“काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का गहरा रहस्य: देवी काली की कृपा पाने का मार्ग”

Soma
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"काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का गहरा रहस्य: देवी काली की कृपा पाने का मार्ग"

“काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का गहरा रहस्य: देवी काली की कृपा पाने का मार्ग”


काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra)

काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) देवी काली की स्तुति के लिए अत्यंत प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह प्राचीन ग्रंथ भक्तों को देवी काली के स्वरूप, उनकी शक्तियों और कृपा को समझने का अवसर देता है। इस स्तोत्र को सुनने या पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। काली माता को शक्ति की देवी माना गया है, जो नकारात्मकता को नष्ट करती हैं और भक्तों को शक्ति प्रदान करती हैं।

Contents
  • काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) की रचना
  • काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का अर्थ
  • काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का पाठ कब और कैसे करें?
  • काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) के लाभ
  • काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) और भौतिक सुख
  • भक्तों के अनुभव
  • इस स्तोत्र का पाठ करना आध्यात्मिक उन्नति, भय का नाश और साहस का संचार करता है। काली कर्पूर स्तोत्र का गहरा अर्थ और महत्व समझने के लिए इसे सरल शब्दों में जानना आवश्यक है।


    देवी काली का स्वरूप

    काली माता को उनकी भयावह लेकिन करुणामय रूप के लिए पूजा जाता है। उनका गहरा काला रंग अज्ञान को नष्ट करने और सत्य का प्रकाश फैलाने का प्रतीक है। उनके चार हाथों में त्रिशूल, खड़ग, सिर और वर मुद्रा होती है, जो उनकी शक्ति और कृपा को दर्शाते हैं।

    काली माता का भैरवी रूप उनके भक्तों के जीवन से अज्ञान, भय और बुराइयों को दूर करता है। इस स्तोत्र में उनकी स्तुति करना उन्हें प्रसन्न करता है और भक्त को उनके आशीर्वाद से नवाजता है।


    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का महत्व

    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का पाठ करने से आध्यात्मिक शांति, भय का अंत और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। यह स्तोत्र भक्त को अपने आंतरिक बल और साहस को पहचानने में मदद करता है।

    जो लोग जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, उन्हें यह स्तोत्र अवश्य पढ़ना चाहिए। यह न केवल आत्मविश्वास बढ़ाता है बल्कि व्यक्ति को हर स्थिति में स्थिर रहने की क्षमता प्रदान करता है।

    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra)

    || काली कर्पूर स्तोत्रम् ||
    (Kali Karpura Stotram)


    कर्पूरं मध्यमान्त्य स्वरपररहितं सेन्दुवामाक्षियुक्तं बीजं ते मातरेतत्त्रिपुरहरवधु त्रिःकृतं ये जपन्ति ।

    तेषां गद्यानि पद्यानि च मुखकुहरादुल्लसन्त्येव वाचः स्वच्छन्दं ध्वान्तधाराधररुचिरुचिरे सर्वसिद्धिं गतानाम् ॥ १ ॥

    ईशानः सेन्दुवामश्रवणपरिगतो बीजमन्यन्महेशि द्वन्द्वं ते मन्दचेता यदि जपति जनो वारमेकं कदाचित् ।

    जित्वा वाचामधीशं धनदमपि चिरं मोहयन्नम्बुजाक्षि वृन्दं चन्द्रार्धचूडे प्रभवति स महाघोरबाणावतंसे ॥ २ ॥

    ईशो वैश्वानरस्थः शशधरविलसद्वामनेत्रेण युक्तो बीजं ते द्वन्द्वमन्यद्विगलितचिकुरे कालिके ये जपन्ति ।

    द्वेष्टारं घ्नन्ति ते च त्रिभुवनमपि ते वश्यभावं नयन्ति सृक्कद्वन्द्वास्रग्धाराद्वयधरवदने दक्षिणे कालिके च ॥ ३ ॥

    ऊर्ध्वे वामे कृपाणं करकमलतले च्छिन्नमुण्डं तथाधः सव्ये भीतिं वरं च त्रिजगदघहरे दक्षिणे कालिके च ।

    जप्त्वैतन्नामवर्णं तव मनुविभवं भावयत्येवमम्ब तेषामष्टौ करस्थाः प्रकटित वदने सिद्धयस्त्र्यम्बकस्य ॥ ४ ॥

    वर्गाद्यं वह्निसंस्थं विधुरतिललितं तत्त्रयं कूर्चयुग्मं लज्जाद्वन्द्वं च पश्चात् स्मितमुखि तदधष्ठद्वयं योजपित्वा ।

    त्वां मातर्ये जपन्ति स्मरहरमहिले भावयन्त स्वरूपं ते लक्ष्मीलास्यलीलाकमलदलदृशः कामरूपा भवन्ति ॥ ५ ॥

    प्रत्येकं वा द्वयं वा त्रयमपि च परं बीजमत्यन्तगुह्यं त्वन्नाम्ना योजपित्वा सकलमपि सदा भावयन्तो जपन्ति ।

    तेषां नेत्रारविन्दे विहरति कमला वक्त्रशुभ्रांशुबिम्बे वाग्देवी देवि मुण्डस्रगतिपरिलसत्कण्ठ पीनस्तनाढ्ये ॥ ६ ॥

    गतासूनां बाहूप्रकरकृतकाञ्चीपरिलस–न्नितम्बां दिग्वस्त्रां त्रिभुवनविधात्रीं त्रिनयनाम् ।

    श्मशानस्थे तल्पे शवहृदि महाकालसुरतः प्रसक्तां त्वां ध्यायन् जननि जडचेता अपि कविः ॥ ७ ॥

    शिवाभिर्घोराभिः शवनिवहमुण्डाऽस्थि निकरैः परं सङ्कीर्णायां प्रकटितचितायां हरवधूम् ।

    प्रविष्टां सन्तुष्टामुपरिसुरतेनाति युवतीं सदा त्वां ध्यायन्ति क्वचिदपि न तेषां परिभव ॥ ८ ॥

    वदामस्ते किं वा जननि वयमुच्चैर्जडधियो न धाता नापीशो हरिरपि न ते वेत्ति परमम् ।

    तथापि त्वद्भक्तिमुखरयति चास्माकमसिते तदेतत्क्षन्तव्यं न खलु पशुरोषः समुचितः ॥ ९ ॥

    समन्तादापीनस्तनजघनधृग्यौवनवती रतासक्तो नक्तं यदि जपति भक्तस्तव मनुम् ।

    विवासास्त्वां ध्यायन् गलितचिकुरे तस्य वशगः समस्ताः सिद्ध्यौघाः भुवि तव चिरञ्जीवति कविः ॥ १० ॥ [कलिः]

    समाः स्वस्थीभूतां जपति विपरीतेरति विधो [यदि सदा] विचिन्त्य त्वां ध्यायन्नतिशयमहाकालसुरताम् ।

    तदा तस्य क्षोणीतलविरहमाणस्य विदुषः कराम्भोजे वश्या हरवधू महासिद्धिनिवहाः ॥ ११ ॥

    प्रसूते संसारं जननि भवती पालयति च समस्तं क्षित्यादि प्रलयसमये संहरति च ।

    अतस्त्वां धातापि त्रिभुवनपतिः श्रीपतिरथो महेशोऽपि प्रायः सकलमपि किं स्तौमि भवतीम् ॥ १२ ॥

    अनेके सेवन्ते भवदधिकगीर्वाणनिवहान् विमूढास्ते मातः किमपि न हि जानन्ति परमम् ।

    समाराध्यामाद्यां हरिहरविरिञ्च्यादिविबुधैः प्रसन्नोऽस्मि स्वैरं रतिरसमहानन्दनिरताम् ॥ १३ ॥

    धरित्री कीलालं शुचिरपि समीरोपि गगनं त्वमेका कल्याणी गिरिशरमणी कालि सकलम् ।

    स्तुतिः का ते मातस्तवकरुणया मामगतिकं प्रसन्ना त्वं भूया भवमननुभूयान्मम जनुः ॥ १४ ॥

    श्मशानस्थः सुस्थो गलितचिकुरो दिक्पटधरः सहस्रं त्वर्काणां निजगलितवीर्येण कुसुमम् ।

    जपस्त्वत्प्रत्येकं मनुमपि तव ध्याननिरतो महाकालि स्वैरं स भवति धरित्री परिवृढः ॥ १५ ॥

    गृहे सम्मार्जन्या परिगलितवीजं हि कुसुमं समूलं मध्याह्ने वितरति चितायां कुजदिने ।

    समुच्चार्य प्रेम्ना मनुमपि सकृत्कालि सततं गजारूढो जाति क्षितिपरिवृढः सत्कविवरः ॥ १६ ॥

    स्वपुष्पैराकीर्णं कुसुमधनुषो मन्दिरमहो पुरो ध्यायन् ध्यायन् यदि जपति भक्तस्तव मनुम् ।

    सगन्धर्वश्रेणीपतिरपि कवित्वामृतनदी नदीनः पर्यन्ते परमपदलीनः प्रभवति ॥ १७ ॥

    त्रिपञ्चारे पीठे शवशिवहृदि स्मेरवदनां महाकालेनोच्चैर्मदनवशलावण्यनिरताम् ।

    समासक्तो नक्तं स्वयमपि रतानन्दनिरतो जनो यो ध्यायेत्त्वां जननि किल सस्यात् स्मरहरः ॥ १८ ॥

    सलोमास्थि स्वैरं पललमपि मार्जारमसिते परं चोष्ट्रं मेषं नरमहिषयोश्छागमपि वा ।

    बलिं ते पूजायामपि वितरतां मर्त्यवसतां सतां सिद्धिः सर्वा प्रतिदिनमपूर्वा प्रभवति ॥ १९ ॥

    वशीलक्षं मन्त्रं प्रजपति हविष्यासनरतो दिवा मातर्युष्मच्चरणयुगल ध्याननिरतः ।

    परं नक्तं नग्नो निधुवन विनोदेन च मनुं जपेल्लक्षं सम्यक् स्मरहरसमानः क्षितितले ॥ २० ॥

    इदं स्तोत्रं मातस्तव मनुसमुद्धारणजनुः स्वरूपाख्यं पादाम्बुजयुगलपूजाविधियुतम् ।

    निशार्धे वा पूजासमयमथवा यस्तु पठति प्रलापस्तस्यापि प्रसरति कवित्वामृतरसः ॥ २१ ॥

    कुरङ्गाक्षीवृन्दं तमनुसरति प्रेमतरलं वशस्तस्य क्षोणीपतिरपि कुबेरप्रतिनिधिः ।

    रिपुः कारागारं कलयति चलत्केलिकलया चिरं जीवन्मुक्तः प्रभवति स भक्तः प्रतिजनुः ॥ २२ ॥

    इति श्रीमहाकालविरचितं कालिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

    "काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का गहरा रहस्य: देवी काली की कृपा पाने का मार्ग"
    काली कर्पूर स्तोत्र! (Kali Karpura Stotra) का गहरा रहस्य: देवी काली की कृपा पाने का मार्ग

    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) की रचना

    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। इसे संस्कृत भाषा में लिखा गया है। यह स्तोत्र 22 श्लोकों का एक सुंदर संग्रह है, जो देवी काली की महिमा, शक्ति और सौंदर्य का वर्णन करता है।

    हर श्लोक में काली माता के विभिन्न रूपों और उनके भक्तों के प्रति प्रेम और सुरक्षा को दर्शाया गया है। यह स्तोत्र न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अध्यात्मिक ज्ञान का भी स्रोत है।


    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का अर्थ

    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) के हर श्लोक का गहरा आध्यात्मिक अर्थ है। यह व्यक्ति को भौतिक सुख से परे, आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

    इस स्तोत्र का अर्थ समझने से भक्त देवी काली की अनुकंपा और उनकी दिव्यता को महसूस कर सकता है। काली माता के हर श्लोक में उनकी शक्ति, उनका सौंदर्य और उनकी दया का वर्णन है।


    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का पाठ कब और कैसे करें?

    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का पाठ सुबह और शाम के समय करना सबसे अच्छा माना गया है। पाठ करने से पहले व्यक्ति को स्नान करना चाहिए और देवी काली की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाना चाहिए।

    पाठ करते समय भक्त को मन में शांति, सात्विकता और भक्ति बनाए रखनी चाहिए। यह भी कहा जाता है कि पाठ करते समय कर्पूर जलाना देवी को प्रसन्न करता है।


    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) के लाभ

    1. भय का नाश: यह स्तोत्र व्यक्ति के भीतर छुपे हर प्रकार के भय को समाप्त करता है।
    2. साहस का संचार: व्यक्ति को हर स्थिति में निर्भय और साहसी बनाता है।
    3. आध्यात्मिक उन्नति: यह व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
    4. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा: यह स्तोत्र व्यक्ति को बुरी ऊर्जा और नकारात्मकता से बचाता है।
    5. मानसिक शांति: इसके नियमित पाठ से मन शांत और स्थिर रहता है।

    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) और भौतिक सुख

    हालांकि यह स्तोत्र मुख्य रूप से आध्यात्मिक लाभ के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसे पढ़ने से भक्त को भौतिक सुख भी प्राप्त होते हैं। देवी काली अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करती हैं और जीवन में संपन्नता लाती हैं।


    भक्तों के अनुभव

    कई भक्तों का मानना है कि काली कर्पूर स्तोत्र का पाठ करने से उनकी जटिल समस्याओं का समाधान हुआ है। कुछ ने इसे अपने जीवन में आत्मविश्वास और साहस बढ़ाने वाला बताया।

    भक्तों का यह भी कहना है कि इस स्तोत्र के पाठ से उनके जीवन में शांति, सकारात्मकता और समृद्धि आई है।


    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) देवी काली की शक्ति, करुणा और दिव्यता को समझने का एक सुंदर माध्यम है। इसका पाठ व्यक्ति को मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।

    अगर आप भी जीवन में शांति, साहस और सकारात्मक ऊर्जा चाहते हैं, तो इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। देवी काली का आशीर्वाद आपके जीवन को हर प्रकार की नकारात्मकता से दूर कर देगा।


    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) से जुड़े 15 सामान्य प्रश्न और उत्तर


    1. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) क्या है?

    काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) एक प्राचीन संस्कृत स्तोत्र है, जो देवी काली की महिमा, शक्ति और कृपा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र व्यक्ति को नकारात्मकता से बचाने और आध्यात्मिक शांति प्रदान करने में सहायक है।


    2.काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) की रचना किसने की?

    इस स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। वह देवी काली के परम भक्त थे और उन्होंने यह स्तोत्र उनके प्रति भक्ति व्यक्त करने के लिए लिखा।


    3. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का पाठ कब करना चाहिए?

    इसका पाठ सुबह और शाम के समय करना सबसे शुभ माना जाता है। स्नान के बाद सात्विक मन से देवी काली की पूजा करते हुए इसका पाठ करें।


    4. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का अर्थ क्या है?

    यह स्तोत्र देवी काली की शक्ति, उनकी दया और उनके भयावह लेकिन दिव्य स्वरूप का वर्णन करता है। इसका पाठ व्यक्ति को अपने अंदर छिपी शक्ति को पहचानने में मदद करता है।


    5. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का क्या लाभ है?

    • भय का नाश
    • साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि
    • नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
    • मानसिक शांति
    • आध्यात्मिक उन्नति

    6. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) पढ़ने के लिए क्या नियम हैं?

    • शुद्ध मन और शरीर से पाठ करें।
    • पाठ के समय काली माता की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीप जलाएं।
    • कर्पूर का उपयोग देवी को प्रसन्न करने के लिए करें।

    7. क्या काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) को रोज पढ़ा जा सकता है?

    हाँ, इस स्तोत्र को रोज पढ़ना अत्यंत लाभकारी है। नियमित पाठ से जीवन में सकारात्मकता और शक्ति का संचार होता है।


    8. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) में कितने श्लोक हैं?

    इस स्तोत्र में कुल 22 श्लोक हैं, जो देवी काली के विभिन्न स्वरूपों और उनकी महिमा का वर्णन करते हैं।


    9. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) कौन पढ़ सकता है?

    यह स्तोत्र हर कोई पढ़ सकता है। यह स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध, सभी के लिए समान रूप से फलदायी है।


    10. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का पाठ करते समय क्या सावधानियां रखनी चाहिए?

    • पाठ करते समय मन को भटकने न दें।
    • भक्ति और सात्विकता बनाए रखें।
    • शुद्ध वातावरण में पाठ करें।

    11. क्या काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) से भौतिक सुख मिलते हैं?

    हाँ, देवी काली की कृपा से न केवल आध्यात्मिक बल्कि भौतिक इच्छाएं भी पूरी होती हैं। भक्त को जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।


    12. क्या काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का पाठ डर और चिंता को दूर करता है?

    जी हाँ, इस स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के अंदर से हर प्रकार के भय और चिंता को समाप्त कर देता है।


    13. क्या काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) में देवी काली के स्वरूप का वर्णन है?

    हाँ, इस स्तोत्र में देवी काली के भयावह लेकिन सुंदर और दिव्य रूप का विस्तृत वर्णन किया गया है।


    14. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) का पाठ करते समय क्या प्रयोग किया जाता है?

    पाठ करते समय दीपक, कर्पूर, और देवी काली की मूर्ति या तस्वीर का प्रयोग करना शुभ माना गया है।


    15. काली कर्पूर स्तोत्र (Kali Karpura Stotra) से जुड़ा एक प्रमुख अनुभव क्या है?

    भक्तों के अनुसार, इसका पाठ करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, भय का अंत, और आत्मबल प्राप्त होता है। कई भक्तों ने इसे अपने जीवन की समस्याओं का समाधान बताया है।


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