महामृत्युंजय मंत्र
अकाल मृत्यु एवं असाध्य रोगों से मुक्ति के लिये शीघ्र प्रभावि उपाय महामृत्युंजय मानव शरीर में जो भी रोग उत्पन्न होते हैं उसके बारे में शास्त्रो में जो उल्लेख हैं वह इस प्रकार हैं-
“शरीर व्याधिमंदिरम्” अर्थात् ब्रह्मांड के पंच तत्वों से उत्पन्न शरीर में समय के अंतराल पर नाना प्रकार की आधि-व्यधि पीडाए उत्पन्न होती रहती हैं।
ज्योतिष शास्त्र एवं आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य द्वारा पूर्वकाल में किये गयें कर्मों का फल ही व्यक्ति के शरीर में विभिन्न रोगों के रूप में प्रगट होतें हैं।
हरित सहिंता के अनुसार :
जन्मान्तर कृतम् पापम् व्याधिरुपेण बाधते।
तच्छान्तिरौषधैर्दानर्जपहोमसुरार्चनै:॥
अर्थातः पूर्व जन्म में किये गये पाप कर्म ही व्याधि के रूप में हमारे शरीर में उत्पन्न हो कर कष्टकारी हो जाता हैं। तथा औषध, दान, जप, होम व देवपूजा से रोग की शांति होती हैं।
शास्त्रोक्त विधान के अनुशार देवी भगवती ने भगवान शिव से कहा कि, है देव! आप मुझे मृत्यु से रक्षा करने वाला और सभी प्रकार के अशुभों का नाश करने वाल कवच बतलाईये? तब शिवजी ने महामृत्युंजय कवच के बारे में बतलाया। विद्वानो ने महामृत्युंजय कवच को मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का अचूक व अद्धूत उपाय माना हैं। आज के इर्षा भरे युग में हर मनुष्य को सभी प्रकार के अशुभ से अपनी रक्षा हेतु महामृत्युंजय कवच को अवश्य धारण करना चाहिये।
अमोद्य् महामृत्युंजय कवच व उल्लेखित अन्य साम्रग्रीयों को शास्त्रोक्त विधि-विधान से विद्वान ब्राहमणो द्वारा सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra) जप एवं दशांश हवन द्वारा निर्मित कवच अत्यंत प्रभावशाली होता हैं।
अमोद्य महामृत्युंजय कवच धारण कर अन्य सामग्री को अपने पूजा स्थान में स्थापित करने से अकाल मृत्यु तो टल्नती ही हैं, मनुष्य के सर्व रोग, शोक, भय इत्यादि का नाश होकर स्वस्थ आरोग्यता की प्राप्ति होती हैं।
यदि जीवन में किसी भी प्रकार के अरिष्ट की आशंका हो, मारक ग्रहों की दशा का अशुभ प्रभाव प्राप्त होकर मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त हो रहे हो, तो उसके निवारण एवं शान्ति के लिये शास्त्रों में सम्पूर्ण विधि-विधान से
महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra) के जप करने का उल्लेख किया गया हैं। मृत्युजय देवाधिदेव महादेव प्रसन्न होकर अपने भक्त के समस्त रोगो का हरण कर व्यक्ति को रोगमुक्त कर उसे दीर्घायु प्रदान करते हैं।
मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण ही इस मंत्र को मृत्युंजय कहा जाता है। महामृत्यंजय मंत्र की महिमा का वर्णन शिव पुराण, काशीखंड और महापुराण में किया गया हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों में भी मृत्युंजय मंत्र का उल्लेख है। मृत्यु को जीत लेने के कारण ही इस मंत्र को मृत्युंजय कहा जाता है।
मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात् तस्मान्मृत्युंजय: स्मृत: या मृत्युंजयति इति मृत्युंजय,
अर्थात: जो मृत्यु को जीत ले, उसे ही मृत्युंजय कहा जाता है।
यः शास्त्रविधि मृत्सृज्य वर्तते काम कारतः। न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परांगतिम्॥ (श्रीमद् भगवद् गीता:षोडशोSध्याय)
भावार्थ : जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को ही॥23॥
ज्योतिषशास्त्र के अनुशार दुख, विपत्ति या मृत्य के प्रदाता एवं निवारण के देवता शनिदेव हैं, क्योकि शनि व्यक्ति के कर्मों के अनुरुष व्यक्ति को फल्र प्रदान करते हैं।
शास्त्रों के अनुशार मार्कण्डेय ऋषि का जीवन अत्यंत अल्प था, परंतु महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra) के जप से शिव कृपा प्राप्त कर उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त हुवा। भगवान शिवजी शनिदेव के गुरु भी हैं इस लिए महामृत्युंजय मंत्र (Mahamrityunjaya Mantra) के जप से शनि से संबंधित पीडाए दूर हो जाती हैं।
Here are 15 FAQs about the Mahamrityunjaya Mantra (महामृत्युंजय मंत्र) in Hindi, followed by their answers:
महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र मंत्र है। इसे मृत्यु पर विजय पाने वाला मंत्र माना जाता है। यह मंत्र त्रिदेवों में से एक भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए जप किया जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ है मृत्यु पर विजय प्राप्त करना। यह मंत्र मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक आरोग्य के लिए जपा जाता है और व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा और भय से मुक्ति दिलाता है।
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥”
इस मंत्र का जप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में करना सबसे उत्तम माना जाता है। अगर सुबह समय न मिले, तो इसे किसी शांत और पवित्र समय में जप सकते हैं।
इस मंत्र का उपयोग रोगों से मुक्ति, आयु वृद्धि, और शांति के लिए किया जाता है। इसे गंभीर बीमारियों, बुरी आत्माओं, और मृत्यु के भय को दूर करने के लिए जपा जाता है।
यह मंत्र मन को शांत करता है, रोगों को दूर करता है, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। इसे जपने से आध्यात्मिक उन्नति और दुर्घटनाओं से सुरक्षा मिलती है।
इसे 108 बार जपना सबसे शुभ माना जाता है। आप इसे अपने समय और श्रद्धा के अनुसार 11, 21, या अधिक बार भी जप सकते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव से संबंधित है। इसमें भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी, मृत्यु को हराने वाले और जीवनदायी देवता के रूप में प्रार्थना की जाती है।
इस मंत्र का जप कोई भी कर सकता है। इसे जपने के लिए मन की शुद्धता, श्रद्धा, और सच्चे मन से प्रार्थना करना आवश्यक है।
महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद और यजुर्वेद में मिलता है। इसे ऋषि मृत्युंजय या मार्कंडेय ऋषि द्वारा प्रकट किया गया माना जाता है।
मंत्र जपते समय पवित्रता का ध्यान रखें। इसे शांत वातावरण में बैठकर, भगवान शिव का ध्यान करते हुए और पूरी श्रद्धा से जपना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव व्यक्ति की श्रद्धा और सच्ची भक्ति पर निर्भर करता है। यह जीवन में शांति, सुरक्षा, और सकारात्मकता लाने में मदद करता है।
मंत्र का प्रभाव व्यक्ति की आस्था और नियमितता पर निर्भर करता है। यदि इसे पूरी भक्ति और समर्पण के साथ जपा जाए, तो यह जल्दी परिणाम देता है।
नहीं, इस मंत्र का उपयोग केवल बीमारियों के लिए नहीं है। यह आध्यात्मिक उन्नति, शांति, और सकारात्मक ऊर्जा के लिए भी किया जाता है।
मंत्र का जप शुरू करने से पहले भगवान शिव का ध्यान करें। किसी पवित्र स्थान पर बैठकर शुद्धता और शांति के साथ जप शुरू करें। आप इसे माला के माध्यम से गिनकर जप सकते हैं।
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