शिव तांडव स्तोत्र: रहस्य, महिमा और इसका चमत्कारी प्रभाव
शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का अद्भुत वर्णन है। यह स्तोत्र संस्कृत भाषा में रचा गया है और इसका गहराई से अध्ययन करने पर हमें शिव के महान व्यक्तित्व और उनकी शक्ति का एहसास होता है।
यह स्तोत्र रावण द्वारा रचित है, जिन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसकी रचना की। माना जाता है कि यह स्तोत्र गाने से न केवल भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को भी समाप्त करता है।
महादेव का यह स्तोत्र उनकी अनंत शक्ति, तांडव नृत्य और ब्रह्मांड के निर्माण और विनाश की प्रक्रिया का बखूबी वर्णन करता है।
शिव तांडव स्तोत्र की रचना लंकेश रावण ने की थी। कहा जाता है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था। उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठाने का प्रयास किया। इस प्रयास में विफल होने पर, उसने अपनी भक्ति दिखाने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की।
यह स्तोत्र 16 श्लोकों का संग्रह है, जिसमें शिव की महिमा, उनकी शक्ति, और उनकी विशालता का गान किया गया है। इन श्लोकों को सुनने और गाने से व्यक्ति के भीतर एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होता है।
जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥
उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है,
और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है,
और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है,
भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।
जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥
मेरी शिव में गहरी रुचि है,
जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है,
जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं?
जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है,
और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे,
अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं,
जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं,
जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है,
और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।
जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं,
उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है,
ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है,
जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।
सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
जिनका मुकुट चंद्रमा है,
जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं,
जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है,
जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।
ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें,
जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था,
जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं,
जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं,
जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया,
उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है,
वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर,
सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।
नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं,
जिनकी शोभा चंद्रमा है,
जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है,
जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।
प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है,
पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ,
जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है।
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं
शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड
तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है,
जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण,
गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।
दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता,
जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि,
घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति,
सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति,
सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?
कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए,
अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए,
अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए,
महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥
इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है,
वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है।
इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है।
बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।
शिव तांडव स्तोत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका साहित्यिक सौंदर्य भी अद्वितीय है। इसकी संस्कृत छंद रचना इतनी प्रभावशाली है कि इसे गाने से मन और मस्तिष्क शांत हो जाते हैं।
इसके प्रत्येक श्लोक में अनुप्रास अलंकार का उपयोग किया गया है, जो इसकी सुंदरता को और बढ़ा देता है। उदाहरण के तौर पर, “जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले” जैसे शब्दों का चयन दिखाता है कि इसमें भगवान शिव की जटाओं में गंगा की धारा का अत्यंत खूबसूरत चित्रण है।
शिव तांडव स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव की एक विशेषता का उल्लेख है।
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति नित्य इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन में शांति, समृद्धि, और स्वास्थ्य बना रहता है।
यह स्तोत्र न केवल भगवान शिव को प्रसन्न करता है, बल्कि इससे जुड़े मंत्रों का उच्चारण करने से व्यक्ति के आस-पास की नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं।
भगवान शिव के तांडव नृत्य को उनके क्रोध और सृष्टि के विनाश का प्रतीक माना जाता है। शिव तांडव स्तोत्र इसी नृत्य को दर्शाता है।
शिव का यह नृत्य केवल विनाश का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह नवीनता और सृजन का भी प्रतीक है। शिव का यह रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थायी सत्य है।
आज के तनावपूर्ण जीवन में शिव तांडव स्तोत्र एक आध्यात्मिक औषधि की तरह काम करता है। इसके पाठ से मन शांत होता है और मानसिक तनाव दूर होता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि जो व्यक्ति नियमित रूप से इसका पाठ करता है, उसे आत्मविश्वास, धैर्य, और साहस प्राप्त होता है।
शिव तांडव स्तोत्र को गाने से व्यक्ति को कई लाभ मिलते हैं:
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के लिए सुबह का समय सबसे उपयुक्त माना गया है। इसे शुद्ध वातावरण में और मन की एकाग्रता के साथ पढ़ना चाहिए।
पाठ करते समय ध्यान रखें:
कई भक्तों का मानना है कि शिव तांडव स्तोत्र ने उनके जीवन में अद्भुत परिवर्तन लाए हैं।
कुछ लोगों ने अपनी बीमारियों से मुक्ति पाई, तो कुछ ने अपनी कठिन परिस्थितियों को पार किया। यह स्तोत्र हर व्यक्ति को भगवान शिव की अनंत कृपा का अनुभव कराता है।
शिव तांडव स्तोत्र केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भगवान शिव के प्रति हमारी भक्ति का प्रतीक है। यह स्तोत्र हमें भगवान शिव की शक्ति और उनकी अनंत कृपा का एहसास कराता है।
इसका पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, संपन्नता, और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है। इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाकर आप भी भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
यह एक संस्कृत स्तोत्र है, जो भगवान शिव की महिमा का वर्णन करता है। इसकी रचना रावण ने की थी।
इसकी रचना लंका के राजा रावण ने की थी, जो भगवान शिव के परम भक्त थे।
इसमें कुल 16 श्लोक हैं, जो शिव की महिमा और उनके तांडव नृत्य का वर्णन करते हैं।
सुबह के समय और शुद्ध वातावरण में इसका पाठ करना सबसे अच्छा माना जाता है।
हां, इसे कोई भी व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ सकता है।
यह तनाव को कम करता है, मानसिक शांति प्रदान करता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
संस्कृत भाषा में होने के कारण इसे याद करने में समय लग सकता है, लेकिन इसका अर्थ समझने से इसे याद करना आसान हो जाता है।
हां, यह रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाने के प्रयास में असफल होने के बाद भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रचा गया था।
यह भगवान शिव के तांडव नृत्य, उनकी शक्ति, जटाओं में गंगा का प्रवाह और उनकी महिमा का वर्णन करता है।
यह स्तोत्र सभी के लिए है। इसे कोई भी पढ़ सकता है, जो भगवान शिव में श्रद्धा और भक्ति रखता है।
हां, इसे नियमित रूप से पढ़ने से जीवन के कष्ट कम होते हैं और सकारात्मकता का अनुभव होता है।
हां, इसकी ध्वनि तरंगें मानसिक और शारीरिक ऊर्जा को बढ़ाती हैं।
बहुत से गायकों ने इसे गाया है, लेकिन यह मूलतः पाठ और उच्चारण के लिए लिखा गया है।
हां, इसे हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में अनुवादित किया गया है।
इसे मंदिर, पूजा स्थान, या किसी शांत और पवित्र स्थान पर पढ़ा जा सकता है।
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