दशरथ कृत शनि स्तोत्र- Dashrath Krit Shani Stotra
हिंदू धर्म में शनि देव को न्याय के देवता और कर्मफल दाता माना जाता है। मान्यता है कि यदि कोई शनि देव को प्रसन्न कर ले, तो उसके जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो सकते हैं। पुराणों में एक प्रसिद्ध कथा है जिसमें अयोध्या नरेश राजा दशरथ ने शनि देव को प्रसन्न कर एक अमूल्य वरदान प्राप्त किया। इस कथा से जुड़ा दशरथ कृत शनि स्तोत्र आज भी लाखों लोग पढ़ते हैं ताकि शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती से मुक्ति मिले।
प्राचीन काल में, जब शनि देव रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने वाले थे, ज्योतिषियों ने राजा दशरथ को चेताया कि इससे भयंकर अकाल और संकट आ सकता है। राजा दशरथ ने तुरंत अपने रथ पर चढ़कर शनि देव के मार्ग में पहुँचकर उनसे प्रार्थना की।
राजा ने विनम्रता से कहा:
“हे शनि देव! कृपया रोहिणी नक्षत्र को भेदकर न जाएँ, इससे प्रजा का भारी नुकसान होगा।”
शनि देव राजा की भक्ति और साहस से प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि वे रोहिणी को कभी नहीं भेदेंगे। यही नहीं, राजा दशरथ ने उनकी स्तुति में एक विशेष स्तोत्र की रचना की, जिसे आज हम “दशरथ कृत शनि स्तोत्र” के नाम से जानते हैं।
दशरथकृत शनि स्तोत्र:
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥
दशरथ बोले:
“हे प्रसन्न ग्रहपति शनि देव! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो मैं आपसे एक वरदान चाहता हूँ — कभी भी ‘रोहिणी नक्षत्र’ को भेदकर न जाएँ। जब तक नदियाँ और समुद्र, चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी विद्यमान हैं, तब तक इस नियम का पालन हो।
हे महान शनि देव! मैंने जो वरदान माँगा है, उसके अलावा मुझे और कुछ नहीं चाहिए।”
शनि देव ने कहा — “ऐसा ही होगा” और यह वरदान सदैव के लिए प्रदान कर दिया।
राजा दशरथ को यह वरदान पाकर अत्यंत संतोष हुआ और उन्होंने दोबारा प्रसन्न होकर शनि देव से कहा — “हे सुब्रत! एक और वर प्रदान करें।”
दशरथ बोले:
“हे प्रसन्न शनि देव! मुझे वह वरदान दें कि आज से, हे पिंगाक्ष (पीले नेत्र वाले), किसी को भी पीड़ा न दें।”
Q1. दशरथ कृत शनि स्तोत्र कब पढ़ना चाहिए?
शनिवार के दिन सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद पढ़ना उत्तम है।
Q2. क्या यह स्तोत्र साढ़ेसाती में लाभकारी है?
हाँ, इस स्तोत्र का नियमित पाठ शनि दोष के प्रभाव को कम करने में सहायक है।
Q3. क्या स्तोत्र पढ़ने के लिए किसी विशेष नियम का पालन जरूरी है?
शुद्ध मन, श्रद्धा और नियमितता सबसे महत्वपूर्ण हैं।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र केवल एक धार्मिक मंत्र नहीं, बल्कि भक्ति, साहस और करुणा का प्रतीक है। राजा दशरथ ने अपने प्रजाजनों के कल्याण के लिए शनि देव से जो वरदान प्राप्त किया, वह आज भी लाखों लोगों के जीवन को दिशा दे रहा है।
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