गायत्री स्तोत्रम्: जानें इसके दिव्य रहस्य और चमत्कारी प्रभाव!
गायत्री स्तोत्रम् भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है। इसे देवी गायत्री के गुणगान और स्तुति के लिए पढ़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह स्तोत्र मां गायत्री की कृपा प्राप्त करने का सरल और प्रभावी मार्ग है।
गायत्री स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है और उसकी सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
गायत्री स्तोत्रम् को पढ़ने का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह ज्ञान, शक्ति और शांति का प्रतीक है। इसे पढ़ने वाले को आध्यात्मिक जागरूकता मिलती है और उसका मनोबल बढ़ता है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का आगमन होता है।
गायत्री स्तोत्रम् की रचना महर्षि विश्वामित्र ने की थी। महर्षि विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र को दुनिया में प्रचारित किया और इसे मानव कल्याण के लिए उपलब्ध कराया। गायत्री स्तोत्रम् में देवी गायत्री के महत्व, गुण और दिव्य शक्तियों का वर्णन किया गया है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, गायत्री माता ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह माना जाता है कि गायत्री स्तोत्रम् के पाठ से व्यक्ति पापों से मुक्ति पाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह सर्वशक्तिमान देवी का स्तवन है, जो पूरे ब्रह्मांड की रचना और संचालन करती हैं।
गायत्री स्तोत्रम् का पाठ प्रातःकाल और संध्याकाल में करना अत्यधिक शुभ माना गया है। पाठ करते समय शुद्धता और मन की एकाग्रता बहुत जरूरी है। पाठ शुरू करने से पहले व्यक्ति को स्नान करके पवित्र होना चाहिए।
मंत्र जाप के लिए एक साफ और शांत स्थान चुनना चाहिए। गायत्री स्तोत्रम् का पाठ करते समय दीपक जलाने और मां गायत्री की प्रतिमा के सामने बैठना विशेष फलदायक होता है। यदि पाठ 108 बार किया जाए तो यह और भी अधिक शक्तिशाली माना जाता है। इसे पढ़ते समय ध्यान और विश्वास बनाए रखना चाहिए।
गायत्री स्तोत्रम् के प्रत्येक श्लोक में गायत्री माता के गुणों और उनकी महिमा का वर्णन है। इन श्लोकों को पढ़ने से व्यक्ति का मन शांत होता है और उसे आध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है।
उदाहरण:
|| श्री नारायण उवाच ||
आदिशक्ते जगन्मातर्भक्तानुग्रहकारिणि |
सर्वत्र व्यापिकेऽनन्ते श्रीसंध्ये ते नमोऽस्तु ते || १ ||हे आदि शक्ति, जगत जननी, भक्तों पर कृपा करने वाली
हे सर्वव्यापी, अनंत, सौंदर्य की संध्या, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं 1 ||त्वमेव संध्या गायत्री सावित्री च सरस्वती |
ब्राह्मी च वैष्णवी रौद्री रक्ता श्वेता सितेतरा || २ ||आप संध्या, गायत्री, सावित्री और सरस्वती हैं
ब्रह्मा और वैष्णवी रौद्री, लाल, श्वेत और श्वेत हैं 2 ||प्रातर्बाला च मध्याह्ने यौवनस्था भवेत् पुनः |
ब्रह्मा सायं भगवती चिंत्यते मुनिभिः सदा || ३ ||सुबह का बच्चा दोपहर को फिर जवान हो जायेगा
सन्ध्या के समय ऋषियों द्वारा सदैव ब्रह्मा का ध्यान देवी के रूप में किया जाता है || 3 ||हंसस्था गरुडारुढा तथा वृषभवाहिनी |
ऋग्वेदाध्यायिनी भूमौ ६श्यते या तपस्विभिः || ४ ||हंस पर चील पर सवार और बैल पर सवार
वह जो ऋग्वेद का अध्ययन करती है, उसे तपस्वियों द्वारा जमीन पर 6 आकार दिया जाता है || 4 ||यजुर्वेदं पठंती च अन्तरिक्षे विराजते |
सा साममपि सर्वेषु भ्राम्यमाणा तथा भुवि || ५ ||वह यजुर्वेद का पाठ करते हुए आकाश में चमकती है
वह सामा भी है और सबमें तथा पृथ्वी पर घूम रही है 5 ||रुद्रलोकं गता त्वं हि विष्णुलोकनिवासिनी |
त्वमेव ब्रह्मणो लोकेऽमर्त्यानुग्रहकारिणी || ६ ||आप रुद्र लोक में गये हैं और विष्णु लोक के वासी हैं
आप ही ब्रह्मा लोक में अमरों को दया देने वाले हैं || 6 ||सप्तर्षिप्रीतिजननी माया बहुवरप्रदा |
शिवयोः करनेत्रोत्था ह्यश्रुस्वेदसमुद्भवा || ७ ||सप्तर्षियों की प्रेममाता माया अनेक वरदान देती है
शिव के हाथ उसकी आँखों से उठ गये और वह आँसुओं और पसीने से भर गयी 7 ||आनन्दजननी दुर्गा दशधा परिपठ्यते |
वरेण्या वरदा चैव वरिष्ठा वरवर्णिनी || ८ ||आनंद की मां दुर्गा का पाठ दस भागों में किया जाता है
वरेन्या और वरदा परम सुन्दर और परम सुन्दर हैं || 8 ||गरिष्ठा च वरार्हा च वरारोहा च सप्तमी |
नीलगङ्गा तथा संध्या सर्वदा भोगमोक्षदा || ९ ||सातवाँ सबसे महान, सबसे सुंदर और सबसे सुंदर है
नीली नदी और सन्ध्या सदैव सुख और मुक्ति देती है || 9 ||भागीरथी मर्त्यलोके पाताले भोगवत्यपि |
त्रिलोकवाहिनी देवी स्थानत्रयनिवासिनी || १० ||भागीरथी मृत्युलोक में पाताल में भी आनंद उठाते हैं
त्रिलोकवाहिनी देवी स्थानत्रयनिवासिनी || 10 ||भूर्लोकस्था त्वमेवासि धरित्री लोकधारिणी |
भुवो लोके वायुशक्तिः स्वर्लोके तेजसां निधिः || ११ ||आप पार्थिव जगत् के वासी, पृथ्वीलोक के धारक हैं
धरती की दुनिया में हवा की शक्ति स्वर्ग की दुनिया में रोशनी का खजाना है 11 ||महर्लोके महासिद्धिर्जनलोके जनेत्यपि |
तपस्विनी तपोलोके सत्यलोके तु सत्यवाक् || १२ ||महर्लोक में महासिद्धि और जनलोक में जनलोक
तपस्या की दुनिया में तपस्वी, लेकिन सत्य की दुनिया में सच्चा 12 ||कमला विष्णुलोके च गायत्री ब्रह्मलोकदा |
रुद्रलोके स्थिता गौरी हरार्धाङ्गनिवासिनी || १३ ||विष्णु के लोक में कमला और ब्रह्मा के लोक में गायत्री
गौरी रुद्र के लोक में स्थित हैं और हर के आधे शरीर में निवास करती हैं || 13 ||अहमो महतश्चैव प्रकृतिस्त्वं हि गीयसे |
साम्यावस्थात्मिका त्वं हि शबलब्रह्मरूपिणी || १४ ||मैं महान और प्रकृति हूँ, तुम्हारे लिए गाया जाता है
आप साम्यावस्था के प्रतीक और शबला ब्रह्म के स्वरूप हैं 14 ||ततः परा पराशक्तिः परमा त्वं हि गीयसे |
इच्छाशक्तिः क्रियाशक्तिर्ज्ञानशक्तिस्त्रिशक्तिता || १५ ||फिर परम, परम शक्ति, परम तू गाया जाता है
इच्छा की शक्ति, क्रिया की शक्ति, ज्ञान की शक्ति, तीन शक्तियाँ || 15 ||गंगा च यमुना चैव विपाशा च सरस्वती |
सरयूर्देविका सिन्धुर्नर्मदैरावती तथा || १६ ||गंगा और यमुना तथा विपाशा और सरस्वती |
सरयू, देविका, सिन्धु, नर्मदा और दैरावती || 16 ||गोदावरी शतद्रुश्च कावेरी देवलोकगा |
कौशिकी चन्द्रभागा च वितस्ता च सरस्वती || १७ ||गोदावरी, शतद्रु और कावेरी स्वर्ग चली गईं
कौशिकी चन्द्रभागा एवं वितस्थ सरस्वती || 17 ||गण्डकी तापिनी तोया गोमती वेत्रवत्यपि |
इडा च पिंगला चैव सुषुम्णा च तृतीयका || १८ ||गण्डकी तपिनी तोया गोमती वेत्रवत्यपि |
इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना तीसरी हैं 18 ||गांधारी हस्तिजिह्वा च पूषाऽपूषा तथैव च |
अलम्बुषा कुहूश्चैव शंखिनी प्राणवाहिनी || १९ ||गांधारी, हाथी की जीभ, और पूषा और अपुषा
अलम्बुषा और कुहू शंख और जीवनदायिनी हैं || 19 ||नाडी च त्वं शरीरस्था गीयसे प्राक्तनैर्बुधैः |
हृत्पद्मस्था प्राणशक्तिः कण्ठस्था स्वप्ननायिका || २० ||और तुम शरीर की नस हो, प्राचीन ऋषियों ने गाया है
हृदय कमल में प्राण शक्ति है, कंठ में स्वप्न नायिका है 20 ||तालुस्था त्वं सदाधारा बिंदुस्था बिंदुमालिनी |
मूले तु कुण्डलीशक्तिर्व्यापिनी केशमूलगा || २१ ||आप तालु में अनन्त स्रोत हैं, बिन्दु में बिन्दुओं की माला हैं
जड़ में कुंडल की शक्ति है, जो बालों की जड़ में व्याप्त है 21 ||शिखामध्यासना त्वं हि शिखाग्रे तु मनोन्मनी |
किमन्यद् बहुनोक्तेन यत्किंचिज्जगतीत्रये || २२ ||आप शिखर के आसन हैं, लेकिन मन शिखर के शीर्ष पर है
तीनों लोकों में और क्या है जो इतना कहा गया है || 22 ||तत्सर्व त्वं महादेवि श्रिये संध्ये नमोस्तु ते |
इतीदं कीर्तितं स्तोत्रं संध्यायां बहुपुण्यदम् || २३ ||आप जो कुछ भी हैं, हे महान देवी, हे खूबसूरत शाम, मैं आपको प्रणाम करता हूं
यह शाम को पढ़ा जाने वाला सबसे पवित्र स्तोत्र है || 23 ||महापापप्रशमनं महासिद्धिविधायकम् |
य इदं कीर्तयेत्स्तोत्रं संध्याकाले समाहितः || २४ ||यह महान पापों का निवारण करने वाला तथा महान सिद्धि का कारण है
जो व्यक्ति सन्ध्या के समय एकाग्रचित्त होकर इस स्तोत्र का जप करता है || 24 ||अपुत्रः प्राप्नुयात् पुत्रं धनार्थी धनमाप्नुयात् |
सर्वतीर्थतपोदानयज्ञयोगफलं लभेत् || २५ ||जिसके कोई पुत्र नहीं है उसे पुत्र मिलेगा और जो धन चाहता है उसे धन मिलेगा
उसे समस्त तीर्थों, तपों, दानों, यज्ञों तथा योगों का फल प्राप्त होता है 25 ||भोगान्भुक्त्वा चिरं कालमन्ते मोक्षमवाप्नुयात् |
तपस्विभिः कृतं स्तोत्रं स्नानकाले तु यः पठेत् || २६ ||लंबे समय तक सुख भोगने के बाद उसे मुक्ति प्राप्त होती है
जो स्नान के समय तपस्वियों द्वारा रचित इस स्तोत्र का पाठ करता है || 26 ||यत्र कुत्र जले मग्नः संध्यामज्जनजं फलम् |
लभते नात्र संदेहः सत्यं सत्यं च नारद || २७ ||उसे जहां भी जल में डुबाया जाए, शाम के समय स्नान करने का फल मिलता है
हे नारद, इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह सत्य और सत्य को प्राप्त करता है 27 ||शृणुयाद् योऽपि तद्भक्त्या स तु पापात्प्रमुच्यते |
पियूषसद्दशं वाक्यं संप्रोक्त्तं नारदेरितम् || २८ ||परन्तु जो इसे भक्तिपूर्वक सुनता है वह पाप से मुक्त हो जाता है
नारद द्वारा बोला गया दसवाँ शब्द अमृत के समान था 28 |||| इति श्री गायत्री स्तोत्रम् सम्पुर्णम् ||
इस मंत्र का अर्थ है कि हम उस सविता देवता की आराधना करते हैं जो ज्ञान और प्रकाश के स्रोत हैं। यह मंत्र हमारी बुद्धि को उज्ज्वल करता है और सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
गायत्री स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और उसमें सकारात्मकता भरता है।
गायत्री स्तोत्रम् के पाठ के दौरान उच्चारित होने वाले मंत्र में एक खास प्रकार की ध्वनि तरंग उत्पन्न होती है। यह ध्वनि तरंग व्यक्ति के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार, गायत्री मंत्र का नियमित जाप एकाग्रता और स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
मंत्र में प्रयोग किए गए शब्द ध्वनि चिकित्सा के आधार पर व्यक्ति के ऊर्जात्मक क्षेत्र को शुद्ध करते हैं। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि नियमित रूप से मंत्र जाप करने से व्यक्ति की मनःस्थिति बेहतर होती है और वह सकारात्मक सोच के साथ जीवन व्यतीत करता है।
गायत्री स्तोत्रम् का पाठ करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
आज के तेज-तर्रार और तनावपूर्ण जीवन में गायत्री स्तोत्रम् का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। यह पाठ व्यक्ति को शांत और संतुलित रहने में मदद करता है। इसके माध्यम से लोग अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू कर सकते हैं और अपने जीवन को सार्थकता से भर सकते हैं।
गायत्री स्तोत्रम् न केवल धार्मिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। यह जीवन में धैर्य, आत्मविश्वास और प्रेरणा को बढ़ाता है।
गायत्री स्तोत्रम् का प्रभाव केवल व्यक्ति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज में सद्भाव और शांति फैलाने का कार्य करता है। जब लोग सामूहिक रूप से इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो इसका ऊर्जात्मक प्रभाव समाज को सकारात्मक दिशा में ले जाता है।
गायत्री स्तोत्रम् न केवल एक धार्मिक पाठ है बल्कि यह मानव जीवन को उन्नत करने का एक साधन भी है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा, मानसिक शांति और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
इस दिव्य स्तोत्र को जीवन का हिस्सा बनाकर व्यक्ति न केवल अपने जीवन को सार्थकता और आनंद से भर सकता है, बल्कि समाज में भी सद्भाव और शांति ला सकता है। गायत्री स्तोत्रम् को अपनाकर हम सभी आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं।
गायत्री स्तोत्रम् मां गायत्री की स्तुति और गुणगान के लिए रचा गया एक पवित्र पाठ है, जो ज्ञान, शक्ति और शांति का प्रतीक है।
गायत्री स्तोत्रम् का पाठ प्रातःकाल और संध्याकाल में करना शुभ माना जाता है।
गायत्री स्तोत्रम् की रचना महर्षि विश्वामित्र ने की थी।
यह व्यक्ति को आध्यात्मिक जागरूकता, मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
हां, इसे किसी भी समय पढ़ सकते हैं, लेकिन सुबह और शाम का समय अधिक प्रभावी माना गया है।
हां, पाठ करते समय शुद्धता, ध्यान और एकाग्रता बनाए रखना आवश्यक है।
गायत्री स्तोत्रम् में दस प्रमुख श्लोक होते हैं, जिनमें देवी गायत्री की महिमा और शक्ति का वर्णन है।
हां, गायत्री स्तोत्रम् का पाठ स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायक है।
गायत्री स्तोत्रम् एक आध्यात्मिक पाठ है, जिसे सभी धर्मों के लोग पढ़ सकते हैं।
इसका उद्देश्य ज्ञान, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करना है।
हां, यह पाठ व्यक्ति के जीवन से नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
हां, गायत्री मंत्र की ध्वनि तरंगें व्यक्ति के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
नहीं, इसे कोई भी व्यक्ति शुद्ध हृदय और श्रद्धा के साथ पढ़ सकता है।
पाठ को 108 बार करने से अधिक प्रभावशाली परिणाम मिलते हैं।
गायत्री जयंती और वसंत पंचमी पर गायत्री स्तोत्रम् का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।
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