उत्तम स्वास्थ्य लाभ के लिये करे सूर्य स्तोत्र का पाठ
सूर्य स्तोत्र में सूर्य देव के २१ पवित्र, शुभ एवं गोपनीय नाम हैं।
सूर्य स्तोत्र :
विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः श्री मॉल्लोक चक्षुर्मुहेश्वर:॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभ्रस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा रवेः॥
सूर्य देव के २१ नाम :
‘विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोकचक्षु, महेश्वर, लरोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्त्ता, तमिस्राहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गशभ्नस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत-
सूर्यदेव के इक्कीस नामों का यह स्तोत्र भगवान सूर्य को सर्वदा प्रिय है।’
(ब्रहम पुराण : 34.34-33)
उत्तम स्वास्थ्य लाभ के लिये भोजन और वास्तु सिद्धांत
शास्त्रोक्त मतानुशार भोजन सर्वदा पूर्व अथवा उत्तरकी ओर मुख करके करना चाहिये।
“प्राइमुखोदडमुखो वापि”
( विष्णु पुराण 3।११।७८)
“प्राइमुख5ननानि भुज्जी”
( वसिष्ठ स्मृति १२।१५)
दक्षिण अथवा पश्चिमकी ओर मुख करके भोजन नहीं करना चाहिये।
भुज्जीत नैवेह च दक्षिणामुखो न च
प्रतीच्यामभिभोजनीयम्॥
(वामनपुराण १४।५१)
दक्षिणकी ओर मुख करके भोजन करनेसे उस भोजन में राक्षसी प्रभाव आ जाता हैं।
‘तद् वै रक्षांसि भुज्ञते ‘
(पाराशरस्मृति १।५९)
अप्रक्षात्रितपादस्तु यो भुड़न्के दक्षिणामुखः |
यो वेष्टितशिरा भुडन्क्ते प्रेता भुज्जन्ति नित्यशः ॥
( स्कन्दपुराण, प्रभास” २१६ । ४१)
जो बिना पैर धोये भोजन करता हैं, जो दक्षिणकी ओर मुँख करके खाता हैं अथवा जो सिरमें वस्त्र लपेट कर (सिर ढककर) खाता हैं, उसके द्वारा ग्रहण किये गये अन्न को सदा प्रेत ही खाते हैं |
यद् वेष्टितशिरा भुडन्क्ते यद् भुडन्क्ते दक्षिणामुखः।
सोपानत्कश्च यद् भुडन्क्ते सर्व विद्यात् तदासुरम् ॥
(महाभारत, अनु० ९०।१९)
जो सिरमें वस्त्र लपेटकर भोजन करता हैं, जो दक्षिणकी ओर मुख करके भोजन करता है तथा जो चप्पल्र-जूते पहने भोजन करता हैं, उसके द्वारा ग्रहण किये गये भोजन को आसुर समझना चाहिये।
लभेदायुर्याम्यां प्रेतत्वमश्रुते..।
भवेद्रोगी आयुर्वित्त॑ तथोत्तरे ॥
( पद्मपुराण, सृष्टि० ५१ | १२८)
पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति की आयु बढ़ती हैं। दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करने से प्रेत तत्व की प्राप्ति होती हैं। पश्चिम की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति रोगी होता हैं। उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति की आयु तथा धन की प्राप्ति एवं वृद्धि होती हैं |
सूर्य स्तोत्र का नियमीत सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय पाठ करने से व्यक्ति सब पपों से मुक्त होकर, उसका शरीर निरोगी होता हैं, एवं धन की वृद्धि कर व्यक्ति का यश चरों और फेलाने वाला हैं। इसे स्तोत्रराज भी कहा जाता हैं। सूर्य स्तोत्र को तीनों ल्रोकों में प्रसिद्धि प्राप्त हैं।
संपूर्ण प्राण-प्रतिष्ठित सूर्ययंत्र को पूजा स्थान मे स्थापीत कर के नित्य यंत्र को धूप-दीप करने से विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।
उत्तम स्वास्थ्य लाभ के लिये शयन और वास्तु सिद्धांत
सर्वदा पूर्व या दक्षिणकी तरफ सिर करके सोना चाहिये आयु की वृद्धि होती हैं, उत्तर या पश्चिमकी तरफ सिर करके सोने से आयु क्षीण होती हैं तथा शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं।
नोत्तराभिमुखः सुप्यात् पश्चिमाभिमुखो न च ॥
(नघुव्यास स्मृति २ | ८८)
उत्तरे पश्चिमे चैव न स्वपेद्धि कदाचन् ॥
स्वप्रादायुःक्षयम् याति ब्रहमहा पुरुषो भवेत् ।
न कुर्वीत ततः स्वप्रं शस्तम् च पूर्वदक्षिणम् ॥( पदम पुरण, सृष्टि ५१॥ १२५ – १२६ )
पूर्व की तरफ सिर करके सोनेसे व्यक्ति को विद्या प्राप्त होती हैं।
दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन तथा आयुकी वृद्धि होती हैं ।
पश्चिम की तरफ सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता होती हैं | उत्तर की तरफ सिर करके सोनेसे धन, यश, आयु की हानि तथा मृत्यु प्राप्त होती हैं, अर्थात् आयु क्षीण हो जाती हैं।
प्राकशिरः शयने विद्याद्धनमायुश्च दक्षिणो |
पश्चिमे प्रबला चिन्ता हानिमृत्युरथोत्तरे ॥( आचारमयूखः विश्वकर्मप्रकाश )
शास्त्रमें उल्लेख हैं कि अपने घरमें पुर्व की तरफ सिर करके, ससुरालमें दक्षिण की तरफ सिर करके और परदेश[(विदेश)में पश्चिम की तरफ सिर करके सोये, परंतु उत्तर की तरफ सिर करके कभी न सोये –
स्वगेहे प्राक्छिराः सुप्याच्छवशुरे दक्षिणाशिराः ।
प्रत्यक्छिराः प्रवासे तु नोदक्सुप्यात्कदाचन ॥( आचारमयूख; विश्वकर्मप्रकाश १० | ४५)
भारतीय संस्कृति में एसी मान्य ता हैं, की जिस घर मे निवास करते हो उस घर के मुख्य द्वार की और सिर या पैर कर के शयन करने से अशुभ प्रभाव प्राप्त होता हैं। क्योकि मरणासत्रव्यक्तिका सिर मुख्य द्वार की तरफ रखा जात हैं।
धन – सम्पत्ति इच्छा रखने वाले वाले व्यक्ति को अन्न, गौ, गुरु, अग्नि और देवता के शयन स्थान के ऊपर नहीं सोना चाहिये । अर्थात: अन्न रखने वाले
भण्डार गृह, गौ-शाला, गुरु के शयन स्थान, पाकशाला(रसोई गृह) और मंदिर के ऊपर शयन या शयन कक्ष नहीं बनाना चाहिये |