राम रक्षा स्तोत्र: हर समस्या का समाधान और दिव्य शक्ति का रहस्य
राम रक्षा स्तोत्र भगवान श्रीराम की महिमा का अद्भुत और दिव्य स्तोत्र है, जिसकी रचना महर्षि बुद्धकौशिक ने की थी। इसे भगवान शिव के आशीर्वाद से साक्षात स्वप्न में प्राप्त किया गया था।
यह स्तोत्र न केवल हमारी रक्षा करता है बल्कि हमारे मन, शरीर और आत्मा को भी शुद्ध करता है। “राम” नाम की महिमा का वर्णन शास्त्रों में अनंत है, और यह स्तोत्र उसी महिमा को समझने का मार्ग है।
इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन से संकट, नकारात्मक ऊर्जा और भय का नाश होता है। इसमें भगवान राम के नाम और उनके गुणों का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि इसका उच्चारण करने मात्र से मन की शांति और आत्मिक बल मिलता है। यह न केवल भक्ति का मार्ग दिखाता है बल्कि यह हमें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाने का मार्गदर्शक भी है।
राम रक्षा स्तोत्र को संस्कृत भाषा में रचा गया है। इसमें कुल 38 श्लोक हैं, और प्रत्येक श्लोक में भगवान राम के विभिन्न रूपों, गुणों और उनके अद्वितीय कार्यों का उल्लेख है। यह स्तोत्र न केवल भक्तों को राम नाम का महत्व सिखाता है बल्कि उनकी रक्षा और कृपा का आश्वासन भी देता है।
महर्षि बुद्धकौशिक ने इसका निर्माण यह ध्यान में रखकर किया कि जो भी इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ेगा, वह असुरक्षा, भय और बाधाओं से मुक्त होगा।
विनियोग:
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।
श्री सीतारामचंद्रो देवता ।
अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।
श्रीमान हनुमान कीलकम ।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः ।अथ ध्यानम्:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम ।
वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,
रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥राम रक्षा स्तोत्रम्:
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ॥2॥सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ॥8॥जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ॥9॥एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन ।
नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत ।
अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ॥16॥तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ॥20॥सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ॥25॥रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥26॥रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम,
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,
श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,
श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥34॥आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥रामो राजमणिः सदा विजयते,
रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता,
निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं,
रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः,
सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ॥37॥राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने के लिए विशेष नियमों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। इसे किसी भी समय, किसी भी स्थान पर किया जा सकता है। फिर भी, कुछ विशेष बातें ध्यान में रखने से इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है:
राम रक्षा स्तोत्र में भगवान राम के विभिन्न रूपों और शक्तियों का वर्णन किया गया है। इसमें भगवान राम को वीर, धर्म के रक्षक, और असुरों का नाश करने वाले के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा, इसमें माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी का भी उल्लेख है, जो भगवान राम के साथ जुड़े हुए हैं।
यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि संकट और परेशानियों से घबराने के बजाय, हमें भगवान पर विश्वास रखना चाहिए। जो व्यक्ति इसका नियमित रूप से पाठ करता है, वह अपने जीवन में हर चुनौती का सामना करने में सक्षम होता है।
आधुनिक समय में, जब लोग तनाव और मानसिक अशांति से जूझ रहे हैं, तो राम रक्षा स्तोत्र एक आध्यात्मिक थेरेपी की तरह काम करता है। इसके उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि तरंगें मस्तिष्क को शांत करती हैं और सकारात्मकता का संचार करती हैं।
यह स्तोत्र न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक और मानसिक शांति का भी स्रोत है। यह हमें सिखाता है कि भगवान राम की भक्ति और उनकी शरण में जाने से कोई भी संकट बड़ा नहीं होता।
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ हर व्यक्ति को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। यह न केवल हमें भौतिक समस्याओं से बचाता है, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है। “राम” नाम का जप और इस स्तोत्र का पाठ हमारे जीवन को बेहतर और समृद्ध बनाता है।
आप भी इसे आज़माएं और देखें कि कैसे यह स्तोत्र आपकी ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव लाता है।
राम रक्षा स्तोत्र भगवान राम की महिमा का स्तवन है, जिसे महर्षि बुद्धकौशिक ने रचा था। यह स्तोत्र भक्त को संकट, भय और नकारात्मकता से बचाने वाला सुरक्षा कवच है।
राम रक्षा स्तोत्र की रचना महर्षि बुद्धकौशिक ने भगवान शिव के आशीर्वाद से की थी।
पाठ के लिए सुबह स्नान के बाद स्वच्छ स्थान पर बैठें। ध्यान और श्रद्धा के साथ भगवान राम का स्मरण करते हुए पाठ करें।
राम रक्षा स्तोत्र में कुल 38 श्लोक हैं।
इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह व्यक्ति को हर प्रकार के भय, संकट और नकारात्मकता से बचाता है।
नहीं, राम रक्षा स्तोत्र को किसी भी समय पढ़ा जा सकता है। हालांकि, सुबह के समय इसे पढ़ना अधिक शुभ माना जाता है।
हां, इसे कोई भी व्यक्ति कर सकता है। यह जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता।
नहीं, इसे नियमित रूप से पढ़ने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और संकट अपने आप दूर हो जाते हैं।
हां, इसका पाठ मानसिक तनाव को कम करता है और आत्मिक शांति प्रदान करता है।
यह व्यक्ति को भगवान राम की शरण में ले जाता है, जिससे आत्मिक बल और रक्षा मिलती है।
हां, इसका पाठ करने से व्यक्ति को आत्मिक प्रगति और आध्यात्मिक शुद्धता प्राप्त होती है।
श्रद्धा और विश्वास के साथ इसका पाठ करने से व्यक्ति की सकारात्मक इच्छाएं अवश्य पूरी होती हैं।
हां, यह नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर और बाधाओं को समाप्त करता है।
हां, बच्चों को भी इसका पाठ कराना चाहिए। इससे उनका मानसिक विकास और सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
यह व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मिक बल, सकारात्मकता और भगवान की कृपा प्रदान करता है, जिससे उसका जीवन सुखमय और समृद्ध हो जाता है।
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