“किरात वाराही स्तोत्र: (Kirata varahi Stotram) शक्तिशाली स्तुति की पूरी जानकारी”

Soma
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"किरात वाराही स्तोत्र: (Kirata varahi Stotram) शक्तिशाली स्तुति की पूरी जानकारी"

“किरात वाराही स्तोत्र: (Kirata varahi Stotram) शक्तिशाली स्तुति की पूरी जानकारी”

क्या है किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) ?

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) हिंदू धर्म में एक शक्तिशाली और पवित्र स्तोत्र है। यह स्तुति देवी वाराही को समर्पित है, जिन्हें शक्तिशाली देवी और माँ दुर्गा के रूप का एक अवतार माना जाता है।

Contents

वाराही को सृष्टि की रक्षक, दुष्टों का नाश करने वाली और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। यह स्तोत्र देवी को प्रसन्न करने, संकटों से बचने और जीवन में सुख-शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

किरात वाराही कौन हैं?

वाराही देवी हिंदू देवी-देवताओं में अत्यधिक पूजनीय हैं। वे शक्ति की देवी हैं और दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। देवी वाराही का स्वरूप एक वराह (सूअर) का है।

यह स्वरूप पृथ्वी को बचाने और अधर्म का नाश करने के लिए लिया गया था। किरात वाराही स्तोत्र में देवी को किरात योद्धा के रूप में वर्णित किया गया है, जो जंगलों में रहने वाले शक्तिशाली योद्धा के प्रतीक हैं। यह स्तोत्र उनके अद्भुत साहस और शक्ति का वर्णन करता है।

स्तोत्र के महत्व और प्रभाव

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) के नियमित पाठ से कई लाभ प्राप्त होते हैं। यह न केवल आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं को भी दूर करता है। इस स्तोत्र का जाप करने से धन-धान्य, मानसिक शांति और परिवार की सुरक्षा मिलती है। यह तांत्रिक साधना में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। खासकर वे लोग, जो भौतिक और आध्यात्मिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं, इस स्तोत्र का पाठ करके समाधान पा सकते हैं।

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram)

श्री किरात वाराही स्तोत्रम्
(Sri Kirata varahi Stotram)

अस्य श्रीकिरातवाराहीस्तोत्रमहामन्त्रस्य
दूर्वासो भगवान् ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः ।
श्री किरातवाराही मुद्रारूपिणी देवता ।
हुं बीजं रं शक्तिः क्लीं कीलकं मम सर्वशत्रुक्षयार्थं
श्रीकिरातवाराहीस्तोत्रजपे विनियोगः ॥

उग्ररूपां महादेवीं शत्रुनाशनतत्पराम् ।
क्रूरां किरातवाराहीं वन्देहं कार्यसिद्धये ॥ १॥

स्वापहीनां मदालस्यामप्रमत्तामतामसीम् ।
दंष्ट्राकरालवदनां विकृतास्यां महारवाम् ॥ २॥

ऊर्ध्वकेशीमुग्रधरां सोमसूर्याग्निलोचनाम् ।
लोचनाग्निस्फुलिङ्गाद्यैर्भस्मीकृत्वाजगत्त्रयम् ॥ ३॥

जगत्त्रयं मोदयन्तीमट्टहासैर्मुहुर्मुहुः ।
खड्गं च मुसलं चैव पाशं शोणितपात्रकम् ॥ ४॥

दधतीं पञ्चशाखैः स्वैः स्वर्णाभरणभूषिताम् ।
गुञ्जामालां शङ्खमालां नानारत्नविभूषिताम् ॥ ५॥

वैरिपत्नीकण्ठसूत्रच्छेदनक्षुररूपिणीम् ।
क्रोधोद्धतां प्रजाहन्तृ क्षुरिके वस्थितां सदा ॥ ६॥

जितरम्भोरुयुगलां रिपुसंहारताण्डवीम् ।
रुद्रशक्तिं परां व्यक्तामीश्वरीं परदेवताम् ॥ ७॥

विभज्य कण्ठदंष्ट्राभ्यां पिबन्तीमसृजं रिपोः ।
गोकण्ठमिव शार्दूलो गजकण्ठं यथा हरिः ॥ ८॥

कपोतायाश्च वाराही पतत्यशनया रिपौ ।
सर्वशत्रुं च शुष्यन्ती कम्पन्ती सर्वव्याधयः ॥ ९॥

विधिविष्णुशिवेन्द्राद्या मृत्युभीतिपरायणाः ।
एवं जगत्त्रयक्षोभकारकक्रोधसंयुताम् ॥ १०॥

साधकानां पुरः स्थित्वा प्रवदन्तीं मुहुर्मुहुः ।
प्रचरन्तीं भक्षयामि तपस्साधकते रिपून् ॥ ११॥

तेपि यानो ब्रह्मजिह्वा शत्रुमारणतत्पराम् ।
त्वगसृङ्मांसमेदोस्थिमज्जाशुक्लानि सर्वदा ॥ १२॥

भक्षयन्तीं भक्तशत्रो रचिरात्प्राणहारिणीम् ।
एवंविधां महादेवीं याचेहं शत्रुपीडनम् ॥ १३॥

शत्रुनाशनरूपाणि कर्माणि कुरु पञ्चमि ।
सर्वशत्रुविनाशार्थं त्वामहं शरणं गतः ॥ १४॥

तस्मादवश्यं शत्रूणां वाराहि कुरु नाशनम् ।
पातुमिच्छामि वाराहि देवि त्वं रिपुकर्मतः ॥ १५॥

मारयाशु महादेवी तत्कथां तेन कर्मणा ।
आपदशत्रुभूताया ग्रहोत्था राजकाश्च याः ॥ १६॥

नानाविधाश्च वाराहि स्तम्भयाशु निरन्तरम् ।
शत्रुग्रामगृहान्देशान्राष्ट्रान्यपि च सर्वदा ॥ १७॥

उच्चाटयाशु वाराहि वृकवत्प्रमथाशु तान् ।
अमुकामुकसंज्ञांश्च शत्रूणां च परस्परम् ॥ १८॥

विद्वेषय महादेवि कुर्वन्तं मे प्रयोजनम् ।
यथा नश्यन्ति रिपवस्तथा विद्वेषणं कुरु ॥ १९॥

यस्मिन् काले रिपुस्तम्भं भक्षणाय समर्पितम् ।
इदानीमेव वाराहि भुङ्क्ष्वेदं कालमृत्युवत् ॥ २०॥

मां दृष्ट्वा ये जना नित्यं विद्वेषन्ति हसन्ति च ।
दूषयन्ति च निन्दन्ति वाराह्येतान् प्रमारय ॥ २१॥

हन्तु ते मुसलः शत्रून् अशनेः पतनादिव ।
शत्रुदेहान् हलं तीक्ष्णं करोतु शकलीकृतान् ॥ २२॥

हन्तु गात्राणि शत्रूणां दंष्ट्रा वाराहि ते शुभे ।
सिंहदंष्ट्रैः पादनखैर्हत्वा शत्रून् सुदुस्सहान् ॥ २३॥

पादैर्निपीड्य शत्रूणां गात्राणि महिषो यथा ।
तांस्ताडयन्ती श‍ृङ्गाभ्यां रिपुं नाशय मेधुना ॥ २४॥

किमुक्तैर्बहुभिर्वाक्यैरचिराच्छत्रुनाशनम् ।
कुरु वश्यं कुरु कुरु वाराहि भक्तवत्सले ॥ २५॥

एतत्किरातवाराह्यं स्तोत्रमापन्निवारणम् ।
मारकं सर्वशत्रूणां सर्वाभीष्टफलप्रदम् ॥ २६॥

त्रिसन्ध्यं पठते यस्तु स्तोत्रोक्त फलमश्नुते ।
मुसलेनाथ शत्रूंश्च मारयन्ति स्मरन्ति ये ॥ २७॥

तार्क्ष्यारूढां सुवर्णाभां जपेत्तेषां न संशयः ।
अचिराद्दुस्तरं साध्यं हस्तेनाकृष्य दीयते ॥ २८॥

एवं ध्यायेज्जपेद्देवीमाकर्षणफलं लभेत् ।
अश्वारूढां रक्तवर्णां रक्तवस्त्राद्यलङ्कृताम् ॥ २९॥

एवं ध्यायेज्जपेद्देवीं जनवश्यमाप्नुयात् ।
दंष्ट्राधृतभुजां नित्यं प्राणवायुं प्रयच्छति ॥ ३०॥

दूर्वास्यां संस्मरेद्देवीं भूलाभं याति बुद्धिमान् ।
सकलेष्टार्थदा देवी साधकस्तत्र दुर्लभः ॥ ३१॥

इति श्रीकिरातवाराहीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

"किरात वाराही स्तोत्र: (Kirata varahi Stotram) शक्तिशाली स्तुति की पूरी जानकारी"
किरात वाराही स्तोत्र: (Kirata varahi Stotram) शक्तिशाली स्तुति की पूरी जानकारी!

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) का इतिहास

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू ग्रंथों से मानी जाती है। इसे विशेष रूप से तंत्र शास्त्र और शाक्त परंपरा का हिस्सा माना गया है। कई साधु और ऋषि देवी वाराही की पूजा करते आए हैं। यह स्तोत्र भगवान विष्णु के वराह अवतार से भी जुड़ा हुआ है, जहां उन्होंने देवी वाराही के रूप में पृथ्वी की रक्षा की।

कैसे करें किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) का पाठ?

  • शुद्धता का ध्यान रखें: पाठ करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • सामग्री तैयार करें: देवी वाराही की तस्वीर, दीपक, फूल, और कुमकुम रखें।
  • सही समय: इस स्तोत्र का पाठ सुबह या रात में किया जा सकता है।
  • मन को शांत करें: पाठ से पहले ध्यान करें और देवी को समर्पित होकर प्रार्थना करें।

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) का पाठ करने के फायदे

  1. सुरक्षा और शांति: यह स्तोत्र पाठक और उसके परिवार को संकटों से बचाता है।
  2. आध्यात्मिक विकास: यह मन को स्थिर करता है और आत्मज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है।
  3. धन और समृद्धि: देवी वाराही को प्रसन्न करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  4. बाधा निवारण: जीवन की हर कठिनाई और नकारात्मकता को समाप्त करता है।

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) के खास मंत्र

स्तोत्र के कई मंत्र हैं, जो देवी की शक्ति और महिमा का गुणगान करते हैं। इनमें से कुछ मंत्र विशेष रूप से प्रभावी माने जाते हैं। जैसे:
“ॐ ह्रीं वरेण्ये नमः”
यह मंत्र देवी को शक्ति और समर्पण के साथ प्रसन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है।

स्तोत्र पाठ में सावधानियां

  • हमेशा सही उच्चारण करें।
  • अध्यात्मिक नियमों का पालन करें।
  • देवी की पूजा में किसी भी प्रकार की लापरवाही न करें।
  • अगर संभव हो, तो इस स्तोत्र का पाठ गुरु के मार्गदर्शन में करें।

तंत्र साधना में किरात वाराही का स्थान

तंत्र साधना में किरात वाराही को विशेष महत्व दिया गया है। उनकी साधना से व्यक्ति को गुप्त शक्तियां और सिद्धियां प्राप्त होती हैं। खासकर वे साधक, जो तंत्र मार्ग पर चलते हैं, देवी वाराही की पूजा को सर्वोपरि मानते हैं।

बच्चों और युवाओं के लिए लाभ

आजकल की तनावपूर्ण जीवनशैली में इस स्तोत्र का पाठ करना बेहद लाभकारी हो सकता है। यह बच्चों और युवाओं में आत्मविश्वास बढ़ाता है, परीक्षा में सफलता दिलाता है और मानसिक एकाग्रता को मजबूत करता है।

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) की वैज्ञानिक व्याख्या

यद्यपि यह एक आध्यात्मिक स्तोत्र है, लेकिन इसके पाठ से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगें मानव मस्तिष्क और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। यह ध्यान और मनोविज्ञान में भी उपयोगी माना गया है।

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) केवल एक साधारण पाठ नहीं है, बल्कि यह जीवन की हर समस्या का समाधान देने वाला अद्भुत स्तोत्र है। इसे पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ने से व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन महसूस करता है। अगर आप भी जीवन में शांति, समृद्धि और आत्मविश्वास चाहते हैं, तो इस स्तोत्र का नियमित पाठ करें।

1. किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) क्या है?

किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) देवी वाराही की स्तुति में लिखा गया एक पवित्र पाठ है, जिसे उनकी कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है।

2. देवी वाराही कौन हैं?

देवी वाराही हिंदू धर्म में शक्ति की देवी हैं। वे वराह (सूअर) के रूप में प्रकट हुईं और दुष्टों का नाश कर सृष्टि की रक्षा करती हैं।

3. किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) का क्या महत्व है?

यह स्तोत्र मानसिक शांति, धन-धान्य, बाधा निवारण, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने में मदद करता है।

4. इस स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?

सुबह या रात में, किसी भी शांत समय पर इस स्तोत्र का पाठ किया जा सकता है।

5. स्तोत्र पाठ से क्या लाभ मिलते हैं?

स्तोत्र पाठ से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति, सुरक्षा और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।

6. क्या किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) तांत्रिक साधना से जुड़ा है?

हाँ, तंत्र साधना में देवी वाराही की पूजा का विशेष स्थान है। यह साधकों को सिद्धियां और गुप्त शक्तियां प्रदान करती है।

7.किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) का पाठ करने के लिए क्या तैयारी करनी चाहिए?

पाठ करने से पहले स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा सामग्री जैसे दीपक, फूल, और कुमकुम रखें।

8. इस स्तोत्र में कौन से मंत्र शामिल हैं?

इसमें देवी की शक्ति और महिमा का वर्णन करने वाले मंत्र शामिल हैं, जैसे “ॐ ह्रीं वरेण्ये नमः”।

9. क्या इस स्तोत्र को सभी पढ़ सकते हैं?

हाँ, इसे कोई भी श्रद्धा और सही उच्चारण के साथ पढ़ सकता है।

10. किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) का पाठ कितनी बार करना चाहिए?

इसे कम से कम 11 बार या 108 बार करने की सलाह दी जाती है, लेकिन आप अपनी सुविधा के अनुसार पाठ कर सकते हैं।

11. क्या यह स्तोत्र आर्थिक समृद्धि लाता है?

जी हाँ, देवी वाराही को प्रसन्न करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और जीवन में धन की वृद्धि होती है।

12. क्या यह स्तोत्र बाधाएं दूर करता है?

यह स्तोत्र जीवन की हर कठिनाई और नकारात्मकता को समाप्त करने में सहायक है।

13. क्या इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए गुरु की आवश्यकता है?

गुरु का मार्गदर्शन होना लाभकारी है, लेकिन इसे अपनी श्रद्धा से भी पढ़ा जा सकता है।

14. क्या यह स्तोत्र बच्चों और युवाओं के लिए फायदेमंद है?

हाँ, यह बच्चों और युवाओं की एकाग्रता, आत्मविश्वास और मानसिक शांति बढ़ाने में मदद करता है।

15. किरात वाराही स्तोत्र (Kirata varahi Stotram) का वैज्ञानिक महत्व क्या है?

इस स्तोत्र का पाठ मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक है। इसकी ध्वनि तरंगें शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।

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