प्रकार रखें कि उनकी दृष्टि घर के मुख्य हिस्से की ओर हो और शयनकक्ष में ना हो।
घर के मुख्य द्वार पर लक्ष्मी जी के पगचिह्न, स्वास्तिक और श्रीफल आदि चिन्ह बनाएं या चित्र लगाएं। इससे ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी आपके घर में प्रवेश करती हैं और वहीं स्थायी वास करती हैं।
यदि आपको सही दिशा का अनुमान नहीं है, तो आप कम्पास या मोबाइल ऐप की मदद से दिशा का पता कर सकते हैं। एक बार सही दिशा तय हो जाने पर वहाँ मूर्ति को स्थायी रूप से स्थापित करें और रोज पूजन करें।
यदि आप अष्टलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, या गजलक्ष्मी आदि स्वरूपों की मूर्ति रखते हैं, तो उन्हें भी उत्तर या पूर्व दिशा में ही रखें। सभी स्वरूपों का एक साथ पूजन करने से विभिन्न प्रकार की समृद्धि प्राप्त होती है।
जब आप सही दिशा में मूर्ति रखते हैं, और नियमपूर्वक पूजा करते हैं, तो कुछ सकारात्मक संकेत मिलने लगते हैं, जैसे:
देवी लक्ष्मी की मूर्ति को सही दिशा में रखने से घर में समृद्धि, सुख और शांति का प्रवाह बढ़ता है। वास्तु के अनुसार उत्तर या पूर्व दिशा सबसे उपयुक्त है। साथ ही नियमित पूजा, सफाई और आदरपूर्वक व्यवहार करने से देवी लक्ष्मी का स्थायी वास संभव होता है। यदि आप चाहते हैं कि आपके घर में हमेशा धन, वैभव और सौभाग्य बना रहे, तो देवी लक्ष्मी की मूर्ति को उचित दिशा में स्थापित करें और प्रतिदिन सच्चे मन से उनका स्मरण करें।
उत्तर या पूर्व दिशा सबसे शुभ मानी जाती है।
यदि संभव हो तो हाँ, वरना घर के साफ-सुथरे उत्तर-पूर्व कोने में रखें।
मूर्ति बहुत बड़ी न हो, मध्यम आकार में कमल पर विराजमान मुद्रा में हो।
नहीं, उसे तुरंत विसर्जित कर देना चाहिए।
श्री यंत्र, कमल गट्टा, कौड़ी, स्वास्तिक, दीपक आदि।
देवी लक्ष्मी की मूर्ति को उत्तर दिशा या पूर्व दिशा की ओर मुख करके रखना सबसे शुभ माना जाता है।
नहीं, दक्षिण दिशा को यम दिशा माना गया है। वहाँ मूर्ति रखना धन हानि और वास्तु दोष को जन्म देता है।
लक्ष्मी-नारायण की संयुक्त मूर्ति रखना अधिक शुभ होता है। यह धन और धर्म का संतुलन दर्शाता है।
मूर्ति को सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इसे चौकी या मंदिर में ऊँचाई पर रखें।
पूजा कक्ष में उत्तर या पूर्व दिशा की दीवार पर मूर्ति रखें और सामने बैठकर पूजन करें।
मूर्ति का मुख घर के अंदर की ओर होना चाहिए, ताकि देवी लक्ष्मी का वास घर में बना रहे।
नहीं, मूर्ति के ठीक सामने सोना या पैर फैलाना अनुचित माना जाता है।
नहीं, टूटी या खंडित मूर्ति अशुभ मानी जाती है। उसे विधिपूर्वक विसर्जित करें।
श्री यंत्र, कमल गट्टा, कौड़ी, गुंजा, धनपात्र, और दीपक रखना लाभदायक है।
मूर्ति को गंगाजल या शुद्ध जल से साफ करें, कपड़े से पोंछें और हर शुक्रवार धूप-दीप दिखाएं।
अगर मूर्ति अच्छी स्थिति में है तो नहीं। लेकिन दरार, धुंधलापन या खंडन हो तो बदलें।
हाँ, रोज “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” का जप और दीपक अर्पण करना चाहिए।
मूर्ति का आकार मध्यम या छोटा रखें, जिससे वह सम्मानपूर्वक पूजा स्थान में स्थापित हो सके।
हाँ, लेकिन उन्हें एक ही दिशा में और एक साथ स्थापित करें।
शुक्रवार, दीवाली, पूर्णिमा, और अक्षय तृतीया जैसे दिन मूर्ति स्थापना के लिए शुभ माने जाते हैं।
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