सिर्फ महीने में एक बार करें ये व्रत और देखें कैसे बरसेगी महालक्ष्मी (Mahalakshmi) की कृपा!
मासिक लक्ष्मी व्रत एक विशेष व्रत है जो प्रत्येक महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने और जीवन में धन, सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से गृहस्थ जीवन में शांति और सम्पन्नता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक करता है, उसके घर में लक्ष्मी जी का वास होता है और दरिद्रता दूर होती है। मासिक लक्ष्मी व्रत का महत्व पौराणिक ग्रंथों में भी बताया गया है और इसे सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए विशेष फलदायी माना गया है।
पुराणों के अनुसार, एक समय एक निर्धन ब्राह्मण स्त्री ने इस व्रत को किया और कुछ ही समय में उसके जीवन में समृद्धि आ गई। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी ने उसे दर्शन दिए और आशीर्वाद प्रदान किया।
इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति की आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और जीवन में आनंद और वैभव का आगमन होता है। यह व्रत धर्म, भक्ति और तपस्या का सुंदर संगम है, जो मनुष्य को आत्मिक रूप से भी सशक्त बनाता है।
यह व्रत हर महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यदि किसी माह में यह तिथि दो दिन पड़ती है तो उदय कालिक अष्टमी को व्रत रखना श्रेष्ठ माना जाता है।
व्रत रखने का समय सूर्योदय से शुरू होकर सूर्यास्त तक चलता है, और पूजा प्रायः संध्या समय की जाती है। इस दिन निर्जल या फलाहार रहकर व्रत करना शुभ होता है।
व्रत से एक दिन पहले ही घर की साफ-सफाई, पूजा स्थान की तैयारी और पूजा सामग्री की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। आप नीचे दी गई चीजें पहले से तैयार रखें:
व्रत के दिन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और शुद्ध मन से व्रत का संकल्प लें।
व्रत कथा सुनना या पढ़ना इस दिन अति आवश्यक होता है। इस कथा में बताया गया है कि कैसे एक निर्धन स्त्री ने यह व्रत किया और उसे देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। व्रत कथा कुछ इस प्रकार है:
एक बार एक गरीब ब्राह्मण स्त्री रोज दुखी रहती थी। एक दिन एक वृद्धा ने उसे मासिक लक्ष्मी व्रत करने की सलाह दी। स्त्री ने पूरे नियम से यह व्रत करना शुरू किया और कुछ ही महीनों में उसके घर में धन, अन्न और सुख का भंडार हो गया। देवी लक्ष्मी ने स्वयं प्रकट होकर उसे आशीर्वाद दिया।
आरती:
जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुम्हको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥
बीज मंत्र:
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः॥
यह मंत्र कम से कम 108 बार जपें। इससे मन को शांति और पूजा को पूर्णता मिलती है।
संध्या समय पूजा संपन्न होने के बाद माता को भोग अर्पित करें और प्रसाद सभी परिजनों में बांटें। व्रत खोलने के लिए हल्का फलाहार या मीठा खाकर व्रत समाप्त करें। यदि आप निर्जल व्रत कर रहे हैं, तो पहले जल ग्रहण करें।
व्रत के अगले दिन जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करना बहुत पुण्यदायी होता है।
इस व्रत को श्रद्धा, निष्ठा और नियम से करने पर अचूक फल प्राप्त होते हैं।
इस व्रत की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह हर महीने किया जा सकता है, और इसका प्रभाव तुरंत दिखने लगता है। जो लोग आर्थिक तंगी, कर्ज या नौकरी में अस्थिरता से जूझ रहे हैं, उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
माँ लक्ष्मी सौम्यता, शांति और वैभव की देवी हैं। उनका व्रत व्यक्ति के भाग्य को बदल सकता है, बशर्ते वह इसे श्रद्धा और विश्वास से करे।
ज्योतिष शास्त्र में भी यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। शुक्र और चंद्र ग्रह यदि कमजोर हो तो इस व्रत से ग्रहदोष भी शांत होते हैं। यह व्रत धनभाव और मानसिक चिंता को दूर करता है।
यदि आपकी कुंडली में राहु-केतु दोष है तो भी मासिक लक्ष्मी व्रत बहुत लाभकारी हो सकता है।
यह व्रत सिर्फ देवी लक्ष्मी को समर्पित है, जबकि अन्य व्रतों में विविध देवी-देवताओं की पूजा होती है। मासिक लक्ष्मी व्रत हर महीने आता है, जबकि कई व्रत साल में सिर्फ एक बार आते हैं।
यह व्रत व्यवहारिक रूप से आसान है और इसका फल भी जल्दी मिलता है, इसीलिए यह हर वर्ग के लोगों में लोकप्रिय है।
मासिक लक्ष्मी व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी बहुत प्रभावशाली है। यह व्रत जीवन में सुख-समृद्धि, धन, ऐश्वर्य और मानसिक शांति प्रदान करता है। जो व्यक्ति सच्चे मन से इस व्रत को करते हैं, उनके जीवन में माँ लक्ष्मी स्थायी रूप से वास करती हैं।
मासिक लक्ष्मी व्रत हर महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।
इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं, लेकिन विशेष रूप से गृहस्थ महिलाएं इसे करती हैं।
व्रत में फलाहार, दूध, मेवा या सात्त्विक भोजन लिया जा सकता है, या निर्जल व्रत भी रखा जा सकता है।
इस दिन मांस, शराब, लहसुन, प्याज, क्रोध, झूठ, निंदा आदि से दूर रहना चाहिए।
माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र की धूप, दीप, चंदन, फूल, कमलगट्टा, प्रसाद से पूजा की जाती है और आरती की जाती है।
हाँ, व्रत कथा सुनना या पढ़ना इस व्रत का मुख्य अंग है और बिना कथा के व्रत अधूरा माना जाता है।
व्रत से दरिद्रता समाप्त, धन की प्राप्ति, घर में शांति, और व्यापार-नौकरी में तरक्की होती है।
नहीं, मासिक धर्म के समय महिलाएं यह व्रत नहीं रखतीं और न ही पूजा करती हैं।
लाल फूल, विशेषकर कमल या गुलाब, देवी लक्ष्मी को अति प्रिय माने जाते हैं।
आप चाहें तो इसे 12 महीने नियमित कर सकते हैं या मनोकामना पूर्ण होने तक करते रहें।
यदि किसी कारण व्रत छूट जाए, तो मन से क्षमा याचना करें और अगली बार से नियमपूर्वक करें।
नहीं, यह व्रत पुरुष और स्त्री दोनों कर सकते हैं। यह सबके लिए लाभकारी है।
यह व्रत मुख्यतः शुक्र और चंद्र ग्रह से संबंधित है और इनकी स्थिति सुधारता है।
संध्या काल, यानी सूर्यास्त के समय पूजा करना अधिक शुभ माना गया है।
हाँ, यदि तिथि मिले तो आप साथ में अष्टमी या दुर्गाष्टमी व्रत भी रख सकते हैं, पर दोनों की पूजा अलग-अलग करें।
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